- Date : 28/05/2018
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हम आपको ऐसी भारतीय महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने पुरुष प्रभुत्व वाले विज्ञान क्षेत्र में अपना स्थान बनाया है।

जब विज्ञान क्षेत्र के दिग्गजों की बात करते हैं तब किन लोगों का नाम दिमाग में आता है? शायद सीवी रमन या ऐपीजी अब्दुल कलाम। और अगर विज्ञान क्षेत्र की किसी महिला का नाम पूछा जाए तो? शायद आपको एक भी नाम याद नहीं आ रहा होगा।
अब भी विज्ञान और शोध के प्रतिशिष्ठ क्षेत्र में पुरुषों का दबदबा कायम है। लेकिन, ये बात महिलाओं को इस क्षेत्र में ऊंचाइयों को छूने से नहीं रोक रही है – चाहे वो इंजीनियरिंग हो या फिर शोध।
हम आपको ऐसी भारतीय महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने रूढ़ियों को तोड़ते हुए अपने लिए खास जगह बनाई है:
मीनल संपत
जब 5 नवंबर 2013 को मार्स ऑर्बिटर मिशन ने प्रस्थान किया तब सबने अंतरिक्ष में भारत के योगदान में इस नई उपलब्धि की तारीफ की थी। लेकिन कुछ ही लोगों को पता था कि इस मिशन की सफलता मीनल संपत के नेतृत्व में सिस्टम इंजीनियरों की टीम की कड़ी मेहनत का नतीजा था। इस टीम ने करीब 2 साल तक बिना किसी छुट्टी लिए, यहां तक राष्ट्रीय अवकाशों के दौरान भी दिन-रात एक करके काम किया था।
इलेक्ट्रानिक्स और कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग में स्वर्ण पदक जीतने वाली मीनल संपत ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसआरओ) में सैटकॉम इंजीनियर के तौर पर की थी। बाद में उन्हें अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र में स्थानांतरित किया गया। मीनल संपत को साल 2013 में मार्स मिशन को सफल बनाने में उनके योगदान के लिए आईएसआरओ टीम ऑफ एक्ससीलेंस अवॉर्ड से नवाजा गया था।
डॉ इंदिरा हिंदुजा
डॉ इंदिरा हिंदुजा ने काफी बांझ महिलाओं की गोद भरने में मदद की है। साल 1986 में भारत के पहले टेस्ट-ट्यूब बच्चा का श्रेय उन्हें ही जाता है।
डॉ हिंदुजा कई तरह के काम करती हैं – सलाहकार, गाइनकालजिस्ट, आब्स्टट्रिशन और इन्फर्टिलिटी विशेषज्ञ। उन्होंने गैमीट इंट्रा-फैलोपियन ट्रांसफर (जीआईएफटी) तकनीक का आविष्कार किया जिसकी वजह से साल 1988 में भारत का पहला जीआईएपटी बच्चा दुनिया में आया। चिकित्सा के क्षेत्र में अग्रणी शोध और काम के लिए सरकार ने उन्हें साल 2011 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
डॉ अदिति पंत
समुद्र-विज्ञान क्षेत्र की जानी मानी हस्ती डॉ अदिति पंत पहली दो भारतीय महिलाओं में से एक हैं, जो देश के तीसरे अंटार्टिका अभियान में भाग लेकर साल 1983 में अंटार्टिका पहुंची थीं।
उनका मिशन दक्षिण गंगोत्री की स्थापना थी, जो भारत का अंटार्टिका में पहला स्टेशन है। भारतीय अंटार्टिका कार्यक्रम में भाग में उनके योगदान के लिए डॉ पंत को उनके तीन सहयोगी के साथ अंटार्टिका पुरस्कार दिया गया। बाद में, उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनाग्राफी और नेशनल केमिकल लैब्रटॉरी में काम किया।
प्रियंवदा नटराजन
कोयंबतूर में जन्मी प्रियंवदा नटराजन अपने डार्क एनर्जी और डार्क मैटर विषयों के शोध के लिए मशहूर हैं। उनके पास दो पूर्वस्नातक डिग्रियां हैं – एक भौतिकशास्त्र में और दूसरी गणित में।
उन्होंने मैपिंग द हेवंस: द रैडिकल साइंटिफिक आइडियास दाट रिवील द कॉसमॉस नाम की पुस्तक लिखी है। आज वो येल यूनिवर्सिटी के डिपॉर्टमेंट ऑफ अस्ट्रानमी में प्रोफेसर के तौर पर काम कर रही हैं।
टेसी थॉमस
भारतीय मिसाइल प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाली पहली भारतीय महिला बनना आसान काम नहीं है। भारत की मिसाइल महिला और अग्निपुत्री नाम से जाने वालीं टेसी थॉमस ने डिफेंस रिसर्च एंड डेवेलपमेंट ऑर्गनिजेशन (डीआरडीओ) में अपने सराहनीय काम से सबका ध्यान खींचा।
भारत की लॉन्ग रेंज न्यूक्लियर-केपेबल बलिस्टिक मिसाइल अग्नि 5 के निर्माण के पीछे पत्नि और मां का दायित्व संभालने वालीं टेसी थॉमस का हाथ है। आज वो सब महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं, जो घर की जिम्मेदारी और नौकरी में तालमेल बिठाने की कोशिश में जुटी हैं।