- Date : 24/10/2018
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नीचे कुछ उपयोगी तरीके बताए गए हैं जिनसे आप अलग-अलग तरह की ऐसेट्स में अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई कर सकते हैं।

वेल्थ पोर्टफोलियो का डाइवर्सिफिकेशन बहुत जरूरी है लेकिन इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसे ऐसेट्स में निवेश करना जिनका आपस में कोई संबंध ना हो, आपके निवेश से जुड़े जोखिम को कम कर देता है। हालांकि हो सकता है इससे आपको सामान्य रिटर्न ही मिले ।
सबसे सामान्य डाइवर्सिफिकेशन भौतिक संपत्तियों ( रियल एस्टेट, सोना और कमोडिटीज) और वित्तीय ऐसेट्स (जिसमें फिक्सड इनकम सिक्युरिटीज, इक्विटी और डेरिवेटिव्ज शामिल हैं) के बीच होता है।

रियल एस्टेट
रियल एस्टेट भारत में निवेश का पसंदीदा जरिया रहा है। हालांकि संपत्ति से मिलने वाले किराये कि दर काफी कम है (अधिकतर शहरों में औसत 3 से 4%) लेकिन संपत्ति रखने से जुड़ी भावना और इसकी कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना इसे पसंद करने का मुख्य कारण हैं। हाल ही में कालेधन पर कठोर नीति के कारण इस क्षेत्र में होने वाले लेनदेन पर फर्क पड़ा है। इसके साथ ही निवेश के दूसरे आकर्षक तरीकों और निवेशकों की बचत बेहतर होने से निवेशक रियल एस्टेट से दूर होने लगा है।
संपत्ति को खरीदने के अलावा रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स ( आरईआईटी) भी रियल एस्टेट में निवेश का नया माध्यम बनकर आया है। ये एक तरह का पूल फंड है जो रियल एस्टेट से जुड़े विषयों में निवेश करता है। ऊंची आय वाले लोगों के लिए रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट में विशेषज्ञता रखने वाले प्राइवेट इक्विटी फंडों में निवेश करने का भी विकल्प है।
सोना
भारत में निवेशकों के लिए सोना केवल निवेश का माध्यम नहीं है। यहां सोना एक कीमती चीज , महंगाई से निपटने के साधन और भावनात्मक लगाव की वस्तु के रूप में देखा जाता है। इस तरह सोना बहुत से उद्देश्यों को पूरा करता है। निवेश के रूप में सोने के गहने बेहतर विकल्प नहीं है क्योंकि इनकी कीमतों में वृद्धि कम है और यह एक लिक्विड ऐसेट नहीं है। सोने के सिक्के या छड़ कहीं ज्यादा लिक्विड होते हैं और उन पर अगर गुणवत्ता का निशान लगा हो तो उन्हें बाजार भाव में बेचना आसान होता है। हालांकि सोने के साथ सुरक्षा और गुणवत्ता का जोखिम जुड़ा रहता है। इसलिए निवेश का एक और माध्यम है गोल्ड ईटीएफ। यह अपनी विश्वसनीयता, लिक्विडिटी और पारदर्शिता के कारण बेहद लोकप्रिय साबित हुआ है। इन्हें स्टॉक एक्सचेंज के जरिए लाया जाता है और डीमैट के रूप में रखा जाता है। गोल्ड ईटीएफ को इक्विटी शेयरों की तरह की खरीदा और बेचा जा सकता है।
कमोडिटीज
हाल के दिनों तक निवेशक कमोडिटीज में वास्तविक खरीद बिक्री ही कर सकते थे। लेकिन अब भारत में कमोडिटी डेरिवेटिव्स के माध्यम से निवेश करने का विकल्प भी है। यह बेहद प्रभावी डाइवर्सिफिकेशन विकल्प है क्योंकि यह आमतौर पर दूसरे निवेश विकल्पों से किसी तरह से जुड़ा नहीं है।
अब सोने या चांदी के अलावा दूसरी बहुत तरह की कमोडिटीज में भी निवेश किया जा सकता है। एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स जैसे एक्सचेंज कृषि, धातु और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी कमोडिटीज में निवेश की सुविधा देते हैं।
कमोडिटीज में स्पेक्यूलेटर्स के साथ फंडामेंटल निवेशक भी निवेश कर सकते हैं। कमोडिटीज को समझना आसान है क्योंकि मांग और पूर्ति का सामान्य सिद्धान्त ही यहां मूल्य तय करता है। इसमें इक्विटी या फिकस्ड इनकम सिक्योरिटीज की तुलना में उतार चढ़ाव कम होता है।
इक्विटीज
खुदरा निवेशकों के लिए इक्विटी सबसे लोकप्रिय और व्यापक रिसर्च किया हुआ निवेश विकल्प है। इक्विटी में कई तरह से निवेश किया जा सकता है:
- मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज के जरिए सीधे खरीद
- इनिशल पब्लिक ऑफरिंग्स (आईपीओ) के जरिए निवेश
- म्यूचूअल फंड की इक्विटी से जुड़ी योजनाओं या यूलिप में निवेश
इक्विटी क्लास के अंदर भी कई तरह के विकल्प है जिनसे निवेश को डाइवर्सिफाइ किया जा सकता है। हर विकल्प के साथ उसका अलग रिटर्न, उतार-चढ़ाव और जोखिम जुड़े हैं।
- ब्लू-चिप, मिड-कैप और स्मॉल-कैप
- डिविडेंड बनाम मूल्य वृद्धि
- मोमेन्टम बनाम वेल्यू
- डिफेन्सिव बनाम साइक्लिकल
- कई क्षेत्रों की कंपनियों में निवेश
- विदेशी बनाम स्थानीय
फिक्सड इनकम
फिक्सड इनकम में निवेश के विकल्प अब पारम्परिक फिक्सड डिपोजिट से आगे निकल गए हैं। निवेशक के पास फिक्सड इनकम में निवेश करने के बहुत से विकल्प मौजूद है । विकल्प का चयन इस बात पर निर्भर करता है कि निवेशक को कैसा एक्स्पोजर चाहिए। इसमें थोड़े समय के लिए होने वाले मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट से लेकर मध्यम अवधि के कॉरपोरेट डिबेंचर/बांड और लंबे समय के लिए निवेश वाले इन्फ्रास्ट्रेक्चर बांड्स भी हैं जिनकी समय सीमा 20-25 वर्ष तक हो सकती है। इससे भी सरल यह है कि एक निवेशक इनकम या लिक्विड म्यूचूअल फंड स्कीम में निवेश का विकल्प चुन सकता है जिसमें उन सभी शेयरों से मिलने वाला रिटर्न शामिल होगा जिनमें म्यूचूअल फंड ने निवेश किया है।
अगर आप एक निवेशक हैं तो समझदारी से किया गया डाइवर्सिफिकेशन आपके जोखिम को कम करके बेहतर रिटर्न देने में सहायता करता है। एक दूसरे से बिल्कुल अलग एसेट्स में निवेश करने से नुकसान होने का जोखिम कम हो जाता है जबकि अलग-अलग ऐसेट क्लास में होने वाली वृद्धि का फायदा मिलता है। एक पुरानी कहावत है कि ‘अपने सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखने चाहिए’ और यह कहावत निवेश के लिए भी बिल्कुल सही है।