कोविड-19 संकट से मिललेनियल्स कैसे मुकाबला कर रहे हैं?

आज के समय में भारतीय मिललेनियल्स और जेड जनरेशन के बीच सबसे आम भावना -डर है

कोविड-19 संकट से मिललेनियल्स कैसे मुकाबला कर रहे हैं

लॉर्ड टेनीसन की महाकाव्य कविता ' मोर्टे डी आर्थर ' में मरते हुए राजा आर्थर से ये शब्द निकले थे जो आज के दिन भी अविस्मरणीय शब्द हैं: "पुरानी चीज़ें बदलती है ,और नयी चीज़ पुरानी की जगह लेती है ..." पीढ़ियों बाद में, एक और देश और एक और सामाजिक परिवेश में, कवि-गायक बॉब डायलन कुछ शब्दों द्वारा समान विचार व्यक्त करे : "[पुरानी ] चीज़ें तेजी से मिट रही  है'. क्यूंकि समय बदल रहा है।

दोनों कवियों ने पुरानी चीज़ों पर अपनी उलझन व्यक्त की जो अपने उद्देश्य की समय सीमा से अधिक समय तक टिका रहा और जेनरेशन नेक्स्ट के तहत एक बेहतर कल की ओर इशारा कर रहा था ।  या तो 2020 के युवाओं के बारे में उत्साहित था ?

अपने युगों के आशावाद को दर्शाते हुए, वे दोनों, युवा लोगों के साथ आगे खुशहाल दिनों का सपना देख रहे थे- टेनीसन की भावनाएं विक्टोरियन इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के आधार पर थी , और डायलन ' 60 के दशक में अमेरिका के सामाजिक हलचल से प्रेरित हुए ।

इसके विपरीत, सर्वेक्षणों से पता चलता है कि आज के युवा-चाहे अमेरिका में हों या भारत में-अचानक भविष्य के बारे में अनिश्चित हैं, उनके आत्मविश्वास को घातक महामारी से चोट पहुंची है ।

अमेरिकी स्नैपशॉट्स

अमेरिकी गैर- लाभ 'थिंक टैंक डेटा फॉर प्रोग्रेस' द्वारा 5-6 अप्रैल के सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन लोगों के उन्होंने इंटरव्यू लिए,उनमे से आधे से अधिक जिसने अपनी नौकरी खो दिया था,काम करने के घंटे कम हो गए थे , या जिन्हे छुट्टी पर डाल दिया गया था ,वे 45 से कम आयु के थे । सर्वेक्षकों ने बताया , "हालांकि कोरोनावायरस का बोझ बुजुर्गों पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है, लेकिन यह युवा मतदाता हैं ,जो उच्च आर्थिक टोल का भुगतान कर रहे हैं ।

इस प्रवृत्ति पर टिप्पणी करते हुए, बिजनेस इनसाइडर पत्रिका ने कहा कि यह मिललेनियल्स के लिए "बुरी खबर" थी, जो अभी भी 2008-10 की महान मंदी के कारण "आर्थिक रूप से पीछे" हैं, और जेड जनरेशन के लिए भी , जो खुद को पुराने मिललेनियल्स के ही रास्ते पर खड़े देखते हैं । बिजनेस इनसाइडर ने अपने एक सर्वेक्षण के साथ डेटा फॉर प्रोग्रेस को मिलाया , तो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमेरिकी मिललेनियल्स ,शायद वो पहली पीढ़ी हो सकती है जो "अपने माता-पिता से आर्थिक रूप से बदतर स्थिति में है "।

6 मई को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में पत्रिका ने कहा कि अमेरिका में जेड जनरेशन का मानना है कि महामारी ने स्नातक पूरा होने से पहले ही उनके करियर को पटरी से उतार दिया है, क्योंकि उन्हें कॉलेज छोड़ने पर मंदी की मारका सामना करना पड़ेगा । पत्रिका ने कहा, कॉलेज के वरिष्ठ और नए स्नातक, जो एक उज्ज्वल कैरियर का सपना देख रहे थे और योजनाएं बना रहे थे, अब उनके संभावित नौकरी की स्थिति को "चिंताजनक" और "विनाशकारी" बताया गया है ।

भारतीय स्नैपशॉट्स

लगभग इन सर्वेक्षणों के समय ही , लंदन स्थित डेटा एनालिटिक्स और मार्केट रिसर्च फर्म यू-गॉव की भारतीय शाखा ने मिंट और दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के सहयोग से भारत में एक ऑनलाइन सर्वेक्षण भी किया " भारत के डिजिटल मूल निवासी की आकांक्षाओं और नजरिए को मापने के लिए" । 'मिलेनियम सर्वे' नामक इस सर्वेक्षण में देश के युवा कार्यबल के नमूने के रूप में 12 मार्च से 2 अप्रैल तक 184 भारतीय कस्बों और शहरों में 10,000 उत्तरदाताओं को शामिल किया गया था।

युवा अमेरिकियों के विपरीत, वे कोविड-19 के कारण अपनी नौकरी खोने की संभावना से परेशान नहीं थे । वास्तव में, उन्होंने कहा कि अगर उन्हें नौकरी से संतुष्टि नहीं मिली तो वे इस्तीफा भी दे देंगे । यह इस तथ्य के बावजूद था कि 11 मार्च को - सर्वेक्षण शुरू होने से एक दिन पहले - डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था।

युवा भारतीय अधिक चिंतित थे कि क्या उनकी नौकरी में "दिमाग का इस्तेमाल" करना होगा की नहीं या "कार्य-जीवन संतुलन" मिलेगा की नहीं ; छोटे शहरों के लोगों ने भी अपनी पसंद स्पष्ट कर दी थी : टेक फर्म या स्टार्टअप्स, जबकि ज्यादा कमाने वालो को पांच वर्षों में 50% की वृद्धि की उम्मीद थी।

वास्तव में, शुरूआती और मध्य मार्च के बीच लिंक्डइन द्वारा आयोजित एक और सर्वेक्षण हुआ जिसमे  इसी तरह के निष्कर्ष सामने आये : 61% मिल्लेंनियल ने सर्वेक्षण में कहा कि वे कॅरिअर बदलने पर विचार करेंगे| ' करियर पाथवे सर्वे ' नामक इस सर्वेक्षण में पाया गया कि तीन मिललेनियल्स में से एक (33%) ने पिछले पांच वर्षों के भीतर दो नौकरियां की  हैं, और आधे जेड जनरेशन उत्तरदाताओं (50%) ने केवल छह महीने से एक साल तक ही अपनी आखिरी नौकरी की। 

लिंक्डइन के एक बयान में कहा गया है, "युवा पेशेवरों बदलाव के लिए बहुत अधिक खुले हैं ।"

निकाला गया निष्कर्ष

इन सर्वेक्षणों से ऐसा लगता है कि भारत के मिललेनिअल और जेड जनरेशन के लोग रोजगार की संभावनाओं और कैरियर के मामलों में अपने अमेरिकी समकक्षों की तुलना में अधिक आश्वस्त थे । वास्तव में, ऐसा इसलिए लग सकता है क्योंकि देश में महामारी के चरम पर पहुँचने के बाद भारत के मिललेनिअल और जेड जनरेशन के लोगों के बीच कोई तुलनीय सर्वेक्षण नहीं किया गया था, जैसा कि अमेरिका में किया गया था । जब महामारी घटना शुरू हुई तो ही दहशत कम होने लगी ।

अमेरिका में, वाशिंगटन थिंक टैंक ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन का कहना है, बेरोजगारी बीमा दावों ने 14 मार्च वाले सप्ताह के अंत में  "जबरदस्त उछाल " दिखाई, और अर्थव्यवस्था का संकुचन 21 मार्च तक स्पष्ट दिखने लगा  । दूसरे शब्दों में, अमेरिका में बेरोजगारी पहले से ही एक मुद्दा था - 5-6 अप्रैल को डेटा फॉर प्रोग्रेस सर्वेक्षण के आयोजित होने से भी पहले ।

भारत में घरेलू रोजगार क्षेत्र पर महामारी का प्रभाव दिखने से पहले ही सर्वेक्षण किए गए थे । सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी  (सी.एम.इ.आई.) के डेटा का पता चलता है कि कोविड-19 भारत में फरवरी के अंत में आया , देशव्यापी लॉकडाउन 25 मार्च को लागू हुआ , और छंटनी अप्रैल में ही शुरू हुई।

सीएमआईई के मुताबिक, मार्च में बेरोजगारी की दर 8.75% थी, जो जून 2019 के बाद से 10 महीने की अवधि में सबसे ज्यादा है । हालांकि, ये भी "अच्छे पुराने दिनों" की तरह लग रहा था जब आंकड़े अप्रैल में 23.52% और मई में 23.48% तक उछल गया था |मोबाइल मार्केटिंग रिसर्च और इनसाइट कंपनी इनमोबी से डेटा दिखाता है कि लोगों को इस समय में असल स्थिति का एहसास होने लगा|

इनमोबी के उपभोक्ता रुझान आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में इस बीमारी के बारे में जागरूकता 19-22 मार्च को 20% से बढ़कर 2-6 अप्रैल के अगले सर्वेक्षण तक 24 % हो गई । 

मिललेनिअल की प्रतिक्रियाएं

इनमोबी से यह डेटा काफी दिलचस्प है क्योंकि यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे भारतीयों ने एक समूह के रूप में प्रतिक्रिया व्यक्त की जब कोविड-19 का प्रभाव पुरे देश ने महसूस करना शुरू कर दिया -और क्यों । शुरू में, फ्रांसीसी बाजार अनुसंधान परामर्श इप्सोस द्वारा 12-14 मार्च को किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीयों (कुछ अन्य देशों के साथ) ने महामारी को स्वास्थ्य के मुद्दे की तुलना में आर्थिक समस्या के रूप में ज्यादा देखा|

विश्व आर्थिक मंच के ' कोविड एक्शन प्लेटफॉर्म ' के एक संपादक ने आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए लिखा, वियतनाम, चीन, भारत और इटली में उत्तरदाताओं ने महामारी पर सबसे बड़ी चिंता जताई, जिससे "व्यक्तिगत वित्तीय प्रभाव" पैदा हुआ ।

इप्सोस ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या उनके उत्तरदाताएँ किसी विशिष्ट आयु वर्ग के थे, हालांकि पहले उद्धृत अन्य सर्वेक्षणों से पता चला है कि मार्च के मध्य में भारत के युवाओं को किसी वित्तीय/नौकरी के प्रभाव की उम्मीद नहीं थी । इसलिए, सभी संभावनाओं में, यह बुज़ुर्ग भारतीय थे जिन्होंने शुरुआती दिनों में कोविड-19 के बारे में आर्थिक दृष्टिकोण रखा- क्योंकि जागरूकता कम थी, जैसा की इनमोबी पोल ने सुझाव दिया था।

10-15 मार्च को यू-गॉव  द्वारा एक स्वतंत्र सर्वेक्षण के निष्कर्षों के साथ- इप्सोस सर्वेक्षण लगभग मेल खाता है -जिसमे वायरस पर भारत के "डर के स्तर" का आंकलन करने की कोशिश की । इस सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीय मिललेनिअल और जेड जनरेशन के लोग, बेबी बूमर्स (जिनका जन्म 1946-1964, 55 या उससे ज्यादा आयु वर्ग के लोग) की तुलना में संक्रमण से अधिक डरते थे ।

आधे से अधिक बेबी बूमर्स ने सर्वेक्षण में कहा कि उन्हें संक्रमित होने का डर नहीं था । यह आंकड़ा मिललेनिअल के लिए केवल 32% और जेड जनरेशन के उत्तरदाताओं के लिए 37% था ।

एहतियात बरतना

ऐसा नहीं है कि मिललेनिअल और जेड जनरेशन कोविड-19 के आर्थिक कोण से पूरी तरह बेखबर थे । मार्च-अप्रैल में यू-गॉव, मिंट और सीपीआर के एक संयुक्त सर्वेक्षण से पता चला है कि चार युवा भारतीय वयस्कों में से एक शादी से परहेज कर रहे थे और अपने स्वयं के परिवार को बढ़ाना नहीं चाहते थे , भले ही वे अपनी नौकरी के बारे में काफी उत्साहित रहते थे । सर्वेक्षकों का मानना है कि यह अनिच्छा महामारी के कारण वित्तीय असुरक्षा से उपजी थी ।

इस बात का भी इनमोबी ने अपनी अप्रैल 2-6 की सर्वे रिपोर्ट में समर्थन किया था, जिसमें कहा गया था, मिललेनिअल (और जेड जनरेशन ) के बीच आज सबसे आम भावना -डर है । इतना डर कि मिललेनिअल का एक छोटा सा प्रतिशत (17%) ऑनलाइन कोर्स कर खुद  कुछ नए कौशल सीखना शुरू कर चुके है।

मई के शुरू में एक इकनॉमिक टाइम्स के सर्वे में यह आंकड़ा और भी ज्यादा पाया गया-लगभग 60% । इसमें बताया गया "उत्तरदाता, जो लॉकडाउन के दौरान नए कौशल सिख रहे थे,उनके 10-14 साल के काम के अनुभव थे"। यह उन्हें 36-40 आयु वर्ग के सम्मान जगह दिलाएगा । इससे ऐसा लगता है कि जैसे-जैसे समय बीत रहा है, रोग के व्यक्तिगत आर्थिक निहितार्थ पर विचार करते हुए,उन्होंने आय के अन्य रास्ते के रूप में और भी विकल्पों की खोज शुरू कर दी है ।

रियल एस्टेट कंसल्टेंसी एनारॉक का कहना है कि 20-27 अप्रैल के दौरान किए गए अपने उपभोक्ता भावना सर्वेक्षण से उन्हें पता चला है कि मिललेनिअल एक आवासीय संपत्ति खरीदने के लिए अधिक उत्सुक हैं । जबकि 48% उत्तरदाताओं का मानना था कि आवासीय अचल संपत्ति कोविड-19 के दौरान सबसे अच्छा निवेश विकल्प था, एनरॉक ने कहा कि इनमें से 55% मिललेनिअल थे, जिसमे से 68% केवल अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए संपत्ति खरीदना चाहते थे ।

जून में, एक मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस सर्वेक्षण में पाया गया कि स्वास्थ्य कवर में रुचि रखने वाले मिललेनिअल में से 61% लोग एक ऐसी योजना चाहते थे जिसमें कोरोनावायरस को कवर किया जाये, जबकि 37% भारत भर में बीमारी फैलने से पहले ऐसा नहीं सोचते थे  ।

अंतिम शब्द

यू-गॉव -मिंट-सीपीआर मिललेनिअल सर्वेक्षण से पता चला है कि अमेरिका के विपरीत, भारत में मिललेनिअल का मानना है कि वे अपने माता पिता की तुलना में एक बेहतर जीवन जी रहे है, और पिछली पीढ़ी के जैसे ही वे भी कई घरों और गाड़ियों के मालिक बनना चाहते हैं । हालांकि, चूंकि यह पोल मार्च के मध्य और शुरूआती अप्रैल के बीच लिया गया था, इसलिए जून में भारत की युवा मोर्चे की मनोदशा, मार्च की तुलना में थोड़ी अधिक निराशाजनक हो सकती है । इस पृष्ठभूमि से देखा जाये तो एक सतर्क और चिंतित मिललेनिअल के अनुसार-मैक्स बूपा द्वारा जून सर्वेक्षण को एक सही तस्वीर को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

लॉर्ड टेनीसन की महाकाव्य कविता ' मोर्टे डी आर्थर ' में मरते हुए राजा आर्थर से ये शब्द निकले थे जो आज के दिन भी अविस्मरणीय शब्द हैं: "पुरानी चीज़ें बदलती है ,और नयी चीज़ पुरानी की जगह लेती है ..." पीढ़ियों बाद में, एक और देश और एक और सामाजिक परिवेश में, कवि-गायक बॉब डायलन कुछ शब्दों द्वारा समान विचार व्यक्त करे : "[पुरानी ] चीज़ें तेजी से मिट रही  है'. क्यूंकि समय बदल रहा है।

दोनों कवियों ने पुरानी चीज़ों पर अपनी उलझन व्यक्त की जो अपने उद्देश्य की समय सीमा से अधिक समय तक टिका रहा और जेनरेशन नेक्स्ट के तहत एक बेहतर कल की ओर इशारा कर रहा था ।  या तो 2020 के युवाओं के बारे में उत्साहित था ?

अपने युगों के आशावाद को दर्शाते हुए, वे दोनों, युवा लोगों के साथ आगे खुशहाल दिनों का सपना देख रहे थे- टेनीसन की भावनाएं विक्टोरियन इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के आधार पर थी , और डायलन ' 60 के दशक में अमेरिका के सामाजिक हलचल से प्रेरित हुए ।

इसके विपरीत, सर्वेक्षणों से पता चलता है कि आज के युवा-चाहे अमेरिका में हों या भारत में-अचानक भविष्य के बारे में अनिश्चित हैं, उनके आत्मविश्वास को घातक महामारी से चोट पहुंची है ।

अमेरिकी स्नैपशॉट्स

अमेरिकी गैर- लाभ 'थिंक टैंक डेटा फॉर प्रोग्रेस' द्वारा 5-6 अप्रैल के सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन लोगों के उन्होंने इंटरव्यू लिए,उनमे से आधे से अधिक जिसने अपनी नौकरी खो दिया था,काम करने के घंटे कम हो गए थे , या जिन्हे छुट्टी पर डाल दिया गया था ,वे 45 से कम आयु के थे । सर्वेक्षकों ने बताया , "हालांकि कोरोनावायरस का बोझ बुजुर्गों पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है, लेकिन यह युवा मतदाता हैं ,जो उच्च आर्थिक टोल का भुगतान कर रहे हैं ।

इस प्रवृत्ति पर टिप्पणी करते हुए, बिजनेस इनसाइडर पत्रिका ने कहा कि यह मिललेनियल्स के लिए "बुरी खबर" थी, जो अभी भी 2008-10 की महान मंदी के कारण "आर्थिक रूप से पीछे" हैं, और जेड जनरेशन के लिए भी , जो खुद को पुराने मिललेनियल्स के ही रास्ते पर खड़े देखते हैं । बिजनेस इनसाइडर ने अपने एक सर्वेक्षण के साथ डेटा फॉर प्रोग्रेस को मिलाया , तो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमेरिकी मिललेनियल्स ,शायद वो पहली पीढ़ी हो सकती है जो "अपने माता-पिता से आर्थिक रूप से बदतर स्थिति में है "।

6 मई को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में पत्रिका ने कहा कि अमेरिका में जेड जनरेशन का मानना है कि महामारी ने स्नातक पूरा होने से पहले ही उनके करियर को पटरी से उतार दिया है, क्योंकि उन्हें कॉलेज छोड़ने पर मंदी की मारका सामना करना पड़ेगा । पत्रिका ने कहा, कॉलेज के वरिष्ठ और नए स्नातक, जो एक उज्ज्वल कैरियर का सपना देख रहे थे और योजनाएं बना रहे थे, अब उनके संभावित नौकरी की स्थिति को "चिंताजनक" और "विनाशकारी" बताया गया है ।

भारतीय स्नैपशॉट्स

लगभग इन सर्वेक्षणों के समय ही , लंदन स्थित डेटा एनालिटिक्स और मार्केट रिसर्च फर्म यू-गॉव की भारतीय शाखा ने मिंट और दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के सहयोग से भारत में एक ऑनलाइन सर्वेक्षण भी किया " भारत के डिजिटल मूल निवासी की आकांक्षाओं और नजरिए को मापने के लिए" । 'मिलेनियम सर्वे' नामक इस सर्वेक्षण में देश के युवा कार्यबल के नमूने के रूप में 12 मार्च से 2 अप्रैल तक 184 भारतीय कस्बों और शहरों में 10,000 उत्तरदाताओं को शामिल किया गया था।

युवा अमेरिकियों के विपरीत, वे कोविड-19 के कारण अपनी नौकरी खोने की संभावना से परेशान नहीं थे । वास्तव में, उन्होंने कहा कि अगर उन्हें नौकरी से संतुष्टि नहीं मिली तो वे इस्तीफा भी दे देंगे । यह इस तथ्य के बावजूद था कि 11 मार्च को - सर्वेक्षण शुरू होने से एक दिन पहले - डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था।

युवा भारतीय अधिक चिंतित थे कि क्या उनकी नौकरी में "दिमाग का इस्तेमाल" करना होगा की नहीं या "कार्य-जीवन संतुलन" मिलेगा की नहीं ; छोटे शहरों के लोगों ने भी अपनी पसंद स्पष्ट कर दी थी : टेक फर्म या स्टार्टअप्स, जबकि ज्यादा कमाने वालो को पांच वर्षों में 50% की वृद्धि की उम्मीद थी।

वास्तव में, शुरूआती और मध्य मार्च के बीच लिंक्डइन द्वारा आयोजित एक और सर्वेक्षण हुआ जिसमे  इसी तरह के निष्कर्ष सामने आये : 61% मिल्लेंनियल ने सर्वेक्षण में कहा कि वे कॅरिअर बदलने पर विचार करेंगे| ' करियर पाथवे सर्वे ' नामक इस सर्वेक्षण में पाया गया कि तीन मिललेनियल्स में से एक (33%) ने पिछले पांच वर्षों के भीतर दो नौकरियां की  हैं, और आधे जेड जनरेशन उत्तरदाताओं (50%) ने केवल छह महीने से एक साल तक ही अपनी आखिरी नौकरी की। 

लिंक्डइन के एक बयान में कहा गया है, "युवा पेशेवरों बदलाव के लिए बहुत अधिक खुले हैं ।"

निकाला गया निष्कर्ष

इन सर्वेक्षणों से ऐसा लगता है कि भारत के मिललेनिअल और जेड जनरेशन के लोग रोजगार की संभावनाओं और कैरियर के मामलों में अपने अमेरिकी समकक्षों की तुलना में अधिक आश्वस्त थे । वास्तव में, ऐसा इसलिए लग सकता है क्योंकि देश में महामारी के चरम पर पहुँचने के बाद भारत के मिललेनिअल और जेड जनरेशन के लोगों के बीच कोई तुलनीय सर्वेक्षण नहीं किया गया था, जैसा कि अमेरिका में किया गया था । जब महामारी घटना शुरू हुई तो ही दहशत कम होने लगी ।

अमेरिका में, वाशिंगटन थिंक टैंक ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन का कहना है, बेरोजगारी बीमा दावों ने 14 मार्च वाले सप्ताह के अंत में  "जबरदस्त उछाल " दिखाई, और अर्थव्यवस्था का संकुचन 21 मार्च तक स्पष्ट दिखने लगा  । दूसरे शब्दों में, अमेरिका में बेरोजगारी पहले से ही एक मुद्दा था - 5-6 अप्रैल को डेटा फॉर प्रोग्रेस सर्वेक्षण के आयोजित होने से भी पहले ।

भारत में घरेलू रोजगार क्षेत्र पर महामारी का प्रभाव दिखने से पहले ही सर्वेक्षण किए गए थे । सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी  (सी.एम.इ.आई.) के डेटा का पता चलता है कि कोविड-19 भारत में फरवरी के अंत में आया , देशव्यापी लॉकडाउन 25 मार्च को लागू हुआ , और छंटनी अप्रैल में ही शुरू हुई।

सीएमआईई के मुताबिक, मार्च में बेरोजगारी की दर 8.75% थी, जो जून 2019 के बाद से 10 महीने की अवधि में सबसे ज्यादा है । हालांकि, ये भी "अच्छे पुराने दिनों" की तरह लग रहा था जब आंकड़े अप्रैल में 23.52% और मई में 23.48% तक उछल गया था |मोबाइल मार्केटिंग रिसर्च और इनसाइट कंपनी इनमोबी से डेटा दिखाता है कि लोगों को इस समय में असल स्थिति का एहसास होने लगा|

इनमोबी के उपभोक्ता रुझान आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में इस बीमारी के बारे में जागरूकता 19-22 मार्च को 20% से बढ़कर 2-6 अप्रैल के अगले सर्वेक्षण तक 24 % हो गई । 

मिललेनिअल की प्रतिक्रियाएं

इनमोबी से यह डेटा काफी दिलचस्प है क्योंकि यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे भारतीयों ने एक समूह के रूप में प्रतिक्रिया व्यक्त की जब कोविड-19 का प्रभाव पुरे देश ने महसूस करना शुरू कर दिया -और क्यों । शुरू में, फ्रांसीसी बाजार अनुसंधान परामर्श इप्सोस द्वारा 12-14 मार्च को किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीयों (कुछ अन्य देशों के साथ) ने महामारी को स्वास्थ्य के मुद्दे की तुलना में आर्थिक समस्या के रूप में ज्यादा देखा|

विश्व आर्थिक मंच के ' कोविड एक्शन प्लेटफॉर्म ' के एक संपादक ने आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए लिखा, वियतनाम, चीन, भारत और इटली में उत्तरदाताओं ने महामारी पर सबसे बड़ी चिंता जताई, जिससे "व्यक्तिगत वित्तीय प्रभाव" पैदा हुआ ।

इप्सोस ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या उनके उत्तरदाताएँ किसी विशिष्ट आयु वर्ग के थे, हालांकि पहले उद्धृत अन्य सर्वेक्षणों से पता चला है कि मार्च के मध्य में भारत के युवाओं को किसी वित्तीय/नौकरी के प्रभाव की उम्मीद नहीं थी । इसलिए, सभी संभावनाओं में, यह बुज़ुर्ग भारतीय थे जिन्होंने शुरुआती दिनों में कोविड-19 के बारे में आर्थिक दृष्टिकोण रखा- क्योंकि जागरूकता कम थी, जैसा की इनमोबी पोल ने सुझाव दिया था।

10-15 मार्च को यू-गॉव  द्वारा एक स्वतंत्र सर्वेक्षण के निष्कर्षों के साथ- इप्सोस सर्वेक्षण लगभग मेल खाता है -जिसमे वायरस पर भारत के "डर के स्तर" का आंकलन करने की कोशिश की । इस सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीय मिललेनिअल और जेड जनरेशन के लोग, बेबी बूमर्स (जिनका जन्म 1946-1964, 55 या उससे ज्यादा आयु वर्ग के लोग) की तुलना में संक्रमण से अधिक डरते थे ।

आधे से अधिक बेबी बूमर्स ने सर्वेक्षण में कहा कि उन्हें संक्रमित होने का डर नहीं था । यह आंकड़ा मिललेनिअल के लिए केवल 32% और जेड जनरेशन के उत्तरदाताओं के लिए 37% था ।

एहतियात बरतना

ऐसा नहीं है कि मिललेनिअल और जेड जनरेशन कोविड-19 के आर्थिक कोण से पूरी तरह बेखबर थे । मार्च-अप्रैल में यू-गॉव, मिंट और सीपीआर के एक संयुक्त सर्वेक्षण से पता चला है कि चार युवा भारतीय वयस्कों में से एक शादी से परहेज कर रहे थे और अपने स्वयं के परिवार को बढ़ाना नहीं चाहते थे , भले ही वे अपनी नौकरी के बारे में काफी उत्साहित रहते थे । सर्वेक्षकों का मानना है कि यह अनिच्छा महामारी के कारण वित्तीय असुरक्षा से उपजी थी ।

इस बात का भी इनमोबी ने अपनी अप्रैल 2-6 की सर्वे रिपोर्ट में समर्थन किया था, जिसमें कहा गया था, मिललेनिअल (और जेड जनरेशन ) के बीच आज सबसे आम भावना -डर है । इतना डर कि मिललेनिअल का एक छोटा सा प्रतिशत (17%) ऑनलाइन कोर्स कर खुद  कुछ नए कौशल सीखना शुरू कर चुके है।

मई के शुरू में एक इकनॉमिक टाइम्स के सर्वे में यह आंकड़ा और भी ज्यादा पाया गया-लगभग 60% । इसमें बताया गया "उत्तरदाता, जो लॉकडाउन के दौरान नए कौशल सिख रहे थे,उनके 10-14 साल के काम के अनुभव थे"। यह उन्हें 36-40 आयु वर्ग के सम्मान जगह दिलाएगा । इससे ऐसा लगता है कि जैसे-जैसे समय बीत रहा है, रोग के व्यक्तिगत आर्थिक निहितार्थ पर विचार करते हुए,उन्होंने आय के अन्य रास्ते के रूप में और भी विकल्पों की खोज शुरू कर दी है ।

रियल एस्टेट कंसल्टेंसी एनारॉक का कहना है कि 20-27 अप्रैल के दौरान किए गए अपने उपभोक्ता भावना सर्वेक्षण से उन्हें पता चला है कि मिललेनिअल एक आवासीय संपत्ति खरीदने के लिए अधिक उत्सुक हैं । जबकि 48% उत्तरदाताओं का मानना था कि आवासीय अचल संपत्ति कोविड-19 के दौरान सबसे अच्छा निवेश विकल्प था, एनरॉक ने कहा कि इनमें से 55% मिललेनिअल थे, जिसमे से 68% केवल अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए संपत्ति खरीदना चाहते थे ।

जून में, एक मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस सर्वेक्षण में पाया गया कि स्वास्थ्य कवर में रुचि रखने वाले मिललेनिअल में से 61% लोग एक ऐसी योजना चाहते थे जिसमें कोरोनावायरस को कवर किया जाये, जबकि 37% भारत भर में बीमारी फैलने से पहले ऐसा नहीं सोचते थे  ।

अंतिम शब्द

यू-गॉव -मिंट-सीपीआर मिललेनिअल सर्वेक्षण से पता चला है कि अमेरिका के विपरीत, भारत में मिललेनिअल का मानना है कि वे अपने माता पिता की तुलना में एक बेहतर जीवन जी रहे है, और पिछली पीढ़ी के जैसे ही वे भी कई घरों और गाड़ियों के मालिक बनना चाहते हैं । हालांकि, चूंकि यह पोल मार्च के मध्य और शुरूआती अप्रैल के बीच लिया गया था, इसलिए जून में भारत की युवा मोर्चे की मनोदशा, मार्च की तुलना में थोड़ी अधिक निराशाजनक हो सकती है । इस पृष्ठभूमि से देखा जाये तो एक सतर्क और चिंतित मिललेनिअल के अनुसार-मैक्स बूपा द्वारा जून सर्वेक्षण को एक सही तस्वीर को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

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