ई-कॉमर्स नियामकों द्वारा सुनी जाने वाली ऑनलाइन शॉपिंग शिकायतें

ई-कॉमर्स ऑपरेटरों से जवाबदेही और पारदर्शिता लाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक

ई-कॉमर्स नियामकों को ऑनलाइन शॉपिंग की शिकायतें सुननी पड़ती हैं

ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस की अनियमित प्रकृति के कारण उपभोक्ता विभिन्न मुद्दों से त्रस्त हो गए हैं, लेकिन यह सब बदलने वाला है। 2019 का उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 6 अगस्त को संसद में पेश किया गया था, जिसके माध्यम से ई-कॉमर्स निगमों पर एक नियामक नजर रख सकता है।

इसका क्या मतलब है?

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) नामक एक नियामक मंच की स्थापना की जानी है, जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यम से खरीद करने वाले ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करेगा, और इसके अलावा जिसमे उन व्यवसायों के लिए क्लास मोशन शुरू करने की शक्ति हो ,जिसमें रिकॉल, रिफंड और रिटर्न लागू करना शामिल है।

कई ई-कॉमर्स कंपनियां मूल्य निर्धारण , माल को बढ़ावा देने और अपने मंच के माध्यम से बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के मानक को गलत तरीके से पेश करने के लिए प्रभावित करती हैं।

1986 के अधिनियम की जगह लेने वाले नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक की भविष्यवाणी की जाती है कि विधेयक  भारत के प्रति नियामक शासन में "संस्थागत शून्य" को भर देगा। इस विधेयक के माध्यम से,  सी.सी.पी.ए. के पास एकतरफा अधिकार होगा, जिससे वह ऑनलाइन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए दिशानिर्देशों का प्रस्ताव करते हुए व्यावसायिक प्रथाओं की जांच कर सकेगा। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 6 अगस्त को उक्त दिशानिर्देशों का एक मसौदा जारी किया है।

क्या उम्मीद की जा सकती है?

सी.सी.पी.ए. मार्गदर्शन प्रदान करने, अनुपालन लागू करने और एक संरचित ढांचे का पालन करने में सक्षम होगा जो सभी डिजिटल व्यवसायों पर लागू होगा। ई-कॉमर्स ऑपरेटर्स जिन्हें अब तक पूरी छूट दी जा चुकी है ,उन्हें कस्टमर-फर्स्ट एप्रोच निर्धारित करना होगा।

व्यवसाय अब मूल्य निर्धारण को प्रभावित नहीं कर पाएंगे। उन्हें अपनी वेबसाइट और ऐप्स पर विक्रेता की साख का अनिवार्य रूप से खुलासा करना होगा, जिसे उन्होंने व्यापार क्षेत्र के लिए एक शर्त के बावजूद एफ.डी.आई. नियमों के तहत अब तक अनदेखा किया है।

ई-कॉमर्स ऑपरेटरों को नकली उत्पादों पर नकेल कसने के लिए मजबूर किया जाएगा जो वर्तमान में ऑनलाइन मार्केटप्लेस के बिक्री का बड़ा हिस्सा चलाते हैं।

क्या कहता है सर्वेक्षण ?

लोकलसर्कल्स , एक कम्युनिटी प्लेटफ़ॉर्म द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया था कि 90% उत्तरदाता एक निर्दिष्ट समय के भीतर शिकायतों का तेजी से समाधान चाहते थे। अन्य चिंताओं में शामिल था, नकली उत्पादों, विक्रेता साख की कमी और उत्पादों के लिए  प्रभावित समीक्षा और रेटिंग।

ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के लिए दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार करने और उपभोक्ता हित की रक्षा करते हुए इन तथ्यों पर विचार किया गया है। लंबे समय में, बिल से व्यापार क्षेत्र के लिए अधिक पारदर्शिता, विश्वास और विकास की चाह लाने की उम्मीद है।

इस क्विज़ द्वारा पता करें कि क्या आप एक जानकार ग्राहक हैं।

ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस की अनियमित प्रकृति के कारण उपभोक्ता विभिन्न मुद्दों से त्रस्त हो गए हैं, लेकिन यह सब बदलने वाला है। 2019 का उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 6 अगस्त को संसद में पेश किया गया था, जिसके माध्यम से ई-कॉमर्स निगमों पर एक नियामक नजर रख सकता है।

इसका क्या मतलब है?

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) नामक एक नियामक मंच की स्थापना की जानी है, जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यम से खरीद करने वाले ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करेगा, और इसके अलावा जिसमे उन व्यवसायों के लिए क्लास मोशन शुरू करने की शक्ति हो ,जिसमें रिकॉल, रिफंड और रिटर्न लागू करना शामिल है।

कई ई-कॉमर्स कंपनियां मूल्य निर्धारण , माल को बढ़ावा देने और अपने मंच के माध्यम से बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के मानक को गलत तरीके से पेश करने के लिए प्रभावित करती हैं।

1986 के अधिनियम की जगह लेने वाले नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक की भविष्यवाणी की जाती है कि विधेयक  भारत के प्रति नियामक शासन में "संस्थागत शून्य" को भर देगा। इस विधेयक के माध्यम से,  सी.सी.पी.ए. के पास एकतरफा अधिकार होगा, जिससे वह ऑनलाइन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए दिशानिर्देशों का प्रस्ताव करते हुए व्यावसायिक प्रथाओं की जांच कर सकेगा। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 6 अगस्त को उक्त दिशानिर्देशों का एक मसौदा जारी किया है।

क्या उम्मीद की जा सकती है?

सी.सी.पी.ए. मार्गदर्शन प्रदान करने, अनुपालन लागू करने और एक संरचित ढांचे का पालन करने में सक्षम होगा जो सभी डिजिटल व्यवसायों पर लागू होगा। ई-कॉमर्स ऑपरेटर्स जिन्हें अब तक पूरी छूट दी जा चुकी है ,उन्हें कस्टमर-फर्स्ट एप्रोच निर्धारित करना होगा।

व्यवसाय अब मूल्य निर्धारण को प्रभावित नहीं कर पाएंगे। उन्हें अपनी वेबसाइट और ऐप्स पर विक्रेता की साख का अनिवार्य रूप से खुलासा करना होगा, जिसे उन्होंने व्यापार क्षेत्र के लिए एक शर्त के बावजूद एफ.डी.आई. नियमों के तहत अब तक अनदेखा किया है।

ई-कॉमर्स ऑपरेटरों को नकली उत्पादों पर नकेल कसने के लिए मजबूर किया जाएगा जो वर्तमान में ऑनलाइन मार्केटप्लेस के बिक्री का बड़ा हिस्सा चलाते हैं।

क्या कहता है सर्वेक्षण ?

लोकलसर्कल्स , एक कम्युनिटी प्लेटफ़ॉर्म द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया था कि 90% उत्तरदाता एक निर्दिष्ट समय के भीतर शिकायतों का तेजी से समाधान चाहते थे। अन्य चिंताओं में शामिल था, नकली उत्पादों, विक्रेता साख की कमी और उत्पादों के लिए  प्रभावित समीक्षा और रेटिंग।

ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के लिए दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार करने और उपभोक्ता हित की रक्षा करते हुए इन तथ्यों पर विचार किया गया है। लंबे समय में, बिल से व्यापार क्षेत्र के लिए अधिक पारदर्शिता, विश्वास और विकास की चाह लाने की उम्मीद है।

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