कैसे अपनी कार्यकारी पूंजी की जरूरतों को पूरा करें

आप किसी भी कारोबारी से पूछें, चाहे उनका कारोबार छोटा हो या बड़ा, कि कारोबार करते वक्त उनकी सबसे बड़ी चुनौती क्या है, तो उनका जवाब होगा पूंजी का प्रबंधन। ये ऐसा क्यों है?

How should you manage your working capital requirements

आप किसी भी कारोबारी से पूछें, चाहे उनका कारोबार छोटा हो या बड़ा, कि कारोबार करते वक्त उनकी सबसे बड़ी चुनौती क्या है, तो उनका जवाब होगा पूंजी का प्रबंधन। ये ऐसा क्यों है? काफी लोगों को लगता है कि एक बार ग्राहक मिल जाने के बाद कोई भी कंपनी अच्छी तरह से कारोबार करेगी। जहां ये काफी हद तक सही है, लेकिन किसी भी कंपनी की सफलता के लिए जरूरी है कि कंपनी में आने और जाने वाली पूंजी का प्रबंधन किस तरह किया जाता है और इनमें कैसे तालमेल बिठाया जाता है। 

छोटे कारोबारियों के लिए छोटी अवधि की पूंजी, जिसे कार्यकारी पूंजी (वर्किंग कैपिटल) की जरूरत भी कहा जाता है, के प्रबंधन के बारे में जानकारी होना जरूरी है। ध्यान में रखे की आपकी कंपनी की कार्यकारी पूंजी की जरूरत दूसरी कंपनी से अलग होगी। आय और खर्च के अलावा कई दूसरे घटकों के आधार पर कार्यकारी पूंजी की जरूरत निर्धारित होती है। तो फिर ये दूसरे घटक क्या हैं? आइए सबसे आम घटकों के बारे में समझते हैं।

कारोबार का प्रकार: आपकी कंपनी की कार्यकारी पूंजी की जरूरत आपके कारोबार के प्रकार पर निर्भर करती है। जैसे, लेन-देन से जुड़ी कंपनियों को कम कार्यकारी पूंजी की जरूरत पड़ती है, क्योंकि हाथोंहाथ सामान खरीदा और बेचा जाता है।

कारोबार का चक्र: कारोबार चक्र का अलग-अलग पड़ावों का भी असर कंपनी के कार्यकारी पूंजी की जरूरत पर पड़ता है। जब उत्पादों और सेवाओं की मांग ज्यादा होती है, तब ज्यादा कार्यकारी पूंजी की जरूरत पड़ती है; वहीं मांग में कमी आने पर कार्यकारी पूंजी की जरूरत भी कम हो जाती है।

कारोबार का पैमाना: कार्यकारी पूंजी की जरूरत सीधा आपकी कंपनी के कारोबार के पैमाने से जुड़ी होती है। इसका मतलब है कि बड़ी कंपनियों को ज्यादा पूंजी लगती है, वहीं छोटे कंपनियों को कम पूंजी की जरूरत होती है।

विस्तार की संभावना: कंपनी की विस्तार की संभावना उसके कारोबार के पैमाने से जुड़ी होती है। इसका मतलब है कि अगर आपकी कंपनी की विस्तार की संभावना ज्यादा है, तो आपको ज्यादा कार्यकारी पूंजी की जरूरत पड़ेगी। 

उधारी की उपलब्धता: जिन कारोबारों को आसानी से उधारी पर कच्चा माल मिल जाता है, उन्हें ज्यादा कार्यकारी पूंजी की जरूरत नहीं पड़ती है। वैसे ही, उधारी पर सामान बेचने वाली कंपनी के मुकाबले नकद में माल बेचने या सेवाएं उपलब्ध करानी वाली कंपनी को कम कार्यकारी पूंजी की जरूरत होगी। 

कार्यकारी पूंजी के सही प्रबंधन की जरूरत क्यों है?

कार्यकारी पूंजी के सही प्रबंधन की सबसे बड़ी वजह है कि इससे पूंजी की लागत कम होती है। पूंजी की लागत का क्या मतलब है? ये वो पैसा है जो आप योग्य कार्यकारी पूंजी सुनिश्चित करने के लिए खर्च करते हैं। इसके अलावा कार्यकारी पूंजी के प्रबंधन का दूसरा उद्देश्य आपके निवेश किए गए पैसे पर ज्यादा से ज्यादा रिटर्न मिलने में मदद करना है। 

कंपनी की कार्यकारी पूंजी का सही प्रबंधन सुचारु प्रचालन चक्र और बेहतर कारोबार भी सुनिश्चित करता है। कच्चा माल खरीदने से लेकर उत्पाद ग्राहक तक पहुंचाने तक, कार्यकारी पूंजी प्रबंधन सुनिश्चित करता है कि आपके कारोबार में कोई दिक्कत न आए। 

अब बड़ा सवाल

तो फिर कैसे आप अपनी कंपनी की कार्यकारी पूंजी की जरूरत प्रबंधन कर सकते हैं? ध्यान में रखिए कि आप कैसे प्रबंधन करते हैं इसका आपकी कंपनी के लंबी अवधि के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा। आपकी कंपनी की कार्यकारी पूंजी के साथ कोई शर्तें नहीं जुड़ी होती हैं और इसपर ब्याज भी नहीं लगता है, यानि ये आपकी कंपनी के लिए नकदी पाने का सबसे आसान और तेज जरिया है। नीचे कुछ टिप्स दी जा रही हैं जिनकी मदद से आप बेहतर तरीके से अपनी कार्यकारी पूंजी की जरूरतों का प्रबंधन कर पाएंगे।

अपनी मौजूदा स्थिति का आकलन करें

पहला कदम है कि कंपनी में आ रही पूंजी और जा रही पूंजी के स्वरूप को समझा दाए। इससे आपको दिक्कत वाले मामले पहचानने में मदद होगी, जैसे बिल के भुगतान में देरी या भुगतानकर्ता। इस जानकारी की मदद से कंपनी की आय और खर्चों में तालमेल बिठा पाएंगे, जिससे कंपनी के कामकाज में कोई अड़चन नहीं आएगी। साथ ही, इससे कारोबार पर असर पड़ने की संभावना भी कम हो जाएगी।

सप्लाइअर के साथ बेहतर रिश्ता बनाएं

अगर मुमकिन हो तो अपने सप्लाइअर को बड़े भुगतान को किश्तों में लेने के लिए राजी करें, इससे आपका एकमुश्त नकद भुगतान का बोझ कम होगा। साथ ही, सप्लाइअर से बेहतर शर्तों पर सामान लेने कोशिश करें, जैसे भुगतान के लिए ज्यादा लंबा वक्त। 

स्टॉक पर नजर बनाए रखें

माल के स्टॉक पर नजर बनाए रखना जितना मुश्किल का काम है, उतना ही ये संतुलित कार्यकारी पूंजी कायम रखने के लिए अहम है। इससे आपको पूरे स्टॉक की साफ तस्वीर मिलती है और इससे आप कंपनी की नकदी पर असर डालने वाले अतिरिक्त स्टॉक की आसानी से पहचान कर सकते हैं और इससे बच सकते हैं। 

कंपनी की आमदनी

आप ग्राहकों के साथ करार करते वक्त डिपॉजिट या चुनिंदा ग्राहकों के साथ जल्द भुगतान के लिए समझौता करने की कोशिश करें। या फिर, ग्राहकों से बकाया जल्द से जल्द वसूलने की नीति बनाएं। जल्द भुगतान के लिए आप ग्राहकों को छूट भी दे सकते हैं। इससे सुनिश्चित होगा कि आपकी कंपनी के पास हमेशा नकदी मौजूद रहेगी। 

वक्त-वक्त पर इस प्रक्रिया की समीक्षा और विश्लेषण कीजिए और अपनी छोटी अवधि और लंबी अवधि के वित्तीय प्रबंधन को बेहतर बनाने के नए तरीके ढूंढ़ते रहिए। खासतौर पर ये स्टार्टअप के लिए बेहद अहम है क्योंकि इससे आप सफल कारोबार की नींव रख सकते हैं। 

आप किसी भी कारोबारी से पूछें, चाहे उनका कारोबार छोटा हो या बड़ा, कि कारोबार करते वक्त उनकी सबसे बड़ी चुनौती क्या है, तो उनका जवाब होगा पूंजी का प्रबंधन। ये ऐसा क्यों है? काफी लोगों को लगता है कि एक बार ग्राहक मिल जाने के बाद कोई भी कंपनी अच्छी तरह से कारोबार करेगी। जहां ये काफी हद तक सही है, लेकिन किसी भी कंपनी की सफलता के लिए जरूरी है कि कंपनी में आने और जाने वाली पूंजी का प्रबंधन किस तरह किया जाता है और इनमें कैसे तालमेल बिठाया जाता है। 

छोटे कारोबारियों के लिए छोटी अवधि की पूंजी, जिसे कार्यकारी पूंजी (वर्किंग कैपिटल) की जरूरत भी कहा जाता है, के प्रबंधन के बारे में जानकारी होना जरूरी है। ध्यान में रखे की आपकी कंपनी की कार्यकारी पूंजी की जरूरत दूसरी कंपनी से अलग होगी। आय और खर्च के अलावा कई दूसरे घटकों के आधार पर कार्यकारी पूंजी की जरूरत निर्धारित होती है। तो फिर ये दूसरे घटक क्या हैं? आइए सबसे आम घटकों के बारे में समझते हैं।

कारोबार का प्रकार: आपकी कंपनी की कार्यकारी पूंजी की जरूरत आपके कारोबार के प्रकार पर निर्भर करती है। जैसे, लेन-देन से जुड़ी कंपनियों को कम कार्यकारी पूंजी की जरूरत पड़ती है, क्योंकि हाथोंहाथ सामान खरीदा और बेचा जाता है।

कारोबार का चक्र: कारोबार चक्र का अलग-अलग पड़ावों का भी असर कंपनी के कार्यकारी पूंजी की जरूरत पर पड़ता है। जब उत्पादों और सेवाओं की मांग ज्यादा होती है, तब ज्यादा कार्यकारी पूंजी की जरूरत पड़ती है; वहीं मांग में कमी आने पर कार्यकारी पूंजी की जरूरत भी कम हो जाती है।

कारोबार का पैमाना: कार्यकारी पूंजी की जरूरत सीधा आपकी कंपनी के कारोबार के पैमाने से जुड़ी होती है। इसका मतलब है कि बड़ी कंपनियों को ज्यादा पूंजी लगती है, वहीं छोटे कंपनियों को कम पूंजी की जरूरत होती है।

विस्तार की संभावना: कंपनी की विस्तार की संभावना उसके कारोबार के पैमाने से जुड़ी होती है। इसका मतलब है कि अगर आपकी कंपनी की विस्तार की संभावना ज्यादा है, तो आपको ज्यादा कार्यकारी पूंजी की जरूरत पड़ेगी। 

उधारी की उपलब्धता: जिन कारोबारों को आसानी से उधारी पर कच्चा माल मिल जाता है, उन्हें ज्यादा कार्यकारी पूंजी की जरूरत नहीं पड़ती है। वैसे ही, उधारी पर सामान बेचने वाली कंपनी के मुकाबले नकद में माल बेचने या सेवाएं उपलब्ध करानी वाली कंपनी को कम कार्यकारी पूंजी की जरूरत होगी। 

कार्यकारी पूंजी के सही प्रबंधन की जरूरत क्यों है?

कार्यकारी पूंजी के सही प्रबंधन की सबसे बड़ी वजह है कि इससे पूंजी की लागत कम होती है। पूंजी की लागत का क्या मतलब है? ये वो पैसा है जो आप योग्य कार्यकारी पूंजी सुनिश्चित करने के लिए खर्च करते हैं। इसके अलावा कार्यकारी पूंजी के प्रबंधन का दूसरा उद्देश्य आपके निवेश किए गए पैसे पर ज्यादा से ज्यादा रिटर्न मिलने में मदद करना है। 

कंपनी की कार्यकारी पूंजी का सही प्रबंधन सुचारु प्रचालन चक्र और बेहतर कारोबार भी सुनिश्चित करता है। कच्चा माल खरीदने से लेकर उत्पाद ग्राहक तक पहुंचाने तक, कार्यकारी पूंजी प्रबंधन सुनिश्चित करता है कि आपके कारोबार में कोई दिक्कत न आए। 

अब बड़ा सवाल

तो फिर कैसे आप अपनी कंपनी की कार्यकारी पूंजी की जरूरत प्रबंधन कर सकते हैं? ध्यान में रखिए कि आप कैसे प्रबंधन करते हैं इसका आपकी कंपनी के लंबी अवधि के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा। आपकी कंपनी की कार्यकारी पूंजी के साथ कोई शर्तें नहीं जुड़ी होती हैं और इसपर ब्याज भी नहीं लगता है, यानि ये आपकी कंपनी के लिए नकदी पाने का सबसे आसान और तेज जरिया है। नीचे कुछ टिप्स दी जा रही हैं जिनकी मदद से आप बेहतर तरीके से अपनी कार्यकारी पूंजी की जरूरतों का प्रबंधन कर पाएंगे।

अपनी मौजूदा स्थिति का आकलन करें

पहला कदम है कि कंपनी में आ रही पूंजी और जा रही पूंजी के स्वरूप को समझा दाए। इससे आपको दिक्कत वाले मामले पहचानने में मदद होगी, जैसे बिल के भुगतान में देरी या भुगतानकर्ता। इस जानकारी की मदद से कंपनी की आय और खर्चों में तालमेल बिठा पाएंगे, जिससे कंपनी के कामकाज में कोई अड़चन नहीं आएगी। साथ ही, इससे कारोबार पर असर पड़ने की संभावना भी कम हो जाएगी।

सप्लाइअर के साथ बेहतर रिश्ता बनाएं

अगर मुमकिन हो तो अपने सप्लाइअर को बड़े भुगतान को किश्तों में लेने के लिए राजी करें, इससे आपका एकमुश्त नकद भुगतान का बोझ कम होगा। साथ ही, सप्लाइअर से बेहतर शर्तों पर सामान लेने कोशिश करें, जैसे भुगतान के लिए ज्यादा लंबा वक्त। 

स्टॉक पर नजर बनाए रखें

माल के स्टॉक पर नजर बनाए रखना जितना मुश्किल का काम है, उतना ही ये संतुलित कार्यकारी पूंजी कायम रखने के लिए अहम है। इससे आपको पूरे स्टॉक की साफ तस्वीर मिलती है और इससे आप कंपनी की नकदी पर असर डालने वाले अतिरिक्त स्टॉक की आसानी से पहचान कर सकते हैं और इससे बच सकते हैं। 

कंपनी की आमदनी

आप ग्राहकों के साथ करार करते वक्त डिपॉजिट या चुनिंदा ग्राहकों के साथ जल्द भुगतान के लिए समझौता करने की कोशिश करें। या फिर, ग्राहकों से बकाया जल्द से जल्द वसूलने की नीति बनाएं। जल्द भुगतान के लिए आप ग्राहकों को छूट भी दे सकते हैं। इससे सुनिश्चित होगा कि आपकी कंपनी के पास हमेशा नकदी मौजूद रहेगी। 

वक्त-वक्त पर इस प्रक्रिया की समीक्षा और विश्लेषण कीजिए और अपनी छोटी अवधि और लंबी अवधि के वित्तीय प्रबंधन को बेहतर बनाने के नए तरीके ढूंढ़ते रहिए। खासतौर पर ये स्टार्टअप के लिए बेहद अहम है क्योंकि इससे आप सफल कारोबार की नींव रख सकते हैं। 

संवादपत्र

संबंधित लेख

Union Budget