- Date : 23/12/2022
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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से आदिवासी महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में समान अधिकार से वंचित करने वाले कानून में संशोधन पर विचार करने को कहा।

Hindu Succession Act: पूरी दुनिया की महिलायें पारिवारिक संपत्ति पर अधिकार पाने के लिए लगातार संघर्ष करती आई हैं। अलग-अलग समाजों में, महिलाओं को संपत्ति का अधिकार न देने के पीछे यह धारणा थी कि वे उस परिवार में स्थायी रूप से नहीं रहती जहाँ उनका जन्म होता है। विवाह के बाद, वे दूसरे परिवार में चली जाती हैं और उसका हिस्सा बन जाती हैं। इसलिए, परिवार की संपत्तियों पर केवल पुरुष सदस्यों का ही अधिकार था। पिछले कुछ दशकों में महिलाओं के संपत्ति संबंधी अधिकारों में काफी बदलाव हुआ है।
भारत में महिलाओं के संपत्ति कानूनों और उनके अधिकारों को समझने के लिए हिंदू कानून के तहत महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को जानना ज़रूरी है।
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हिंदू महिलाओं के संपत्ति संबंधी अधिकार
भारत में हिंदू महिलाओं के संपत्ति संबंधी अधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और हिंदू महिलाओं का संपत्ति अधिकार अधिनियम, 1937 द्वारा नियंत्रित हैं। हिंदू महिलाओं का संपत्ति का अधिकार अधिनियम, 1937 मुख्य रूप से हिंदू विधवाओं के संपत्ति अधिकारों से संबंधित है। इस कानून से उन्हें अपने पति की वसीयत न की गई संपत्ति में अपने बेटों के बराबर हिस्सा प्राप्त करने की अनुमति मिली। यह कानून महिलाओं के संपत्ति अधिकारों से संबंधित मुद्दों को पूरी तरह से हल करने में असफल रहा। इसमें हिंदू महिलाओं को सहदायिकी अधिकार भी नहीं दिए गए। 174वें विधि आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों पर लागू किए गए हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 ने 1956 के अधिनियम में कुछ बेहतर बदलाव किए। यह भारत में लैंगिक असमानता से छुटकारा पाने की दिशा में एक सफल कदम है।
सहदायिकी संपत्ति का मतलब एक हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) के सदस्यों द्वारा अधिग्रहित किसी भी पैतृक संपत्ति से है। 2005 के संशोधन से पहले, केवल तीन पुरुष वंशज (पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र) सहदायिक होते थे और संपत्ति के हकदार थे। महिलाएं सहदायिक न होने के कारण इससे वंचित थीं। 2005 के संशोधन से 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 में संशोधन कर महिलाओं को सहदायिक बनाया गया।
9 दिसंबर, 2022 को एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों की फिर से जांच करने के लिए कहा, जो एक आदिवासी महिला को उसके पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित करता है। एक महिला को "जीवित रहने के अधिकार" से वंचित करने का कोई औचित्य नहीं है। संविधान के अस्तित्व में आने के 70 साल बाद भी आदिवासी महिलाएं पिता की संपत्ति पर समान अधिकार से वंचित था। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होता है।
अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों की जांच करे और यदि आवश्यक हो, तो इसे अनुसूचित जनजातियों तक विस्तारित करने के लिए क़ानून में संशोधन करे।
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