- Date : 24/10/2019
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भारत में सोने की कीमतों पर असर डालने वाले कारणों के बारे में जानें।

दुनिया भर में कुछ कारण हैं जो सोने की कीमतों पर असर डालते हैं जैसे मंहगाई, सोने की आपूर्ति, केन्द्रीय बैंक का सोने को खरीदने या बेचने का निर्णय, एक्सचेंज ट्रैडेड फंड (ईटीएफ) के द्वारा सोने का व्यापार, आर्थिक स्थिति आदि। आइए एक-एक करके इन सभी पर नज़र डालते हैं:
हालांकि, दोनों के बीच किसी विशेष संबंध का दावा करना गलत होगा। 21वीं सदी के पहले दशक में आई भयानक मंदी से पहले ही सोने की कीमतों में उछाल आ रहा था और स्थिति सुधरने के बाद कीमतें उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं। हालांकि सोने की कीमतों ने मंदी के कारण आई महंगाई पर अपनी प्रतिक्रिया दिखाई थी।
(उदाहरण के लिए, गोल्ड ट्रस्ट्स और गोल्ड शेयर्स) के द्वारा भी की जाती है और इसका भी बहुत प्रभाव पड़ता है। इस तरह से किए गए लेनदेन से सोने की मांग और आपूर्ति पर असर पड़ता है।
भारतीय पारम्परिक रूप से गहनों के रूप में सोना खरीदते हैं। शादियों और त्यौहारों के समय पूरे भारत में सोना खरीदा जाता है। जिसके कारण त्यौहारों और शादियों के मौसम ( आमतौर से अक्टूबर से दिसम्बर) में सोने की मांग बढ़ जाती है, इस मांग पर सोने की कीमत का प्रभाव नहीं पड़ता। इस त्यौहारी मांग के चलते ही भारत बड़ी मात्रा में सोने का आयात करता है।
भारत में शहरी लोगों के पास सोने के अलावा भी निवेश के बहुत से विकल्प ( रियल एस्टेट, शेयर बाज़ार आदि) हैं। ग्रामीण भारत पारम्परिक रूप से सोने में निवेश करता रहा है। आंकड़ों से भी इसको समझा जा सकता है, भारत में सोने की मांग का 60% हिस्सा ग्रामीण इलाकों से आता है। मानसून अच्छा रहने पर फसल अच्छी होती है और उससे हुई कमाई से सोने में निवेश किया जाता है। इस सोने को मुश्किल दिनों में इस्तेमाल किया जाता है। मानसून अच्छा ना होने पर कमाई कम होती है और ऐसे में पहले खरीदा गया सोना काम आता है।
इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत में सोने की अधिकांश मांग आयात से पूरी की जाती है। रूपये की गिरती कीमतों के कारण रूपये की क्रय शक्ति में कमी आती है जिसके कारण आयात कम होता है और सोने की मांग में भी कमी आती है। ऐसा केवल भारत में ही देखा जाता है क्योंकि वैश्विक सोने के बाज़ार घरेलू मुद्राओं से प्रभावित नहीं होते।
पारम्परिक ऐसेट्स के साथ जुड़े जोखिमों और तनाव को देखते हुए सोने में निवेश को बेहतर माना जाता है। यह भी देखा गया है कि आमतौर पर सोने का किसी दूसरे पारम्परिक ऐसेट्स का साथ कोई रिश्ता नहीं है। कोई खास ऐसेट बाज़ार के दबाव में हो तो भी सोने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए सोने में निवेश करने के निर्णय पर दूसरे ऐसेट्स के अस्थिर या स्थिर होने का प्रभाव पड़ सकता है।
भारत में सोने को लेकर प्यार पीढ़ियों से चला आ रहा है, दूरदृष्टि से देखें तो यह पसंद सही लगती है। अर्थशास्त्री क्लाउड बी एर्ब (नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च) और कैंपबेल हार्वे (फुक्वा स्कूल ऑफ बिजनेस, ड्यूक यूनिवर्सिटी ) ने हज़ारों वर्ष पहले के सोने के मूल्य की तुलना आज के सोने के मूल्यों से की और उन्होंने पता लगाया कि सोने ने इस लंबे समय में भी आमतौर से अपने मूल्य को बनाए रखा है।
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