घटती चमक: सोने की घटती कीमतें और इससे जुड़े जोखिम | Falling gold prices hit demand for loans against jewellery: What you need to know

ज़्यादातर कंज्यूमर लोन की तुलना में गोल्ड लोन एक सस्ता विकल्प हो सकता है, लेकिन सोने की कीमतों में गिरावट ने इसकी मांग पर उल्टा असर डाला है.

सोने की घटती कीमतें और इससे जुड़े जोखिम

जहाँ एक ओर 2020 में सोने की मांग ने नए स्तर छुए, वहीं 2021 में इसके विपरीत हो रहा है. आरबीआई के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, बैंकों और प्राइवेट लेंडर्स ने पिछले साल गोल्ड लोन की बिक्री में 132 फीसदी की वृद्धि दर्ज की. हालांकि, इस साल जनवरी से सोने की कीमतों में गिरावट के साथ, गोल्ड लोन ग्रोथ कम होने का संकेत दे रहा है. 

धीरे-धीरे ही सही लेकिन यह तो तय है कि लोन लेने वालों के लिए गोल्ड लोन ज़्यादा महंगा होता जा रहा है. कारण: कोलैटरल के घटते दाम एवं कीमतों में और गिरावट को रोकने के लिए लेंडर्स द्वारा गोल्ड लोन के टेन्योर में कटौती. यह 2020 की शुरुआत के ठीक विपरीत है, जब नौकरी छूटने और वेतन में कटौती के कारण गोल्ड लोन की मांग चरम पर पहुंच गई थी. शेयर बाजारों में गिरावट के चलते निवेशकों ने सोने की ओर रुख किया.

और अब आर्थिक सुधार के संकेत आने के साथ निवेशक, इक्विटी और सरकारी बॉन्ड जैसे अन्य एसेट खरीदने के लिए सोना बेच रहे हैं. लोन लेने वाले लोगों और सोने के खरीदारों के लिए इसके क्या मायने है? आइए जानें.

लोन लेने वालों पर असर

वित्तीय अनिश्चितता के समय में भारतीय परिवारों के पास सोने के बदले उधार लेना अंतिम विकल्प होता है. छोटी अवधि की मुश्किलों से निपटने के लिए गोल्ड लोन, गहनों के मूल्य को नकदी में बदलने में मदद करता है. रिसर्च में यह पाया गया है कि गोल्ड लोन पर डिफ़ॉल्ट दरें, पर्सनल लोन और अन्य प्रकार के डैट का ही एक अंश हैं. केपीएमजी के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में सामान्य डिफ़ॉल्ट दर लगभग 1% -2% है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लोन लेने वाले ज़्यादातर लोग अपने लोन चुकाने पर ध्यान देते हैं और अपने परिवार का सोना वापस घर लाते हैं.

हालांकि, जनवरी से अप्रैल 2021 के बीच सोने की औसत कीमत 51,350 रुपये से गिरकर 46,372 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गई. लोन-टू-वैल्यू (एलटीवी) या सोने की दी गई इकाई के बाजार मूल्य के अनुसार मिल सकने वाले लोन के अधिकतम अमाउंट पर इसका नकारात्मक असर पड़ा है. उदाहरण के लिए, अगर 300 ग्राम सोने का बाज़ार मूल्य 13,91,160 रुपये (46,372 x 300) है, तो आपको 12,52,044 रुपये तक का लोन मिल सकता है.

हालाँकि आरबीआई ने एलटीवी को 75% से बढ़ाकर 90% कर दिया लेकिन कई लेंडर इस स्तर से काफी नीचे भी लोन एप्रूव कर रहे हैं. इसकी वजह? सोने की कीमतों में तेज़ गिरावट से न्यूनतम आवश्यक मार्जिन पर भी असर पड़ सकता है. अगर ऐसा होता है, तो आपको 10% की मार्जिन राशि को कवर करने के लिए आंशिक प्रीपेमेंट करने के लिए कहा जा सकता है. एलटीवी में किसी भी तरह की कमी का मतलब यह भी है कि आपको जितना लोन मिल सकता था, उसमें भी कमी आई है.

इससे मिलती-जुलती बातें: गोल्ड लोन के संबंध में आमतौर पर पूछे जाने वाले 13 प्रश्न

यह सच है कि एलटीवी इस पर भी निर्भर करता है कि गिरवी रखे जाने वाले सोने की गुणवत्ता कैसी है और वज़न कितना है. दुर्भाग्य से, कीमतों में गिरावट का मतलब है कि एक निश्चित लोन अमाउंट पाने के लिए आपको ज़्यादा सोना गिरवी रखना होगा. साथ ही, अगर आपको बड़े लोन की ज़रूरत है, तो ब्याज दर का अनुपात भी ज़्यादा होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब सोने की कीमत गिरती है तो आप लेंडर के लिए गोल्ड लोन देना जोखिम भरा होता है. यही वजह है कि लोन का टेन्योर 270 दिनों से घटकर सिर्फ 90 दिन रह गया है.

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि कीमतों में गिरावट सिर्फ छोटी अवधि के लिए है क्योंकि आर्थिक सुधार तेज़ी से बढ़ रहा है. छोटी से मध्यम अवधि में, सोने की कीमतों के स्थिर होने की उम्मीद है, जिससे गोल्ड लोन में उपभोक्ताओं का विश्वास फिर से मज़बूत होगा.

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सोने के खरीदारों पर प्रभाव

गिरती कीमतों ने सोना खरीदने के लिए सही समय का इंतज़ार कर रहे उपभोक्ताओं के लिए खुशी की लहर ला दी है. जहाँ एक और सोने की कीमत लगभग साल के निचले स्तर पर है, वहीं विश्लेषक पहले से ही मांग में बढ़ोतरी की सम्भावना जता रहे हैं. सरकार द्वारा शुरू किए गए नीतिगत उपायों ने भी अहम भूमिका निभाई है. ज्वैलर्स एसोसिएशन की लंबे समय से चली आ रही मांग पर कार्यवाही करते हुए हाल ही में सोने और चांदी पर आयात शुल्क में कटौती की गई, जिससे कीमतों में और गिरावट आई है. मेकिंग चार्ज, जो सोने के बाज़ार मूल्य के 15% -20% के लगभग है, में कटौती से भी खरीदारों का उत्साह बढ़ने की संभावना है.

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वहीं दूसरी ओर, गोल्ड ईटीएफ की किस्मत में उलटफेर देखने को मिल रहा है, जिसमें एनएवी एक साल पहले देखी गई रिकॉर्ड ऊंचाई से लगातार गिर रहा है. 2020-21 में, ईटीएफ का इनफ्लो पिछले वर्ष की तुलना में चौगुना होकर 6919 करोड़ रुपये हो गया. अब, आने वाले महीनों में कीमतों में और गिरावट की उम्मीद के साथ, ईटीएफ खरीदने को लेकर थोड़ी सावधानी बरती जा रही है. हालांकि, लंबी अवधि के निवेशकों के लिए, गोल्ड ईटीएफ अभी भी एक आकर्षक विकल्प हो सकता है क्योंकि समय के साथ इसका प्रदर्शन किसी भी अल्पकालिक नुकसान की भरपाई कर ही देता है.

इससे मिलती-जुलती बातें: गोल्ड लोन के बारे में 5 अफवाहें जिन पर आपको विश्वास नहीं करना चाहिए

अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्याज दर में उतार-चढ़ाव से सोने की कीमत घटती है. भू-राजनीतिक घटनाओं, मुद्रा विनिमय दरों और बांड यील्ड का भी इस पर असर पड़ता है. सोने के मूल्य का आकलन करने के लिए अमेरिका में प्रचलित ब्याज दरें एक अच्छा इंडिकेटर हैं. जब फेडरल रिजर्व दरों में कटौती करता है, तो सोने की कीमत बढ़ जाती है, जबकि ब्याज दरों में कोई भी वृद्धि होने पर सोने की कीमतों में गिरावट आती है. 20 वर्षों में सोने के इन रुझानों को देखें और एक सोने के स्मार्ट खरीदार कैसे बनें.

जहाँ एक ओर 2020 में सोने की मांग ने नए स्तर छुए, वहीं 2021 में इसके विपरीत हो रहा है. आरबीआई के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, बैंकों और प्राइवेट लेंडर्स ने पिछले साल गोल्ड लोन की बिक्री में 132 फीसदी की वृद्धि दर्ज की. हालांकि, इस साल जनवरी से सोने की कीमतों में गिरावट के साथ, गोल्ड लोन ग्रोथ कम होने का संकेत दे रहा है. 

धीरे-धीरे ही सही लेकिन यह तो तय है कि लोन लेने वालों के लिए गोल्ड लोन ज़्यादा महंगा होता जा रहा है. कारण: कोलैटरल के घटते दाम एवं कीमतों में और गिरावट को रोकने के लिए लेंडर्स द्वारा गोल्ड लोन के टेन्योर में कटौती. यह 2020 की शुरुआत के ठीक विपरीत है, जब नौकरी छूटने और वेतन में कटौती के कारण गोल्ड लोन की मांग चरम पर पहुंच गई थी. शेयर बाजारों में गिरावट के चलते निवेशकों ने सोने की ओर रुख किया.

और अब आर्थिक सुधार के संकेत आने के साथ निवेशक, इक्विटी और सरकारी बॉन्ड जैसे अन्य एसेट खरीदने के लिए सोना बेच रहे हैं. लोन लेने वाले लोगों और सोने के खरीदारों के लिए इसके क्या मायने है? आइए जानें.

लोन लेने वालों पर असर

वित्तीय अनिश्चितता के समय में भारतीय परिवारों के पास सोने के बदले उधार लेना अंतिम विकल्प होता है. छोटी अवधि की मुश्किलों से निपटने के लिए गोल्ड लोन, गहनों के मूल्य को नकदी में बदलने में मदद करता है. रिसर्च में यह पाया गया है कि गोल्ड लोन पर डिफ़ॉल्ट दरें, पर्सनल लोन और अन्य प्रकार के डैट का ही एक अंश हैं. केपीएमजी के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में सामान्य डिफ़ॉल्ट दर लगभग 1% -2% है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लोन लेने वाले ज़्यादातर लोग अपने लोन चुकाने पर ध्यान देते हैं और अपने परिवार का सोना वापस घर लाते हैं.

हालांकि, जनवरी से अप्रैल 2021 के बीच सोने की औसत कीमत 51,350 रुपये से गिरकर 46,372 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गई. लोन-टू-वैल्यू (एलटीवी) या सोने की दी गई इकाई के बाजार मूल्य के अनुसार मिल सकने वाले लोन के अधिकतम अमाउंट पर इसका नकारात्मक असर पड़ा है. उदाहरण के लिए, अगर 300 ग्राम सोने का बाज़ार मूल्य 13,91,160 रुपये (46,372 x 300) है, तो आपको 12,52,044 रुपये तक का लोन मिल सकता है.

हालाँकि आरबीआई ने एलटीवी को 75% से बढ़ाकर 90% कर दिया लेकिन कई लेंडर इस स्तर से काफी नीचे भी लोन एप्रूव कर रहे हैं. इसकी वजह? सोने की कीमतों में तेज़ गिरावट से न्यूनतम आवश्यक मार्जिन पर भी असर पड़ सकता है. अगर ऐसा होता है, तो आपको 10% की मार्जिन राशि को कवर करने के लिए आंशिक प्रीपेमेंट करने के लिए कहा जा सकता है. एलटीवी में किसी भी तरह की कमी का मतलब यह भी है कि आपको जितना लोन मिल सकता था, उसमें भी कमी आई है.

इससे मिलती-जुलती बातें: गोल्ड लोन के संबंध में आमतौर पर पूछे जाने वाले 13 प्रश्न

यह सच है कि एलटीवी इस पर भी निर्भर करता है कि गिरवी रखे जाने वाले सोने की गुणवत्ता कैसी है और वज़न कितना है. दुर्भाग्य से, कीमतों में गिरावट का मतलब है कि एक निश्चित लोन अमाउंट पाने के लिए आपको ज़्यादा सोना गिरवी रखना होगा. साथ ही, अगर आपको बड़े लोन की ज़रूरत है, तो ब्याज दर का अनुपात भी ज़्यादा होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब सोने की कीमत गिरती है तो आप लेंडर के लिए गोल्ड लोन देना जोखिम भरा होता है. यही वजह है कि लोन का टेन्योर 270 दिनों से घटकर सिर्फ 90 दिन रह गया है.

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि कीमतों में गिरावट सिर्फ छोटी अवधि के लिए है क्योंकि आर्थिक सुधार तेज़ी से बढ़ रहा है. छोटी से मध्यम अवधि में, सोने की कीमतों के स्थिर होने की उम्मीद है, जिससे गोल्ड लोन में उपभोक्ताओं का विश्वास फिर से मज़बूत होगा.

इससे मिलती-जुलती बातें: गोल्ड लोन ने छोटे व्यवसायों के लिए खोले अवसर

सोने के खरीदारों पर प्रभाव

गिरती कीमतों ने सोना खरीदने के लिए सही समय का इंतज़ार कर रहे उपभोक्ताओं के लिए खुशी की लहर ला दी है. जहाँ एक और सोने की कीमत लगभग साल के निचले स्तर पर है, वहीं विश्लेषक पहले से ही मांग में बढ़ोतरी की सम्भावना जता रहे हैं. सरकार द्वारा शुरू किए गए नीतिगत उपायों ने भी अहम भूमिका निभाई है. ज्वैलर्स एसोसिएशन की लंबे समय से चली आ रही मांग पर कार्यवाही करते हुए हाल ही में सोने और चांदी पर आयात शुल्क में कटौती की गई, जिससे कीमतों में और गिरावट आई है. मेकिंग चार्ज, जो सोने के बाज़ार मूल्य के 15% -20% के लगभग है, में कटौती से भी खरीदारों का उत्साह बढ़ने की संभावना है.

इससे मिलती-जुलती बातें: गोल्ड लोन के लिए एप्लाई करते समय 5 गलतियों से बचें

वहीं दूसरी ओर, गोल्ड ईटीएफ की किस्मत में उलटफेर देखने को मिल रहा है, जिसमें एनएवी एक साल पहले देखी गई रिकॉर्ड ऊंचाई से लगातार गिर रहा है. 2020-21 में, ईटीएफ का इनफ्लो पिछले वर्ष की तुलना में चौगुना होकर 6919 करोड़ रुपये हो गया. अब, आने वाले महीनों में कीमतों में और गिरावट की उम्मीद के साथ, ईटीएफ खरीदने को लेकर थोड़ी सावधानी बरती जा रही है. हालांकि, लंबी अवधि के निवेशकों के लिए, गोल्ड ईटीएफ अभी भी एक आकर्षक विकल्प हो सकता है क्योंकि समय के साथ इसका प्रदर्शन किसी भी अल्पकालिक नुकसान की भरपाई कर ही देता है.

इससे मिलती-जुलती बातें: गोल्ड लोन के बारे में 5 अफवाहें जिन पर आपको विश्वास नहीं करना चाहिए

अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्याज दर में उतार-चढ़ाव से सोने की कीमत घटती है. भू-राजनीतिक घटनाओं, मुद्रा विनिमय दरों और बांड यील्ड का भी इस पर असर पड़ता है. सोने के मूल्य का आकलन करने के लिए अमेरिका में प्रचलित ब्याज दरें एक अच्छा इंडिकेटर हैं. जब फेडरल रिजर्व दरों में कटौती करता है, तो सोने की कीमत बढ़ जाती है, जबकि ब्याज दरों में कोई भी वृद्धि होने पर सोने की कीमतों में गिरावट आती है. 20 वर्षों में सोने के इन रुझानों को देखें और एक सोने के स्मार्ट खरीदार कैसे बनें.

संवादपत्र

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