- Date : 09/10/2020
- Read: 4 mins
- Read in English: COVID-19 and mental health: Is it covered under health insurance?
कोविड-19 के कारण मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को सामने लाने से, यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या इस श्रेणी के रोग स्वास्थ्य बीमा द्वारा कवर किए जाते हैं|

पिछले कुछ महीनों में हमने देखा कि दुनिया विभिन्न जगहों पर कोविड-19 से प्रभावित हो रही है-हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरा, अर्थव्यवस्था की मंदी, हमारी सामाजिक संरचनाओं में अचानक परिवर्तन, और अन्य चीज़ों के अलावा ,जिस तरह से हम दैनिक आधार पर हमारे जीवन जी रहे हैं। इन सब ने लोगों के एक बड़े वर्ग के बीच अनिश्चितता, भय, चिंता और तनाव की भावनाओं को पैदा किया है । इसके कारण मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बातचीत बढ़ने लगी है ।
हालांकि मानसिक स्वास्थ्य ने पिछले दशक में सार्वजनिक क्षेत्र में अपने महत्व का सही स्थान प्राप्त किया है, लेकिन इन मुश्किल समय में यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है। न केवल हम नॉवल कोरोनावायरस और उसके कारण होने वाले स्वास्थ्य परिणामों के शिकार होने के बारे में चिंतित हैं, पर हम इसके अन्य नज़दीकी और दीर्घकालिक समस्याओं के बारे में चिंता से भी परेशान हैं : नौकरियों की हानि, घर से हर रोज काम करने की अवधारणा में ढलना, हमारे बच्चों की होम स्कूलिंग, बाहर की दुनिया के साथ भौतिक संपर्क न होना या कम होना , और भविष्य में संभावित अनिश्चितता के उच्च स्तर ।
महामारी का एक प्रमुख असर यह है कि इस स्थिति में कई लोगों की शिकायत है कि वे चिंता, अवसाद, और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं । मानसिक बीमारियों के धीरे पर बढ़ते उपचार के साथ,हम देख रहे हैं कि स्वास्थ्य देखभाल पर औसत व्यय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इसमें जा रहा है , यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या यह भारत में स्वास्थ्य बीमा प्रदाताओं द्वारा कवर किया जाता है, और यदि हां, तो किस हद तक ।
फर्क करना
हालांकि स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में आम तौर पर केवल शारीरिक बीमारियों के उपचार को कवर किया गया है, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रवर्तन के बाद बदलाव आया है ।यह मानसिक बीमारी को ' सोच, मनोदशा, धारणा, ओरिएंटेशन , या स्मृति के एक विकार ' के रूप में परिभाषित करता है जो निर्णय, व्यवहार, वास्तविकता को पहचानने की क्षमता या जीवन की साधारण मांगों को पूरा करने की क्षमता, शराब और ड्रग्स के दुरुपयोग से जुड़ी मानसिक स्थितियों को बेहद ख़राब करता है, लेकिन इसमें मानसिक मंदता शामिल नहीं है जो किसी व्यक्ति के बुद्धि के नहीं चलने या अधूरे विकास की स्थिति में होता है , जो विशेष रूप से विवेक की उप-सामान्यता के कारण होता है ।' इसमें यह निर्धारित किया गया है कि स्वास्थ्य बीमा प्रदाताओं को मानसिक स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना चाहिए जो शारीरिक बीमारियों के अनुरूप हो ।
यह अधिनियम 24 घंटे की अनिवार्य अस्पताल में भर्ती होने के साथ किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति के कवरेज को लागू करता है, जो शारीरिक बीमारियों के मामले में भी समान है । इसमें मानसिक स्थिति के विश्लेषण और निदान की प्रक्रिया के साथ-साथ इसके लिए देखभाल और उपचार भी शामिल है। इस अधिनियम में मानसिक मंदता को शामिल नहीं किया गया है।
नियामक कदम
जबकि भारत में सबसे अच्छी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को अब तक अपने कवरेज में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल कर लेना चाहिए था, परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं है। दरअसल, जून 2020 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) को नोटिस जारी कर इसे सख्ती से लागू करने को कहा था।
इस नियम का पालन करने में स्वास्थ्य बीमा प्रदाताओं में देरी का कारण काफी हद तक मानसिक बीमारियों के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी अस्पष्टता में निहित है, उनके निदान और उपचार से लेकर इसके मौजूदा खर्चों तक। नियामकों के साथ-साथ स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ,दोनों के सामने एक और उलझन यह है कि ओपीडी में ज्यादातर मानसिक बीमारियों का इलाज किया जाता है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती ।कई प्रमुख बीमा प्रदाता, जो भारत में सबसे अच्छा स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने का दावा करते हैं, इस समस्या को हल करके अपनी धाक ज़माने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं।
आईआरडीएआई ने अनिवार्य किया है कि सभी बुनियादी क्षतिपूर्ति योजनाओं में मानसिक बीमारियों को शामिल किया जाना चाहिए और इनका इलाज शारीरिक बीमारियों के समान ही किया जाना चाहिए ।ऐसा करने की समय सीमा अक्टूबर 2020 तक निर्धारित की गई है । स्वास्थ्य बीमा प्रदाता या तो अस्पताल में भर्ती होने या ओपीडी कवरेज प्रदान करने पर काम कर रहे हैं, या दोनों के एक मिश्रण में, जो इसे वास्तव में सबसे अच्छा स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी बनाएगा । मानसिक बीमारी के कारण होने वाले किसी भी शारीरिक बीमारी को भी इसमें कवर किया जाएगा।
अंतिम शब्द
आईआरडीएआई के इस निर्देश से मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए भविष्य उज्जवल नज़र आ रहा है । हालांकि मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता की दिशा में प्रयासों ने इस स्थिति से जुड़े कलंक और जो इससे पीड़ित हैं,उनकी व्यथा को कम करने के लिए काफी चमत्कारी काम किये है , यह नई पहल निश्चित रूप से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से लड़ने वालों के लिए चीजों को बहुत आसान बना देगी ।
पिछले कुछ महीनों में हमने देखा कि दुनिया विभिन्न जगहों पर कोविड-19 से प्रभावित हो रही है-हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरा, अर्थव्यवस्था की मंदी, हमारी सामाजिक संरचनाओं में अचानक परिवर्तन, और अन्य चीज़ों के अलावा ,जिस तरह से हम दैनिक आधार पर हमारे जीवन जी रहे हैं। इन सब ने लोगों के एक बड़े वर्ग के बीच अनिश्चितता, भय, चिंता और तनाव की भावनाओं को पैदा किया है । इसके कारण मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बातचीत बढ़ने लगी है ।
हालांकि मानसिक स्वास्थ्य ने पिछले दशक में सार्वजनिक क्षेत्र में अपने महत्व का सही स्थान प्राप्त किया है, लेकिन इन मुश्किल समय में यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है। न केवल हम नॉवल कोरोनावायरस और उसके कारण होने वाले स्वास्थ्य परिणामों के शिकार होने के बारे में चिंतित हैं, पर हम इसके अन्य नज़दीकी और दीर्घकालिक समस्याओं के बारे में चिंता से भी परेशान हैं : नौकरियों की हानि, घर से हर रोज काम करने की अवधारणा में ढलना, हमारे बच्चों की होम स्कूलिंग, बाहर की दुनिया के साथ भौतिक संपर्क न होना या कम होना , और भविष्य में संभावित अनिश्चितता के उच्च स्तर ।
महामारी का एक प्रमुख असर यह है कि इस स्थिति में कई लोगों की शिकायत है कि वे चिंता, अवसाद, और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं । मानसिक बीमारियों के धीरे पर बढ़ते उपचार के साथ,हम देख रहे हैं कि स्वास्थ्य देखभाल पर औसत व्यय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इसमें जा रहा है , यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या यह भारत में स्वास्थ्य बीमा प्रदाताओं द्वारा कवर किया जाता है, और यदि हां, तो किस हद तक ।
फर्क करना
हालांकि स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में आम तौर पर केवल शारीरिक बीमारियों के उपचार को कवर किया गया है, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रवर्तन के बाद बदलाव आया है ।यह मानसिक बीमारी को ' सोच, मनोदशा, धारणा, ओरिएंटेशन , या स्मृति के एक विकार ' के रूप में परिभाषित करता है जो निर्णय, व्यवहार, वास्तविकता को पहचानने की क्षमता या जीवन की साधारण मांगों को पूरा करने की क्षमता, शराब और ड्रग्स के दुरुपयोग से जुड़ी मानसिक स्थितियों को बेहद ख़राब करता है, लेकिन इसमें मानसिक मंदता शामिल नहीं है जो किसी व्यक्ति के बुद्धि के नहीं चलने या अधूरे विकास की स्थिति में होता है , जो विशेष रूप से विवेक की उप-सामान्यता के कारण होता है ।' इसमें यह निर्धारित किया गया है कि स्वास्थ्य बीमा प्रदाताओं को मानसिक स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना चाहिए जो शारीरिक बीमारियों के अनुरूप हो ।
यह अधिनियम 24 घंटे की अनिवार्य अस्पताल में भर्ती होने के साथ किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति के कवरेज को लागू करता है, जो शारीरिक बीमारियों के मामले में भी समान है । इसमें मानसिक स्थिति के विश्लेषण और निदान की प्रक्रिया के साथ-साथ इसके लिए देखभाल और उपचार भी शामिल है। इस अधिनियम में मानसिक मंदता को शामिल नहीं किया गया है।
नियामक कदम
जबकि भारत में सबसे अच्छी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को अब तक अपने कवरेज में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल कर लेना चाहिए था, परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं है। दरअसल, जून 2020 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) को नोटिस जारी कर इसे सख्ती से लागू करने को कहा था।
इस नियम का पालन करने में स्वास्थ्य बीमा प्रदाताओं में देरी का कारण काफी हद तक मानसिक बीमारियों के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी अस्पष्टता में निहित है, उनके निदान और उपचार से लेकर इसके मौजूदा खर्चों तक। नियामकों के साथ-साथ स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ,दोनों के सामने एक और उलझन यह है कि ओपीडी में ज्यादातर मानसिक बीमारियों का इलाज किया जाता है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती ।कई प्रमुख बीमा प्रदाता, जो भारत में सबसे अच्छा स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने का दावा करते हैं, इस समस्या को हल करके अपनी धाक ज़माने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं।
आईआरडीएआई ने अनिवार्य किया है कि सभी बुनियादी क्षतिपूर्ति योजनाओं में मानसिक बीमारियों को शामिल किया जाना चाहिए और इनका इलाज शारीरिक बीमारियों के समान ही किया जाना चाहिए ।ऐसा करने की समय सीमा अक्टूबर 2020 तक निर्धारित की गई है । स्वास्थ्य बीमा प्रदाता या तो अस्पताल में भर्ती होने या ओपीडी कवरेज प्रदान करने पर काम कर रहे हैं, या दोनों के एक मिश्रण में, जो इसे वास्तव में सबसे अच्छा स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी बनाएगा । मानसिक बीमारी के कारण होने वाले किसी भी शारीरिक बीमारी को भी इसमें कवर किया जाएगा।
अंतिम शब्द
आईआरडीएआई के इस निर्देश से मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए भविष्य उज्जवल नज़र आ रहा है । हालांकि मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता की दिशा में प्रयासों ने इस स्थिति से जुड़े कलंक और जो इससे पीड़ित हैं,उनकी व्यथा को कम करने के लिए काफी चमत्कारी काम किये है , यह नई पहल निश्चित रूप से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से लड़ने वालों के लिए चीजों को बहुत आसान बना देगी ।