- Date : 22/03/2018
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इस विश्व क्षय रोग दिवस पर, हम भारत में टीबी की महिला रोगियों और सर्वाइवर्स की स्थिति के बारे में बात करते हैं।

भारत में वर्तमान में 2.7 मिलियन ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के केसेस हैं, और इन रोगियों को कई वर्षों तक एक एक सहानुभूति न रखनेवाले समाज से जूझना होता है। वे न केवल इस बीमारी से पीड़ित हैं, बल्कि वे सामाजिक कलंक होने, गलत सूचना पाने और अपमान से भी ग्रस्त हो रहे हैं। खासकर ग्रामीण भारत की महिलायें जो हर तरह से कमजोर हैं ।
इस स्थिति को अब महिलाओं के एक समूह ने जिसमे सभी टीबी की मरीज थीं और इस बीमारी से उबर चुकी है, अब लोगों में इस बीमारी के बारे में जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से और जिन महिला टीबी रोगियों को उनकी स्थिति के कारण सामाजिक रूप से अपमानित किया गया है उन महिलाओं को सपोर्ट देते हुए एक अभियान चलाया है । "बोलो दीदी" नामक इस अभियान का जन्म तब हुआ जब फिल्म निर्माता रीया लोबो, जिन्हें स्वयम को टीबी हुई थी, उनके साथ जिन अन्य लोगों को भी टीबी हुई थी, उन बचे हुए लोगों की कहानियों पर आधारित दो मिनट की फिल्म बनाई और इसे यूट्यूब पर रिलीज किया।
जिन महिलाओं को इस बीमारी ने पकड़ा था वे फेसबुक और व्हाट्सएप के माध्यम से बाहर पहुंचने लगीं। यह अभियान भारत की उस दुखद स्थिति को भी दर्शाता है: महिलायें जो एक अच्छी आर्थिक पृष्ठभूमि से आती हैं और वे फेसबुक, यूट्यूब और व्हाट्सएप का प्रयोग करती हैं वे भी सामाजिक घृणा की पात्र बन गईं हैं। यद्यपि पुरुष टीबी रोगियों की संख्या ने महिला रोगियों की संख्या को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन फिर भी महिलायें ही इससे त्रस्त हैं। किसी को भी पिछड़े सामाजिक पृष्ठभूमि की महिलाओं की इस असहायता पर आश्चर्य हो सकता है
लेकिन एक मिनट रुकिए, क्या टीबी एक ऐसा रोग नहीं है जो स्त्री-पुरुष में भेदभाव नहीं करता? या क्या यह एक ऐसी स्थिति है जिसके चपेट में विशेष रूप से केवल महिलायें ही आती हैं? दूसरे शब्दों में, जब टीबी की बात आती है तो क्या लिंग का मामला होता है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए की - जब एक महिला टीबी से ग्रस्त होती है तो क्या टीबी विशेष रूप से महत्व रखता है – हमें शायद टीबी में लिंग प्रवृत्तियों और लोग इस मुद्दे को किस तरह लेते हैं इस बारे में अमेरिकी अध्ययन के निष्कर्षों को देखना होगा ।
वैश्विक निष्कर्ष
अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया के 28 देशों में 3 मिलियन से अधिक प्रतिभागियों को कवर करते हुए 88 सर्वेक्षणों के माध्यम से किये गए अध्ययन में निकाले गए निष्कर्ष को, सितंबर 2016 की अमेरिकी स्वास्थ्य पत्रिका पीएलओएस मेडिसिन के अंक में प्रकाशित किया गया था।
इस अध्ययन के अनुसार यह पता चला है कि, लोगों को गलत धारणा है कि स्वास्थ्य समस्याएं केवल महिलाओं को होती हैं, जबकि वास्तविकता में किसी भी रोग की घटनाओं पर विशेष रूप से जो रोग संक्रामक हैं और वे रोग किस तरह फैलते हैं इस पर लोगों का ध्यान केंद्रित होना चाहिए, ।
यद्यपि वैश्विक स्वास्थ्य उपायों द्वारा महिलाओं के स्वास्थ्य का भी विषय होने के कारण इसमें लिंग भेद को समाप्त करने के लिए कार्य किया गया है, परन्तु टीबी के मामले में यह कार्य उनके उद्देश से बहुत से दूर था। कारण: विश्व स्तर पर, टीबी से मृत होनेवाले मरीजों में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में अधिक हैं, इससे और बुरा क्या होगा, की पुरुषों को इसका पता चलने में महिलाओं से 1.5 गुना ज्यादा समय लगता था। अध्ययन के अनुसार, इसका अर्थ यह था कि समय पर निदान करने के लिए महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिए संभावना कम है।
इस अध्ययन ने निष्कर्षों के आधार पर, दो महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं हैं :
- पहला, एक व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में पुरुषों में टीबी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अधिक प्रयास और निवेश की आवश्यकता है। कारण: टीबी का शीघ्र निदान न होना समाज में इस रोग के फैलने का महत्वपूर्ण कारण हो सकता है।
- दूसरा, टीबी और इसके सम्बन्ध में लिंग पर बनाई जानेवाली नीतियों में पुरुषों में टीबी के उच्च प्रसार होने पर विचार किया जाना चाहिए और पुरुष-अनुकूल नैदानिक और स्क्रीनिंग सेवाओं में निवेश करना सुनिश्चित करना चाहिए। इससे टीबी का डायग्नोसिस ना होने की स्थिति में कमी आएगी, रिपोर्ट में यह कहा गया।
लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि टीबी महिलाओं के लिए एक प्रमुख मुद्दा नहीं है? यदि ऐसा है, तो 'बोलो दीदी' जैसी पहल की आवश्यकता क्यों है? न केवल भारत में, लेकिन दुनिया भर में महिलाओं की टीबी की स्थिति वास्तव में क्या दर्शाती है? यहां बताया गया है की इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का क्या कहना है -
यूएनडीपी स्टडी
2015 के डिस्कशन पेपर में यूएनडीपी ने स्वीकार किया कि, विश्व स्तर पर, महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुष टीबी से पीड़ित हैं। उदाहरण के लिए, 2013 में किये गए अनुमानित डायग्नोसिस 9 मिलियन केसेस में 60% पुरुष पाए गए, अनुमानित 1.5 मिलियन केसेस में लगभग 66% मृत्यु पुरुषों की हुई थी।
यह कहते हुए, यूएनडीपी पेपर में कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि टीबी के विषय पर महिलाओं को अपेक्षाकृत कम असुरक्षित माना जाता है, और इसका समर्थन करने के लिए अध्ययन में इन रुझानों का हवाला दिया गया है:
- संक्रामक रोगों में, विश्व स्तर पर टीबी से हुई मौतों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक थीं।
- सभी मातृ मृत्यु दर की तुलना में टीबी के कारण होनेवाली महिलाओं की सालाना मृत्यु दर अधिक होती हैं।
- टीबी और एचआईवी से संक्रमित महिलाओं की संख्या में सह-संक्रमित पुरुषों की तुलना में टीबी से मरने की संभावना अधिक होती है।
- उच्च एचआईवी संक्रमित देशों में, पुरुषों की तुलना में महिलायें टीबी से अधिक पीड़ित हैं।
अध्ययन में यह भी देखा गया कि टीबी महिलाओं को तीन तरह से कैसे प्रभावित करती है : (अ) जैविक अंतर और टीबी का खतरा (ब) गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव, और (क) लिंग और सेवाओं तक पहुंच।
जैविक अंतर : पुरुषों में महिलाओं की तुलना में लंग्स टीबी होने की अधिक संभावना होने के कारण बाद के मरीजों में निदान करना और अधिक कठिन था। इसके अलावा, प्रजनन की उम्र की महिलाओं में उसी उम्र समूह के पुरुषों की तुलना में टीबी तेजी से फैलता है। महिलाओं को लंग्स के बाहर भी टीबी संक्रमण होने की अधिक संभावना होती है, जैसे जननांग का टीबी, जिसका निदान करना मुश्किल होता है और इसकी वजह से बांझपन जैसी गंभीर स्थिति हो सकती है।
गर्भावस्था के दौरान प्रभाव: टीबी डायग्नोसिस हुई गर्भवती महिलाओं को समय से पहले बच्चे होने की संभावना दुगुनी होती है, और उनके बच्चों के जन्म के कुछ हफ्तों के भीतर ही मरने की संभावना छह गुना अधिक होती है। टीबी मां के द्वारा बच्चे तक भी संक्रमित हो सकता है।
सेवाओं तक पहुंच: सामाजिक स्थिति अक्सर महिलाओं को उपचार केंद्रों तक पहुंचने से रोकती हैं; उदाहरण के लिए, परिवार के सदस्य सेवाओं के लिए खर्च करने से इनकार कर सकते हैं, या उनकी स्वास्थ्य समस्याओं को महत्व नहीं देते हैं। इसके अलावा, महिला रोगियों को पुरुष रोगियों की तुलना में अधिक अपमानित किया जाता है; यदि विवाहित हो, तो यह वैवाहिक समस्याएं पैदा कर सकता है, या अविवाहित हो तो, उपयुक्त दूल्हे को ढूंढना मुश्किल हो सकता है। हेल्थकेयर बुनियादी ढांचे अक्सर महिलाओं के खिलाफ होते हैं, विशेष रूप से संवेदनशील आबादी, जैसे महिला कैदी, जो पुरुष कैदियों से अधिक टीबी-प्रवण होती हैं – यहां तक कि जब ये सेवाएँ पुरुष कैदियों को प्रदान की जातीं हैं, महिला कैदियों को नहीं दी जाती।
डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट
नवंबर 2015 में जारी टीबी पर प्रकाशित एक डब्लूएचओ तथ्य पत्रक में लिखा है की, "पुरुषों में टीबी से अधिक मौतें होती हैं, लेकिन यह बीमारी "विशेषकर महिलाओं के लिए अधिक गंभीर परिणामकारक हो सकती है, खासकर उनके प्रजनन के दौरान"।
इस तथ्य पत्रक में बताया गया है कि 2014 में अनुमानित 3.2 मिलियन महिलायें टीबी से ग्रस्त हो गईं, जिनमें से 4,80,000 की म्रुत्यु हो गईं। इसमें इस पर भी प्रकाश डाला गया है कि, टीबी 20-59 आयु वर्ग की वयस्क महिलाओं की मृत्यु होने के शीर्ष पांच कारणों में से एक है।
यह बीमारी विशेष रूप से माताओं के लिए खतरनाक होती है, जन्म के बाद बच्चों की मृत्यु होने की संभावना छह गुना अधिक और समय से पहले जन्म होने और जन्म के बाद कम वजन की जोखिम दोगुनी हो जाती है। यदि एक गर्भवती महिला का एचआईवी परीक्षण सकारात्मक होता है, ऐसी स्थिति में टीबी के कारण लगभग 300% तक मातृ एवं शिशु मृत्यु दर का खतरा बढ़ जाता है। भारत में हुए अध्ययन से यह देखा गया है कि अगर मां को टीबी है, तो अजन्मे बच्चे को भी एचआईवी होने का खतरा दोगुना बढ़ सकता है।
टीबी को 'गरीबी की बीमारी' बताते हुए, डब्ल्यूएचओ ने कुछ कारकों की पहचान की जिनके कारण विकासशील देशों की महिलायें टीबी की चपेट में ज्यादा आती हैं :
- लिंग असमानता
- महिलाओं के बीच तंबाकू का इस्तेमाल और मधुमेह का बढ़ाना
- महिलाओं उत्पीड़न और उनके प्रति भेदभाव
- सांस्कृतिक और वित्तीय बाधाएं
इस तथ्य पत्रक के अनुसार, यह रोग महिलाओं को आर्थिक रूप से और प्रजननशील सक्रिय होने पर प्रभावित करता है; और जब वे मर जाती हैं, तो इसका प्रभाव रोगियों से परे उनके बच्चों और परिवारों पर भी जाता है और यह असर काफी जोरदार होता है।
आखिर में
यदि आप इसे पढ़ रहे हैं, तो शायद यह मानना उचित होगा कि आप या आपके परिवार के सदस्यों में से कोई भी इस रोग से संक्रमित हो जाता है इसलिए इस रोग से लड़ने के लिए जरूरी रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करने का प्रयास करना होगा। और यदि आप ऐसा करते हैं तो टीबी संभवतः "निष्क्रिय" हो जाएगा, और इसे इसी स्तर पर मारना अपेक्षाकृत आसान हो जायेगा।
दूसरी ओर, यदि आप कमजोर हैं, तो आप चाहे स्त्री हो या पुरुष, आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली भी कमजोर होगी। उस स्थिति में, टीबी फिर से जीवित हो सकती है और सक्रिय हो सकती है, इसलिए अभी आपको सावधान हो जाना चाहिए। तो यह जरूरी है कि आप अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें; उदाहरण के लिए, यदि आपको खतरनाक खांसी की लहर आती हैं, या थूक से रक्त आता है, आपको एक योग्य चिकित्सक द्वारा स्वयम की जांच कर लेनी चाहिए।
यह भी ध्यान रखें कि जो लोग हमारे लिए काम करते हैं - नौकरानी, ड्राईवर, या इमारत का सुरक्षा गार्ड इनमें से कुछ – उनके रहने की स्थिति के अनुसार, हम से ज्यादा असुरक्षित हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि बीमारी का प्रसार होने से रोकने के लिए उनमें स्वच्छता के महत्व को बढ़ाना है।
यदि उनको या उनके परिवार के किसी सदस्य को यह बीमारी पकड़ लेती हैं, तो उन्हें यह सिखाना होगा कि यह टीबी इलाज योग्य है, लेकिन उन्हें ठीक होने के लिए दी गई हर एक दवा खानी होगी। भाग्यवश, सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर ये दवाएं मुफ्त में उपलब्ध हैं।
भारत में वर्तमान में 2.7 मिलियन ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के केसेस हैं, और इन रोगियों को कई वर्षों तक एक एक सहानुभूति न रखनेवाले समाज से जूझना होता है। वे न केवल इस बीमारी से पीड़ित हैं, बल्कि वे सामाजिक कलंक होने, गलत सूचना पाने और अपमान से भी ग्रस्त हो रहे हैं। खासकर ग्रामीण भारत की महिलायें जो हर तरह से कमजोर हैं ।
इस स्थिति को अब महिलाओं के एक समूह ने जिसमे सभी टीबी की मरीज थीं और इस बीमारी से उबर चुकी है, अब लोगों में इस बीमारी के बारे में जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से और जिन महिला टीबी रोगियों को उनकी स्थिति के कारण सामाजिक रूप से अपमानित किया गया है उन महिलाओं को सपोर्ट देते हुए एक अभियान चलाया है । "बोलो दीदी" नामक इस अभियान का जन्म तब हुआ जब फिल्म निर्माता रीया लोबो, जिन्हें स्वयम को टीबी हुई थी, उनके साथ जिन अन्य लोगों को भी टीबी हुई थी, उन बचे हुए लोगों की कहानियों पर आधारित दो मिनट की फिल्म बनाई और इसे यूट्यूब पर रिलीज किया।
जिन महिलाओं को इस बीमारी ने पकड़ा था वे फेसबुक और व्हाट्सएप के माध्यम से बाहर पहुंचने लगीं। यह अभियान भारत की उस दुखद स्थिति को भी दर्शाता है: महिलायें जो एक अच्छी आर्थिक पृष्ठभूमि से आती हैं और वे फेसबुक, यूट्यूब और व्हाट्सएप का प्रयोग करती हैं वे भी सामाजिक घृणा की पात्र बन गईं हैं। यद्यपि पुरुष टीबी रोगियों की संख्या ने महिला रोगियों की संख्या को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन फिर भी महिलायें ही इससे त्रस्त हैं। किसी को भी पिछड़े सामाजिक पृष्ठभूमि की महिलाओं की इस असहायता पर आश्चर्य हो सकता है
लेकिन एक मिनट रुकिए, क्या टीबी एक ऐसा रोग नहीं है जो स्त्री-पुरुष में भेदभाव नहीं करता? या क्या यह एक ऐसी स्थिति है जिसके चपेट में विशेष रूप से केवल महिलायें ही आती हैं? दूसरे शब्दों में, जब टीबी की बात आती है तो क्या लिंग का मामला होता है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए की - जब एक महिला टीबी से ग्रस्त होती है तो क्या टीबी विशेष रूप से महत्व रखता है – हमें शायद टीबी में लिंग प्रवृत्तियों और लोग इस मुद्दे को किस तरह लेते हैं इस बारे में अमेरिकी अध्ययन के निष्कर्षों को देखना होगा ।
वैश्विक निष्कर्ष
अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया के 28 देशों में 3 मिलियन से अधिक प्रतिभागियों को कवर करते हुए 88 सर्वेक्षणों के माध्यम से किये गए अध्ययन में निकाले गए निष्कर्ष को, सितंबर 2016 की अमेरिकी स्वास्थ्य पत्रिका पीएलओएस मेडिसिन के अंक में प्रकाशित किया गया था।
इस अध्ययन के अनुसार यह पता चला है कि, लोगों को गलत धारणा है कि स्वास्थ्य समस्याएं केवल महिलाओं को होती हैं, जबकि वास्तविकता में किसी भी रोग की घटनाओं पर विशेष रूप से जो रोग संक्रामक हैं और वे रोग किस तरह फैलते हैं इस पर लोगों का ध्यान केंद्रित होना चाहिए, ।
यद्यपि वैश्विक स्वास्थ्य उपायों द्वारा महिलाओं के स्वास्थ्य का भी विषय होने के कारण इसमें लिंग भेद को समाप्त करने के लिए कार्य किया गया है, परन्तु टीबी के मामले में यह कार्य उनके उद्देश से बहुत से दूर था। कारण: विश्व स्तर पर, टीबी से मृत होनेवाले मरीजों में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में अधिक हैं, इससे और बुरा क्या होगा, की पुरुषों को इसका पता चलने में महिलाओं से 1.5 गुना ज्यादा समय लगता था। अध्ययन के अनुसार, इसका अर्थ यह था कि समय पर निदान करने के लिए महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिए संभावना कम है।
इस अध्ययन ने निष्कर्षों के आधार पर, दो महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं हैं :
- पहला, एक व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में पुरुषों में टीबी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अधिक प्रयास और निवेश की आवश्यकता है। कारण: टीबी का शीघ्र निदान न होना समाज में इस रोग के फैलने का महत्वपूर्ण कारण हो सकता है।
- दूसरा, टीबी और इसके सम्बन्ध में लिंग पर बनाई जानेवाली नीतियों में पुरुषों में टीबी के उच्च प्रसार होने पर विचार किया जाना चाहिए और पुरुष-अनुकूल नैदानिक और स्क्रीनिंग सेवाओं में निवेश करना सुनिश्चित करना चाहिए। इससे टीबी का डायग्नोसिस ना होने की स्थिति में कमी आएगी, रिपोर्ट में यह कहा गया।
लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि टीबी महिलाओं के लिए एक प्रमुख मुद्दा नहीं है? यदि ऐसा है, तो 'बोलो दीदी' जैसी पहल की आवश्यकता क्यों है? न केवल भारत में, लेकिन दुनिया भर में महिलाओं की टीबी की स्थिति वास्तव में क्या दर्शाती है? यहां बताया गया है की इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का क्या कहना है -
यूएनडीपी स्टडी
2015 के डिस्कशन पेपर में यूएनडीपी ने स्वीकार किया कि, विश्व स्तर पर, महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुष टीबी से पीड़ित हैं। उदाहरण के लिए, 2013 में किये गए अनुमानित डायग्नोसिस 9 मिलियन केसेस में 60% पुरुष पाए गए, अनुमानित 1.5 मिलियन केसेस में लगभग 66% मृत्यु पुरुषों की हुई थी।
यह कहते हुए, यूएनडीपी पेपर में कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि टीबी के विषय पर महिलाओं को अपेक्षाकृत कम असुरक्षित माना जाता है, और इसका समर्थन करने के लिए अध्ययन में इन रुझानों का हवाला दिया गया है:
- संक्रामक रोगों में, विश्व स्तर पर टीबी से हुई मौतों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक थीं।
- सभी मातृ मृत्यु दर की तुलना में टीबी के कारण होनेवाली महिलाओं की सालाना मृत्यु दर अधिक होती हैं।
- टीबी और एचआईवी से संक्रमित महिलाओं की संख्या में सह-संक्रमित पुरुषों की तुलना में टीबी से मरने की संभावना अधिक होती है।
- उच्च एचआईवी संक्रमित देशों में, पुरुषों की तुलना में महिलायें टीबी से अधिक पीड़ित हैं।
अध्ययन में यह भी देखा गया कि टीबी महिलाओं को तीन तरह से कैसे प्रभावित करती है : (अ) जैविक अंतर और टीबी का खतरा (ब) गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव, और (क) लिंग और सेवाओं तक पहुंच।
जैविक अंतर : पुरुषों में महिलाओं की तुलना में लंग्स टीबी होने की अधिक संभावना होने के कारण बाद के मरीजों में निदान करना और अधिक कठिन था। इसके अलावा, प्रजनन की उम्र की महिलाओं में उसी उम्र समूह के पुरुषों की तुलना में टीबी तेजी से फैलता है। महिलाओं को लंग्स के बाहर भी टीबी संक्रमण होने की अधिक संभावना होती है, जैसे जननांग का टीबी, जिसका निदान करना मुश्किल होता है और इसकी वजह से बांझपन जैसी गंभीर स्थिति हो सकती है।
गर्भावस्था के दौरान प्रभाव: टीबी डायग्नोसिस हुई गर्भवती महिलाओं को समय से पहले बच्चे होने की संभावना दुगुनी होती है, और उनके बच्चों के जन्म के कुछ हफ्तों के भीतर ही मरने की संभावना छह गुना अधिक होती है। टीबी मां के द्वारा बच्चे तक भी संक्रमित हो सकता है।
सेवाओं तक पहुंच: सामाजिक स्थिति अक्सर महिलाओं को उपचार केंद्रों तक पहुंचने से रोकती हैं; उदाहरण के लिए, परिवार के सदस्य सेवाओं के लिए खर्च करने से इनकार कर सकते हैं, या उनकी स्वास्थ्य समस्याओं को महत्व नहीं देते हैं। इसके अलावा, महिला रोगियों को पुरुष रोगियों की तुलना में अधिक अपमानित किया जाता है; यदि विवाहित हो, तो यह वैवाहिक समस्याएं पैदा कर सकता है, या अविवाहित हो तो, उपयुक्त दूल्हे को ढूंढना मुश्किल हो सकता है। हेल्थकेयर बुनियादी ढांचे अक्सर महिलाओं के खिलाफ होते हैं, विशेष रूप से संवेदनशील आबादी, जैसे महिला कैदी, जो पुरुष कैदियों से अधिक टीबी-प्रवण होती हैं – यहां तक कि जब ये सेवाएँ पुरुष कैदियों को प्रदान की जातीं हैं, महिला कैदियों को नहीं दी जाती।
डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट
नवंबर 2015 में जारी टीबी पर प्रकाशित एक डब्लूएचओ तथ्य पत्रक में लिखा है की, "पुरुषों में टीबी से अधिक मौतें होती हैं, लेकिन यह बीमारी "विशेषकर महिलाओं के लिए अधिक गंभीर परिणामकारक हो सकती है, खासकर उनके प्रजनन के दौरान"।
इस तथ्य पत्रक में बताया गया है कि 2014 में अनुमानित 3.2 मिलियन महिलायें टीबी से ग्रस्त हो गईं, जिनमें से 4,80,000 की म्रुत्यु हो गईं। इसमें इस पर भी प्रकाश डाला गया है कि, टीबी 20-59 आयु वर्ग की वयस्क महिलाओं की मृत्यु होने के शीर्ष पांच कारणों में से एक है।
यह बीमारी विशेष रूप से माताओं के लिए खतरनाक होती है, जन्म के बाद बच्चों की मृत्यु होने की संभावना छह गुना अधिक और समय से पहले जन्म होने और जन्म के बाद कम वजन की जोखिम दोगुनी हो जाती है। यदि एक गर्भवती महिला का एचआईवी परीक्षण सकारात्मक होता है, ऐसी स्थिति में टीबी के कारण लगभग 300% तक मातृ एवं शिशु मृत्यु दर का खतरा बढ़ जाता है। भारत में हुए अध्ययन से यह देखा गया है कि अगर मां को टीबी है, तो अजन्मे बच्चे को भी एचआईवी होने का खतरा दोगुना बढ़ सकता है।
टीबी को 'गरीबी की बीमारी' बताते हुए, डब्ल्यूएचओ ने कुछ कारकों की पहचान की जिनके कारण विकासशील देशों की महिलायें टीबी की चपेट में ज्यादा आती हैं :
- लिंग असमानता
- महिलाओं के बीच तंबाकू का इस्तेमाल और मधुमेह का बढ़ाना
- महिलाओं उत्पीड़न और उनके प्रति भेदभाव
- सांस्कृतिक और वित्तीय बाधाएं
इस तथ्य पत्रक के अनुसार, यह रोग महिलाओं को आर्थिक रूप से और प्रजननशील सक्रिय होने पर प्रभावित करता है; और जब वे मर जाती हैं, तो इसका प्रभाव रोगियों से परे उनके बच्चों और परिवारों पर भी जाता है और यह असर काफी जोरदार होता है।
आखिर में
यदि आप इसे पढ़ रहे हैं, तो शायद यह मानना उचित होगा कि आप या आपके परिवार के सदस्यों में से कोई भी इस रोग से संक्रमित हो जाता है इसलिए इस रोग से लड़ने के लिए जरूरी रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करने का प्रयास करना होगा। और यदि आप ऐसा करते हैं तो टीबी संभवतः "निष्क्रिय" हो जाएगा, और इसे इसी स्तर पर मारना अपेक्षाकृत आसान हो जायेगा।
दूसरी ओर, यदि आप कमजोर हैं, तो आप चाहे स्त्री हो या पुरुष, आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली भी कमजोर होगी। उस स्थिति में, टीबी फिर से जीवित हो सकती है और सक्रिय हो सकती है, इसलिए अभी आपको सावधान हो जाना चाहिए। तो यह जरूरी है कि आप अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें; उदाहरण के लिए, यदि आपको खतरनाक खांसी की लहर आती हैं, या थूक से रक्त आता है, आपको एक योग्य चिकित्सक द्वारा स्वयम की जांच कर लेनी चाहिए।
यह भी ध्यान रखें कि जो लोग हमारे लिए काम करते हैं - नौकरानी, ड्राईवर, या इमारत का सुरक्षा गार्ड इनमें से कुछ – उनके रहने की स्थिति के अनुसार, हम से ज्यादा असुरक्षित हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि बीमारी का प्रसार होने से रोकने के लिए उनमें स्वच्छता के महत्व को बढ़ाना है।
यदि उनको या उनके परिवार के किसी सदस्य को यह बीमारी पकड़ लेती हैं, तो उन्हें यह सिखाना होगा कि यह टीबी इलाज योग्य है, लेकिन उन्हें ठीक होने के लिए दी गई हर एक दवा खानी होगी। भाग्यवश, सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर ये दवाएं मुफ्त में उपलब्ध हैं।