- Date : 05/01/2018
- Read: 6 mins
हाल के बरसों में बच्चों के जन्म पर आने वाले खर्चों में बेतहाशा बढ़ोतरी ने दंपत्तियों को इसकी भरपाई के लिए विकल्प तलाशने पर मजबूर कर दिया है। इसलिए जो भी लोग मातृत्व बीमा कराना चाहते हैं उनके लिए ज़रूरी है कि वो इससे जुड़े शब्दों को ठीक से समझें।

ये सबको पता है कि बच्चों का पालन-पोषण करने में खर्च बढ़ता है। लेकिन क्या आपने कभी मातृत्व और बच्चे के जन्म पर होने वाले खर्च के बारे में विचार किया है। क्या आपने अपने बच्चे के पैदा होने पर आने वाले खर्च के लिए अलग से कुछ रकम निकाल कर रखी है? क्या आप ये भी जानते हैं कि बीमा पॉलिसी खरीदने के बाद 2 से लेकर 6 साल तक बच्चे के जन्म पर आने वाले खर्च की भरपाई के लिए दावा नहीं कर सकते?
#1 मातृत्व बीमा के फायदे में क्या क्या चीज़ें शामिल होती हैं?
बच्चे के जन्म पर आने वाले खर्च की परिभाषा आईआरडीए के 2013 में जारी सर्कुलर जारी में मानक परिभाषा का हिस्सा है। इसलिए सभी बीमा कंपनियों के लिए इसे मानना ज़रूरी है। मुख्यतौर पर इसमें बच्चे के जन्म से जुड़े और अस्पताल में भर्ती होने वाले खर्चे शामिल होते हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य की जरूरत के मुताबिक गर्भ गिराने और बच्चा पैदा होने के पहले और बाद के खर्चे कवर किए जाते हैं। मातृत्व बीमा के लिए निम्नलिखित खर्चे शामिल किए जाते हैं:
-मातृत्व से जुड़े मामले में अस्पताल में भर्ती होने का खर्च: अस्पताल में भर्ती होने से पहले 30 दिन तक के और बच्चे के जन्म के 60 दिन बाद तक के खर्चे इसमें शामिल होते हैं।
-बच्चे के जन्म और उससे पहले तथा बाद के खर्चे: मातृत्व बीमा के तहत सर्जरी से होने वाले जन्म और सामान्य तरीके से होने वाले बच्चे के जन्म का खर्च जोड़ा जाता है। अगर बच्चे के जन्म के बाद भी माता को कोई दिक्कत होती है तो उसका खर्च भी दावे की रकम में जोड़ा जा सकता है।
अस्पताल में भर्ती होने की लागत: इसके तहत अस्पताल या नर्सिंग होम के कमरे का किराया, नर्स और सर्जन का खर्च, डॉक्टर की फीस, इमर्जेंसी एंबुलेंस का खर्च शामिल माना जाता है।
नवजात बच्चे का कवर( 1 से 90 दिन तक) : कवरेज का आगे भी विस्तार किया जा सकता है अगर कोई पैदाइशी दिक्कत हो। या फिर कोई गंभीर बीमारी हो।
#2: वेंटिंग पीरियड क्या होता है और इसकी क्या क्या उप सीमाएं होती हैं?
मातृत्व बीमा का दावा करने के लिए पॉलिसी की खरीद के बाद 2 से लेकर 4 साल तक इंतज़ार की मियाद होती है। यानी इस दौरान आप कोई दावा नहीं कर सकते। कुछ पॉलिसीज़ में इसकी मियाद 6 साल तक भी होती है। हर बीमा कंपनी की इस पर अपनी अपनी नीति होती है। इसलिए ज़रूरी है कि जल्दी से जल्दी मातृत्व बीमा का कवर कराया जाये। भले ही आपकी निकट भविष्य में बच्चे को जन्म देने का कोई योजना न हो। बाज़ार में बिक रही सभी पॉलिसीज़ के मुकाबले रेलिगेयर हेल्थ इंश्योरेंस का खास मातृत्व वाला प्लान ‘रेलिगेयर ज्वॉय’ एक अपवाद है। इस प्लान के तहत पॉलिसी खरीदने के केवल 9 महीने तक ही इंतज़ार की मियाद होती है। इसकी ज्यादा जानकारी के लिए देखिए, नए ज़माने के स्वास्थ्य बीमा प्लान ( Features of New Age Health Insurance Plans)
#3: क्या-क्या चीजें कवर में शामिल नहीं
मातृत्व बीमा में कई ऐसे फायदे हैं जिन्हें शामिल नहीं किया जाता। जिनमें से प्रमुख हैं:
सामान्य तरीके से बच्चे को जन्म देने पर मातृत्व कवर और नवजात बच्चे के दावे की सीमा 15000 से 30000 रुपए तक ही होती है। जबकि सर्जरी के ज़रिए बच्चा होने पर दावा 25000 रुपए से 50000 रुपए के बीच कवर सीमित होता है। इतनी रकम किसी भी ए-रेटिंग वाले बड़े अस्पताल में बच्चे के जन्म के लिए अपर्याप्त साबित होगी। हालांकि इससे खर्च के बोझ को कम करने में ज़रूर मदद मिल सकती है।
मातृत्व बीमा का फायदा लेने के लिए पॉलिसी खरीदने वाले की उम्र 45 साल तक ही सीमित होती है।
अगर गर्भ ठहरने के 12 हफ्ते में ही गर्भ गिर जाए तो इससे जुड़ा कोई इलाज का खर्च कवर में शामिल नहीं किया जाता।
आसामान्य तरीके के गर्भधारण जैसे टेस्ट ट्यूब बेबी या सरोगेसी के ज़रिए बच्चे को जन्म देने पर आने वाले खर्च का कवर इसमें शामिल नहीं आता।
#3: प्रीमियम
ऐसी पॉलिसीज़ में सबसे बड़ी कमी ये है कि इनका प्रीमियम काफी ज़्यादा होता है। हालांकि बाकी पॉलिसीज़ के मुकाबले ज्यादा प्रीमियम की वजह ये होती है कि बाकी में शायद आपको कवर की ज़रूरत न पड़े। वहीं मातृत्व बीमा एक ऐसा कवर है जो एक तरह की निश्चित घटना को कवर करता है। इस तरह आपके वित्तीय बोझ को कम करता है। उदाहरण के लिए रेलिगेयर ज्वॉय में 18-35 साल के आयुवर्ग की महिला के लिए 5 लाख रुपए के कवर के बदले 27,039 रुपए प्रीमियम सालाना प्रीमियम लगता है। ज्वॉय में इंतज़ार की मियाद महज 9 महीने है जो अब तक इस इंडस्ट्री में सबसे कम है। इसलिए ज़रिए है कि किसी भी पॉलिसी को चुनने से पहले पॉलिसी की लागत और उसके फायदे का विश्लेषण करें।
#5: पॉलिसी खरीदने और उसकी योजना पर कुछ सुझाव
-स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेते समय केवल मातृत्व बीमा को ही मुख्य पैमाना न बनाएं
-अगर आपके नियोक्ता की ओर से दी गई बीमा पॉलिसी में मातृत्व का कवर है तो अपनी पॉलिसी को बचाकर रखें। उससे क्लेम न करें। क्योंकि इससे आपको नो क्लेम बोनस का फायदा मिलेगा।
-इसके अलावा अगर खर्च की रकम नियोक्ता की ओर से दी गई पॉलिसी से ज्यादा है। तो खर्च की बाकी बची रकम को अपनी निजी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी से क्लेम कर सकते हैं।
-बेहतर होगा कि मातृत्व पर आने वाले खर्चों की भरपाई के लिए खुद का फंड बनाएं जिसे किसी मियादी जमा योजना में या म्यूचुअल फंड की तरल योजना में रख सकते हैं।
बीमा कंपनी उस स्थिति में कवर नहीं देगी अगर पहले से ही गर्भधारण किया हो। उस पर इंतज़ार की मियाद भी लागू होगी। इसलिए गर्भधारण को बेहतर ढंग से प्लान करना अहम होगा।
निष्कर्ष
हाल के बरसों में मातृत्व से जुड़े खर्चों में तेज़ बढ़ोतरी से दंपत्तियों को इसकी भरपाई के लिए अन्य विकल्पों की ज़रूरत पड़ रही है। इसलिए बीमा कंपनियां स्वास्थ्य बीमा कवर में मातृत्व कवर से जुड़े फायदों को विशिष्ट रूप से दर्शाती हैं। ऐसे दंपत्ति जो इस कवर को खरीदना चाहते हैं उन्हें पॉलिसी के दायरे को ठीक से समझ लेना चाहिए। ये समझ लेना चाहिए कि क्या-क्या चीज़ें कवर के बाहर होंगी। पॉलिसी की कीमत कितनी होगी? ये सब जान लेना चाहिए। साथ ही इन सभी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर अलग मेडिकल फंड बनाना चाहिए। ताकि वो ऐसे हालात में ज़रूरतें पूरी कर सकें।
ये सबको पता है कि बच्चों का पालन-पोषण करने में खर्च बढ़ता है। लेकिन क्या आपने कभी मातृत्व और बच्चे के जन्म पर होने वाले खर्च के बारे में विचार किया है। क्या आपने अपने बच्चे के पैदा होने पर आने वाले खर्च के लिए अलग से कुछ रकम निकाल कर रखी है? क्या आप ये भी जानते हैं कि बीमा पॉलिसी खरीदने के बाद 2 से लेकर 6 साल तक बच्चे के जन्म पर आने वाले खर्च की भरपाई के लिए दावा नहीं कर सकते?
#1 मातृत्व बीमा के फायदे में क्या क्या चीज़ें शामिल होती हैं?
बच्चे के जन्म पर आने वाले खर्च की परिभाषा आईआरडीए के 2013 में जारी सर्कुलर जारी में मानक परिभाषा का हिस्सा है। इसलिए सभी बीमा कंपनियों के लिए इसे मानना ज़रूरी है। मुख्यतौर पर इसमें बच्चे के जन्म से जुड़े और अस्पताल में भर्ती होने वाले खर्चे शामिल होते हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य की जरूरत के मुताबिक गर्भ गिराने और बच्चा पैदा होने के पहले और बाद के खर्चे कवर किए जाते हैं। मातृत्व बीमा के लिए निम्नलिखित खर्चे शामिल किए जाते हैं:
-मातृत्व से जुड़े मामले में अस्पताल में भर्ती होने का खर्च: अस्पताल में भर्ती होने से पहले 30 दिन तक के और बच्चे के जन्म के 60 दिन बाद तक के खर्चे इसमें शामिल होते हैं।
-बच्चे के जन्म और उससे पहले तथा बाद के खर्चे: मातृत्व बीमा के तहत सर्जरी से होने वाले जन्म और सामान्य तरीके से होने वाले बच्चे के जन्म का खर्च जोड़ा जाता है। अगर बच्चे के जन्म के बाद भी माता को कोई दिक्कत होती है तो उसका खर्च भी दावे की रकम में जोड़ा जा सकता है।
अस्पताल में भर्ती होने की लागत: इसके तहत अस्पताल या नर्सिंग होम के कमरे का किराया, नर्स और सर्जन का खर्च, डॉक्टर की फीस, इमर्जेंसी एंबुलेंस का खर्च शामिल माना जाता है।
नवजात बच्चे का कवर( 1 से 90 दिन तक) : कवरेज का आगे भी विस्तार किया जा सकता है अगर कोई पैदाइशी दिक्कत हो। या फिर कोई गंभीर बीमारी हो।
#2: वेंटिंग पीरियड क्या होता है और इसकी क्या क्या उप सीमाएं होती हैं?
मातृत्व बीमा का दावा करने के लिए पॉलिसी की खरीद के बाद 2 से लेकर 4 साल तक इंतज़ार की मियाद होती है। यानी इस दौरान आप कोई दावा नहीं कर सकते। कुछ पॉलिसीज़ में इसकी मियाद 6 साल तक भी होती है। हर बीमा कंपनी की इस पर अपनी अपनी नीति होती है। इसलिए ज़रूरी है कि जल्दी से जल्दी मातृत्व बीमा का कवर कराया जाये। भले ही आपकी निकट भविष्य में बच्चे को जन्म देने का कोई योजना न हो। बाज़ार में बिक रही सभी पॉलिसीज़ के मुकाबले रेलिगेयर हेल्थ इंश्योरेंस का खास मातृत्व वाला प्लान ‘रेलिगेयर ज्वॉय’ एक अपवाद है। इस प्लान के तहत पॉलिसी खरीदने के केवल 9 महीने तक ही इंतज़ार की मियाद होती है। इसकी ज्यादा जानकारी के लिए देखिए, नए ज़माने के स्वास्थ्य बीमा प्लान ( Features of New Age Health Insurance Plans)
#3: क्या-क्या चीजें कवर में शामिल नहीं
मातृत्व बीमा में कई ऐसे फायदे हैं जिन्हें शामिल नहीं किया जाता। जिनमें से प्रमुख हैं:
सामान्य तरीके से बच्चे को जन्म देने पर मातृत्व कवर और नवजात बच्चे के दावे की सीमा 15000 से 30000 रुपए तक ही होती है। जबकि सर्जरी के ज़रिए बच्चा होने पर दावा 25000 रुपए से 50000 रुपए के बीच कवर सीमित होता है। इतनी रकम किसी भी ए-रेटिंग वाले बड़े अस्पताल में बच्चे के जन्म के लिए अपर्याप्त साबित होगी। हालांकि इससे खर्च के बोझ को कम करने में ज़रूर मदद मिल सकती है।
मातृत्व बीमा का फायदा लेने के लिए पॉलिसी खरीदने वाले की उम्र 45 साल तक ही सीमित होती है।
अगर गर्भ ठहरने के 12 हफ्ते में ही गर्भ गिर जाए तो इससे जुड़ा कोई इलाज का खर्च कवर में शामिल नहीं किया जाता।
आसामान्य तरीके के गर्भधारण जैसे टेस्ट ट्यूब बेबी या सरोगेसी के ज़रिए बच्चे को जन्म देने पर आने वाले खर्च का कवर इसमें शामिल नहीं आता।
#3: प्रीमियम
ऐसी पॉलिसीज़ में सबसे बड़ी कमी ये है कि इनका प्रीमियम काफी ज़्यादा होता है। हालांकि बाकी पॉलिसीज़ के मुकाबले ज्यादा प्रीमियम की वजह ये होती है कि बाकी में शायद आपको कवर की ज़रूरत न पड़े। वहीं मातृत्व बीमा एक ऐसा कवर है जो एक तरह की निश्चित घटना को कवर करता है। इस तरह आपके वित्तीय बोझ को कम करता है। उदाहरण के लिए रेलिगेयर ज्वॉय में 18-35 साल के आयुवर्ग की महिला के लिए 5 लाख रुपए के कवर के बदले 27,039 रुपए प्रीमियम सालाना प्रीमियम लगता है। ज्वॉय में इंतज़ार की मियाद महज 9 महीने है जो अब तक इस इंडस्ट्री में सबसे कम है। इसलिए ज़रिए है कि किसी भी पॉलिसी को चुनने से पहले पॉलिसी की लागत और उसके फायदे का विश्लेषण करें।
#5: पॉलिसी खरीदने और उसकी योजना पर कुछ सुझाव
-स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेते समय केवल मातृत्व बीमा को ही मुख्य पैमाना न बनाएं
-अगर आपके नियोक्ता की ओर से दी गई बीमा पॉलिसी में मातृत्व का कवर है तो अपनी पॉलिसी को बचाकर रखें। उससे क्लेम न करें। क्योंकि इससे आपको नो क्लेम बोनस का फायदा मिलेगा।
-इसके अलावा अगर खर्च की रकम नियोक्ता की ओर से दी गई पॉलिसी से ज्यादा है। तो खर्च की बाकी बची रकम को अपनी निजी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी से क्लेम कर सकते हैं।
-बेहतर होगा कि मातृत्व पर आने वाले खर्चों की भरपाई के लिए खुद का फंड बनाएं जिसे किसी मियादी जमा योजना में या म्यूचुअल फंड की तरल योजना में रख सकते हैं।
बीमा कंपनी उस स्थिति में कवर नहीं देगी अगर पहले से ही गर्भधारण किया हो। उस पर इंतज़ार की मियाद भी लागू होगी। इसलिए गर्भधारण को बेहतर ढंग से प्लान करना अहम होगा।
निष्कर्ष
हाल के बरसों में मातृत्व से जुड़े खर्चों में तेज़ बढ़ोतरी से दंपत्तियों को इसकी भरपाई के लिए अन्य विकल्पों की ज़रूरत पड़ रही है। इसलिए बीमा कंपनियां स्वास्थ्य बीमा कवर में मातृत्व कवर से जुड़े फायदों को विशिष्ट रूप से दर्शाती हैं। ऐसे दंपत्ति जो इस कवर को खरीदना चाहते हैं उन्हें पॉलिसी के दायरे को ठीक से समझ लेना चाहिए। ये समझ लेना चाहिए कि क्या-क्या चीज़ें कवर के बाहर होंगी। पॉलिसी की कीमत कितनी होगी? ये सब जान लेना चाहिए। साथ ही इन सभी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर अलग मेडिकल फंड बनाना चाहिए। ताकि वो ऐसे हालात में ज़रूरतें पूरी कर सकें।