- Date : 11/04/2021
- Read: 4 mins
स्वास्थ्य बीमा प्लान लेने जा रहे हैं तो पहले इन 10 बातों को जान लीजिए, फायदे में रहेंगे।

स्वास्थ्य बीमा की अहमियत इन दिनों बढ़ गई है। क्योंकि, इलाज काफी महंगा होता जा रहा है और हॉस्पिटल के बिल भी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे प्लान में बीमा देने वाली कंपनी हॉस्पिटल का बिल चुकाती है। लेकिन ये सोच लेना कि आपकी बीमारी के इलाज का सारा खर्च बीमा कंपनी ही उठा लेगी, गलत होगा।
दरअसल, स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी देने वाली कंपनी कुछ मामलों में आपका साथ छोड़ सकती है, जिसके कारण आपको अपनी जेब से पैसे देने पड़ेंगे। यहां हम 10 ऐसी बात बता रहे हैं जब आपका स्वास्थ्य बीमा प्लान आपके अस्पताल का सारा खर्च नहीं उठाएगा।
>1-अगर आप को-पेमेंट चुनते है:
अगर आपने को-पेमेंट चुना है तो आपको अपने हिस्से का भुगतान खुद करना होगा, कंपनी इसमें भागीदारी नहीं लेगी।
आसान शब्दों में इसको ऐसे समझिये-यदि आपने 30 % का को-पेमेंट का विकल्प चुना है तो हॉस्पिटल बिल का 30 फीसदी आपको भरना होगा ।
मान लिये आपका कवर 10 लाख रुपए का है और आपका बिल 5 लाख रुपए का बनता है। इसके साथ आपके प्लान में 30% को-पेमेंट भी है। ऐसे केस में इंश्योरेंस कंपनी केवल 3.50 लाख रुपए का ही भुगतान करेगी, बाकी के 1.50 लाख रुपए आपको अपनी जेब से देने होंगे।
>2- क्या अपने प्लान में आपने डिडक्टेबल लिया है:
इसको सीधे उदाहरण से समझते है। मान लीजिये आपने 10 लाख रुपए का सुपर टॉप अप प्लान खरीदा है और उसका साल का डिडक्टेबल 2 लाख रुपए है। तो ऐसे में पहले 2 लाख का खर्च आपको अपनी जेब से देना होगा। अगर आपका बिल 5 लाख का है, तो 2 लाख आप देंगे और बाकी 3 लाख इंश्योरेंस कंपनी देगी। उसी साल दोबारा भरती होते हैं और 3 लाख का बिल बनता है, तो सारा खर्चा इंश्योरंस कंपनी उठाएगी क्योंकि आप 2 लाख रुपए पहले ही दे चुके हैं।
>3- किसी प्रकार का एक्सेस, सब-लिमिट के ऊपर है:
मान लिया कि आपका कुल कवर 10 लाख का है और मोतियाबिंद के इलाज के लिए 25 हजार की सब-लिमिट है। अगर मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने का 60,000 रुपए का बिल बनता है, तो इंश्योरंस कंपनी केवल 25,000 रुपए ही देगी।
>4- तय कमरे के किराये से ज्यादा खर्च (रूम रेंट सब-लिमिट):
अस्पताल में कई तरह के कमरे होते हैं और सबका किराया अलग-अलग होता है। आपकी इंश्योरेंस पालिसी में ऐसे दैनिक किराये पर लिमिट होती है। अक्सर देखा जाता है कि दूसरे खर्चे जैसे कि सर्जरी, डॉक्टर परामर्श आदि सब कमरे के किराए पर निर्भर करते हैं। जितना महंगा कमरा, उतना महंगा इलाज।
मान लिए आपकी पॉलिसी में यह लिमिट 5,000 रुपए है। लेकिन, आप अस्पताल में ऐसा कमरा चुनते है जिसका किराया दिन का 10,000 रुपए है। ऐसे केस में इंश्योरेंस कंपनी पूरे 10,000 रुपए नहीं देगी, बल्कि केवल 5,000 रुपए ही देगी।
>5- इंतजार अवधि खत्म होने से:
इंतजार अवधि खत्म होने के बाद ही पहले से मौजूद बीमारी के इलाज का खर्च प्लान उठाएगा। आपको इंतजार अवधि की जानकारी होनी चाहिए। यह जानकारी आपकी पॉलिसी कॉन्ट्रैक्ट में दी होती है।
>6-विशिष्ट इलाज का खर्च:
आपके इंश्योरेंस प्लान खरीदने के कुछ साल तक कुछ विशिष्ट ऑपरेशन कवर नहीं होते। जैसे कि किडनी/गॉल ब्लैडर (पित्ताशय) में पत्थर, हर्निया, मोतियाबिंद आदि।
>7- पहले 30-90 दिनों में उपचार:
हर पालिसी में पहले 30-90 दिन कोई प्लान्ड ट्रीटमेंट कवर नहीं होता। ध्यान रखें कि किसी दुर्घटना की वजह से हॉस्पिटलाइजेशन और आपातकाल स्थिति इन 30-90 दिनों में भी कवर होती है।
>8- परमानेंट एक्सक्लूजंस:
HIV/aids, डेंटल या cosmetic ट्रीटमेन्ट आदि आपके स्वास्थ्य बीमा प्लान में कवर नहीं होता। ऐसे और भी इलाज हो सकते हैं। अपने पॉलिसी document को सही से पढ़े और समझें।
>9- विदेशों में उपचार:
अधिकतर पॉलिसी विदेशों में उपचार नहीं कवर करती। ये सभी प्लान भारत में होने वाले उपचार को ही कवर करते हैं।
>10 उपभोग्य वस्तुएं (consumables):
आपके अस्पताल के अंतिम बिल में केवल ऑपरेशन का खर्च, कमरे का किराया, दवाई बगैरह ही शामिल नहीं होते हैं, बल्कि और भी काफी सारी चीज़ें होती हैं। जैसे खाने का बिल, डायपर्स, बेबी फ़ूड, टीवी और इंटरनेट चार्ज आदि। ऐसे खर्चे आपकी इंश्योरेंस कंपनी नहीं देगी।
आपको क्या करना चाहिए?
आपने भले ही स्वास्थ्य बीमा ले लिया हो, लेकिन आपको ऐसे खर्चो को ध्यान में रखना चाहिए जो कि आपका प्लान कवर नहीं करता। साथ ही आपको ऐसे खर्चो के भुगतान के लिए हमेशा कुछ पैसा बचा कर रखना चाहिए।
स्वास्थ्य बीमा की अहमियत इन दिनों बढ़ गई है। क्योंकि, इलाज काफी महंगा होता जा रहा है और हॉस्पिटल के बिल भी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे प्लान में बीमा देने वाली कंपनी हॉस्पिटल का बिल चुकाती है। लेकिन ये सोच लेना कि आपकी बीमारी के इलाज का सारा खर्च बीमा कंपनी ही उठा लेगी, गलत होगा।
दरअसल, स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी देने वाली कंपनी कुछ मामलों में आपका साथ छोड़ सकती है, जिसके कारण आपको अपनी जेब से पैसे देने पड़ेंगे। यहां हम 10 ऐसी बात बता रहे हैं जब आपका स्वास्थ्य बीमा प्लान आपके अस्पताल का सारा खर्च नहीं उठाएगा।
>1-अगर आप को-पेमेंट चुनते है:
अगर आपने को-पेमेंट चुना है तो आपको अपने हिस्से का भुगतान खुद करना होगा, कंपनी इसमें भागीदारी नहीं लेगी।
आसान शब्दों में इसको ऐसे समझिये-यदि आपने 30 % का को-पेमेंट का विकल्प चुना है तो हॉस्पिटल बिल का 30 फीसदी आपको भरना होगा ।
मान लिये आपका कवर 10 लाख रुपए का है और आपका बिल 5 लाख रुपए का बनता है। इसके साथ आपके प्लान में 30% को-पेमेंट भी है। ऐसे केस में इंश्योरेंस कंपनी केवल 3.50 लाख रुपए का ही भुगतान करेगी, बाकी के 1.50 लाख रुपए आपको अपनी जेब से देने होंगे।
>2- क्या अपने प्लान में आपने डिडक्टेबल लिया है:
इसको सीधे उदाहरण से समझते है। मान लीजिये आपने 10 लाख रुपए का सुपर टॉप अप प्लान खरीदा है और उसका साल का डिडक्टेबल 2 लाख रुपए है। तो ऐसे में पहले 2 लाख का खर्च आपको अपनी जेब से देना होगा। अगर आपका बिल 5 लाख का है, तो 2 लाख आप देंगे और बाकी 3 लाख इंश्योरेंस कंपनी देगी। उसी साल दोबारा भरती होते हैं और 3 लाख का बिल बनता है, तो सारा खर्चा इंश्योरंस कंपनी उठाएगी क्योंकि आप 2 लाख रुपए पहले ही दे चुके हैं।
>3- किसी प्रकार का एक्सेस, सब-लिमिट के ऊपर है:
मान लिया कि आपका कुल कवर 10 लाख का है और मोतियाबिंद के इलाज के लिए 25 हजार की सब-लिमिट है। अगर मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने का 60,000 रुपए का बिल बनता है, तो इंश्योरंस कंपनी केवल 25,000 रुपए ही देगी।
>4- तय कमरे के किराये से ज्यादा खर्च (रूम रेंट सब-लिमिट):
अस्पताल में कई तरह के कमरे होते हैं और सबका किराया अलग-अलग होता है। आपकी इंश्योरेंस पालिसी में ऐसे दैनिक किराये पर लिमिट होती है। अक्सर देखा जाता है कि दूसरे खर्चे जैसे कि सर्जरी, डॉक्टर परामर्श आदि सब कमरे के किराए पर निर्भर करते हैं। जितना महंगा कमरा, उतना महंगा इलाज।
मान लिए आपकी पॉलिसी में यह लिमिट 5,000 रुपए है। लेकिन, आप अस्पताल में ऐसा कमरा चुनते है जिसका किराया दिन का 10,000 रुपए है। ऐसे केस में इंश्योरेंस कंपनी पूरे 10,000 रुपए नहीं देगी, बल्कि केवल 5,000 रुपए ही देगी।
>5- इंतजार अवधि खत्म होने से:
इंतजार अवधि खत्म होने के बाद ही पहले से मौजूद बीमारी के इलाज का खर्च प्लान उठाएगा। आपको इंतजार अवधि की जानकारी होनी चाहिए। यह जानकारी आपकी पॉलिसी कॉन्ट्रैक्ट में दी होती है।
>6-विशिष्ट इलाज का खर्च:
आपके इंश्योरेंस प्लान खरीदने के कुछ साल तक कुछ विशिष्ट ऑपरेशन कवर नहीं होते। जैसे कि किडनी/गॉल ब्लैडर (पित्ताशय) में पत्थर, हर्निया, मोतियाबिंद आदि।
>7- पहले 30-90 दिनों में उपचार:
हर पालिसी में पहले 30-90 दिन कोई प्लान्ड ट्रीटमेंट कवर नहीं होता। ध्यान रखें कि किसी दुर्घटना की वजह से हॉस्पिटलाइजेशन और आपातकाल स्थिति इन 30-90 दिनों में भी कवर होती है।
>8- परमानेंट एक्सक्लूजंस:
HIV/aids, डेंटल या cosmetic ट्रीटमेन्ट आदि आपके स्वास्थ्य बीमा प्लान में कवर नहीं होता। ऐसे और भी इलाज हो सकते हैं। अपने पॉलिसी document को सही से पढ़े और समझें।
>9- विदेशों में उपचार:
अधिकतर पॉलिसी विदेशों में उपचार नहीं कवर करती। ये सभी प्लान भारत में होने वाले उपचार को ही कवर करते हैं।
>10 उपभोग्य वस्तुएं (consumables):
आपके अस्पताल के अंतिम बिल में केवल ऑपरेशन का खर्च, कमरे का किराया, दवाई बगैरह ही शामिल नहीं होते हैं, बल्कि और भी काफी सारी चीज़ें होती हैं। जैसे खाने का बिल, डायपर्स, बेबी फ़ूड, टीवी और इंटरनेट चार्ज आदि। ऐसे खर्चे आपकी इंश्योरेंस कंपनी नहीं देगी।
आपको क्या करना चाहिए?
आपने भले ही स्वास्थ्य बीमा ले लिया हो, लेकिन आपको ऐसे खर्चो को ध्यान में रखना चाहिए जो कि आपका प्लान कवर नहीं करता। साथ ही आपको ऐसे खर्चो के भुगतान के लिए हमेशा कुछ पैसा बचा कर रखना चाहिए।