- Date : 14/10/2020
- Read: 3 mins
- Read in English: ULIP charges you should know before buying
यूलिप निवेश के लिहाज बेहतर विकल्प है और यूलिप में पैसा लगाए जाने के पहले इन शुल्कों के बारे जानना आवश्यक है

परंपरागत बीमा पॉलिसी के विपरीत यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान) निवेशकों को इक्विटी या डेट या फिर दोनों में निवेश करने का विकल्प देते हैं, जिससे पॉलिसीधारक को बीमा सुरक्षा के साथ-साथ ज्यादा रिटर्न कमाने का मौका मिलता है। यूलिप में निवेश करने से पहले इनसे जुड़े शुल्कों को बारे में जानना जरूरी है।
प्रीमियम ऐलकेशन: इस शुल्क को सीधा प्रीमियम से लिया जाता है। बाकी बची रकम को निवेशक द्वारा चुने गए फंड में निवेश किया जाता है। बीमा कंपनियों के मुताबिक इस शुल्क के जरिए वितरक फीस और अंडरराइटिंग के खर्च को पूरा किया जाता है।
जैसे मान लीजिए कि प्रीमियम ऐलकेशन शुल्क 4 फीसदी है। अगर आपका मासिक प्रीमियम 50,000 रुपये है, तो बीमा कंपनी प्रीमियम से 2,000 रुपये काट लेगी और बाकी 48,000 रुपये को आपके द्वारा चुने गए फंड में निवेश किया जाएगा।
आमतौर पर प्रीमियम ऐलकेशन शुल्क निवेश के शुरुआती सालों में ज्यादा होता है।
फंड मैनेजमेंट चार्ज: ये शुल्क फंड के प्रबंधन के लिए लगाया जाता है और इसे एसेट वैल्यू के तय प्रतिशत के आधार वसूला जाता है। डेट फंड के मुकाबले इक्विटी फंड पर ज्यादा फंड मैनेजमेंट चार्ज लगता है। भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने फंड मैनेजमेंट चार्ज के लिए सालाना 1.35 फीसदी की अधिकतम सीमा तय कर दी है। ये बात ध्यान में रखना जरूरी है कि एसेट वैल्यू बढ़ने के साथ-साथ फंड मैनेजमेंट चार्ज भी बढ़ता है।
जैसे अगर आपकी फंड वैल्यू 1 लाख रुपये है तो आप एक साल के 1,350 रुपये फंड मैनजमेंट चार्ज के तौर पर चुकाएंगे। और यूलिप फंड की वैल्यू बढ़ने के साथ ही आप ज्यादा फंड मैनेजमेंट चार्ज चुकाना होगा।
पॉलिसी ऐड्मिनिस्ट्रेशन चार्ज: ये शुल्क संचालन खर्चों के लिए लगाया जाता है जो बीमा कंपनी को पॉलिसी को कायम रखने के लिए उठाना पड़ता है। संचालन खर्च का उदाहरण है कागजातों का खर्चा या फिर पॉलिसीधारक को प्रीमियम भुगतान की याद दिलाने के लिए भेजी जाने वाली चिट्ठियां। ज्यादातर इस शुल्क को मासिक तौर पर वसूला जाता है। अलग-अलग पॉलिसी के मुताबिक ये शुल्क पूरी अवधि में एक समान रह सकता है या फिर पहले से निश्चित किए गए अलग-अलग दरों से वसूला जा सकता है।
मॉर्टेलिटी चार्ज: ये शुल्क यूलिप के बीमा वाले भाग से जुड़ा है। मॉर्टेलिटी चार्ज महीने में एक बार लिया जाता है। मॉर्टेलिटी चार्ज पॉलिसीधारक की उम्र, स्वास्थ्य, कुल बीमा राशि, आदि पर निर्धारित किया जाता है। आमतौर पर पॉलिसी के कागजातों में मॉर्टेलिटी चार्ज के आकलन के बारे में ब्यौरा दिया गया होता है।
सरेंडर चार्ज: ये शुल्क तय तिथि के पहले कुछ या सारे यूनिट की नकदीकरण करने पर लिया जाता है। आईआरडीएआई ने बीमा कंपनियों द्वारा लिए जाने वाले सरेंडर चार्ज पर अधिकतम सीमा तय की हुई है। पॉलिसी कब सरेंडर की गई है और कितना प्रीमियम चुकाया जा रहा था, इसपर सरेंडर या डिस्कंटिन्यूअंस चार्ज निर्भर करता है, हालांकि 6,000 रुपये से ज्यादा शुल्क नहीं वसूला जा सकता। अगर आप 5 साल के बाद यानि लॉक-इन पीरियड खत्म होने के बाद सरेंडर करते हैं, तो कोई शुल्क नहीं लगाया जाएगा।
यूलिप निवेश का बेहतर विकल्प है। हालांकि, ये जरूरी है कि आप इन सारे शुल्कों के बारे में पर्याप्त जानकारी हासिल करने के बाद ही यूलिप में निवेश करें। बाजार में उपलब्ध अलग-अलग प्लान में से अपने लिए योग्य यूलिप का चुनाव करने के लिए 5 अहम बातों को जरूर पढ़े।
परंपरागत बीमा पॉलिसी के विपरीत यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान) निवेशकों को इक्विटी या डेट या फिर दोनों में निवेश करने का विकल्प देते हैं, जिससे पॉलिसीधारक को बीमा सुरक्षा के साथ-साथ ज्यादा रिटर्न कमाने का मौका मिलता है। यूलिप में निवेश करने से पहले इनसे जुड़े शुल्कों को बारे में जानना जरूरी है।
प्रीमियम ऐलकेशन: इस शुल्क को सीधा प्रीमियम से लिया जाता है। बाकी बची रकम को निवेशक द्वारा चुने गए फंड में निवेश किया जाता है। बीमा कंपनियों के मुताबिक इस शुल्क के जरिए वितरक फीस और अंडरराइटिंग के खर्च को पूरा किया जाता है।
जैसे मान लीजिए कि प्रीमियम ऐलकेशन शुल्क 4 फीसदी है। अगर आपका मासिक प्रीमियम 50,000 रुपये है, तो बीमा कंपनी प्रीमियम से 2,000 रुपये काट लेगी और बाकी 48,000 रुपये को आपके द्वारा चुने गए फंड में निवेश किया जाएगा।
आमतौर पर प्रीमियम ऐलकेशन शुल्क निवेश के शुरुआती सालों में ज्यादा होता है।
फंड मैनेजमेंट चार्ज: ये शुल्क फंड के प्रबंधन के लिए लगाया जाता है और इसे एसेट वैल्यू के तय प्रतिशत के आधार वसूला जाता है। डेट फंड के मुकाबले इक्विटी फंड पर ज्यादा फंड मैनेजमेंट चार्ज लगता है। भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने फंड मैनेजमेंट चार्ज के लिए सालाना 1.35 फीसदी की अधिकतम सीमा तय कर दी है। ये बात ध्यान में रखना जरूरी है कि एसेट वैल्यू बढ़ने के साथ-साथ फंड मैनेजमेंट चार्ज भी बढ़ता है।
जैसे अगर आपकी फंड वैल्यू 1 लाख रुपये है तो आप एक साल के 1,350 रुपये फंड मैनजमेंट चार्ज के तौर पर चुकाएंगे। और यूलिप फंड की वैल्यू बढ़ने के साथ ही आप ज्यादा फंड मैनेजमेंट चार्ज चुकाना होगा।
पॉलिसी ऐड्मिनिस्ट्रेशन चार्ज: ये शुल्क संचालन खर्चों के लिए लगाया जाता है जो बीमा कंपनी को पॉलिसी को कायम रखने के लिए उठाना पड़ता है। संचालन खर्च का उदाहरण है कागजातों का खर्चा या फिर पॉलिसीधारक को प्रीमियम भुगतान की याद दिलाने के लिए भेजी जाने वाली चिट्ठियां। ज्यादातर इस शुल्क को मासिक तौर पर वसूला जाता है। अलग-अलग पॉलिसी के मुताबिक ये शुल्क पूरी अवधि में एक समान रह सकता है या फिर पहले से निश्चित किए गए अलग-अलग दरों से वसूला जा सकता है।
मॉर्टेलिटी चार्ज: ये शुल्क यूलिप के बीमा वाले भाग से जुड़ा है। मॉर्टेलिटी चार्ज महीने में एक बार लिया जाता है। मॉर्टेलिटी चार्ज पॉलिसीधारक की उम्र, स्वास्थ्य, कुल बीमा राशि, आदि पर निर्धारित किया जाता है। आमतौर पर पॉलिसी के कागजातों में मॉर्टेलिटी चार्ज के आकलन के बारे में ब्यौरा दिया गया होता है।
सरेंडर चार्ज: ये शुल्क तय तिथि के पहले कुछ या सारे यूनिट की नकदीकरण करने पर लिया जाता है। आईआरडीएआई ने बीमा कंपनियों द्वारा लिए जाने वाले सरेंडर चार्ज पर अधिकतम सीमा तय की हुई है। पॉलिसी कब सरेंडर की गई है और कितना प्रीमियम चुकाया जा रहा था, इसपर सरेंडर या डिस्कंटिन्यूअंस चार्ज निर्भर करता है, हालांकि 6,000 रुपये से ज्यादा शुल्क नहीं वसूला जा सकता। अगर आप 5 साल के बाद यानि लॉक-इन पीरियड खत्म होने के बाद सरेंडर करते हैं, तो कोई शुल्क नहीं लगाया जाएगा।
यूलिप निवेश का बेहतर विकल्प है। हालांकि, ये जरूरी है कि आप इन सारे शुल्कों के बारे में पर्याप्त जानकारी हासिल करने के बाद ही यूलिप में निवेश करें। बाजार में उपलब्ध अलग-अलग प्लान में से अपने लिए योग्य यूलिप का चुनाव करने के लिए 5 अहम बातों को जरूर पढ़े।