- Date : 05/10/2022
- Read: 3 mins
सेबी ने आईपीओ और म्यूचुअल फंड के नियमों में बदलाव किया।

SEBI: भारतीय शेयर बाजार की नियामक एजेंसी सेबी ने निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए आईपीओ और म्यूचुअल फंड से जुड़े नियमों को कुछ परिवर्तित किया है। आईपीओ या (प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश) किसी निजी निगम के शेयरों का एक नए स्टॉक जारी करने और जनता को देने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। शुक्रवार को सेबी की बोर्ड मीटिंग में इससे जुड़े कई अहम फैसले लिये गए। सेबी ने म्यूचुअल फंड की खरीद-बिक्री में भी दो-कारक सत्यापन लागू करने का फैसला लिया है।
अब म्यूचुअल फंड को भी इनसाइडर ट्रेडिंग से संबंधित नियमों के घेरे में लाया गया है। कंपनियों को आईपीओ रखने के लिए एक्सचेंजों और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के मानकों को पूरा करना होगा। अब शेयर बाजार में आईपीओ लाने वाली कंपनियों को 'मुख्य प्रदर्शन संकेतकों' यानी केपीआई और अपने वित्तीय विवरणों की जानकारी देनी होगी। इसके अलावा कंपनियों को वित्तीय विवरणों यानी अपने पिछले लेन-देन और निवेश के आधार पर आईपीओ की कीमत भी बतानी होगी।
सेबी की निदेशक मंडल की बैठक में कई अन्य महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए। एसेट मैनेजमेंट कंपनियों की ओर से रिडम्पशन के बाद कीमत का भुगतान में लगने वाले समय को घटाकर तीन दिन कर दिया गया है। इसके साथ ही लाभांश भुगतान के समय को भी आधे से कम कर दिया गया है। पहले भुगतान में 15 दिन का समय लगता था जो अब घटकर सात दिन हो गया है। सेबी के अनुसार अब निवेशकों को अधिक समय तक इंतजार नहीं करना होगा और उन्हें भुगतान की रकम जल्दी मिलेगी।
सेबी के अनुसार पहले भुगतान के लिए चेक का इस्तेमाल किया जाता था। मगर भुगतान के तरीके काफी बदल चुके हैं और अब चेक की जगह पर डिजिटल रूप से भुगतान करना बेहतर समझा जाता हैं। इसलिए निवेशकों को अपनी रकम के लिए इंतजार करने ज़रूरत नहीं रह जाएगी।
यह भी पढ़ें: जीवन बीमा के महत्व और प्रकार
म्यूचुअल फंड की खरीद-बिक्री नए नियम
नए नियमों के अनुसार म्यूचुअल फंड भी अब इनसाइडर ट्रेडिंग से संबंधित नियमों के अधीन हो जाएंगे। सेबी ने म्यूचुअल फंड यूनिट की खरीद व बिक्री के लिए टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन प्रोसेस या दो-कारक सत्यापन प्रक्रिया को लागू करने का निर्णय किया है। सेबी का यह नया मसौदा अगले साल पहली अप्रैल से लागू हो जाएगा। इसके साथ ही सेबी ने ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) या बिक्रे के प्रस्ताव के नियमों में बदलाव के लिए भी स्वीकृति दे दी है। वर्तमान समय में ओएफएस में गैर प्रवर्तक शेयर धारकों के लिए कम से कम 10% की हिस्सेदारी या 25 करोड़ रुपए के शेयर बेचना जरूरी था, लेकिन नए नियम में सेबी ने इस अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। इस तरह निवेशकों को काफी सुविधा होगी।
यह भी पढ़ें: पहले क्या? पीपीएफ या जीवन बीमा
SEBI: भारतीय शेयर बाजार की नियामक एजेंसी सेबी ने निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए आईपीओ और म्यूचुअल फंड से जुड़े नियमों को कुछ परिवर्तित किया है। आईपीओ या (प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश) किसी निजी निगम के शेयरों का एक नए स्टॉक जारी करने और जनता को देने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। शुक्रवार को सेबी की बोर्ड मीटिंग में इससे जुड़े कई अहम फैसले लिये गए। सेबी ने म्यूचुअल फंड की खरीद-बिक्री में भी दो-कारक सत्यापन लागू करने का फैसला लिया है।
अब म्यूचुअल फंड को भी इनसाइडर ट्रेडिंग से संबंधित नियमों के घेरे में लाया गया है। कंपनियों को आईपीओ रखने के लिए एक्सचेंजों और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के मानकों को पूरा करना होगा। अब शेयर बाजार में आईपीओ लाने वाली कंपनियों को 'मुख्य प्रदर्शन संकेतकों' यानी केपीआई और अपने वित्तीय विवरणों की जानकारी देनी होगी। इसके अलावा कंपनियों को वित्तीय विवरणों यानी अपने पिछले लेन-देन और निवेश के आधार पर आईपीओ की कीमत भी बतानी होगी।
सेबी की निदेशक मंडल की बैठक में कई अन्य महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए। एसेट मैनेजमेंट कंपनियों की ओर से रिडम्पशन के बाद कीमत का भुगतान में लगने वाले समय को घटाकर तीन दिन कर दिया गया है। इसके साथ ही लाभांश भुगतान के समय को भी आधे से कम कर दिया गया है। पहले भुगतान में 15 दिन का समय लगता था जो अब घटकर सात दिन हो गया है। सेबी के अनुसार अब निवेशकों को अधिक समय तक इंतजार नहीं करना होगा और उन्हें भुगतान की रकम जल्दी मिलेगी।
सेबी के अनुसार पहले भुगतान के लिए चेक का इस्तेमाल किया जाता था। मगर भुगतान के तरीके काफी बदल चुके हैं और अब चेक की जगह पर डिजिटल रूप से भुगतान करना बेहतर समझा जाता हैं। इसलिए निवेशकों को अपनी रकम के लिए इंतजार करने ज़रूरत नहीं रह जाएगी।
यह भी पढ़ें: जीवन बीमा के महत्व और प्रकार
म्यूचुअल फंड की खरीद-बिक्री नए नियम
नए नियमों के अनुसार म्यूचुअल फंड भी अब इनसाइडर ट्रेडिंग से संबंधित नियमों के अधीन हो जाएंगे। सेबी ने म्यूचुअल फंड यूनिट की खरीद व बिक्री के लिए टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन प्रोसेस या दो-कारक सत्यापन प्रक्रिया को लागू करने का निर्णय किया है। सेबी का यह नया मसौदा अगले साल पहली अप्रैल से लागू हो जाएगा। इसके साथ ही सेबी ने ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) या बिक्रे के प्रस्ताव के नियमों में बदलाव के लिए भी स्वीकृति दे दी है। वर्तमान समय में ओएफएस में गैर प्रवर्तक शेयर धारकों के लिए कम से कम 10% की हिस्सेदारी या 25 करोड़ रुपए के शेयर बेचना जरूरी था, लेकिन नए नियम में सेबी ने इस अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। इस तरह निवेशकों को काफी सुविधा होगी।
यह भी पढ़ें: पहले क्या? पीपीएफ या जीवन बीमा