- Date : 08/10/2022
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मौजूदा महंगाई के दौर में निवेशकों को भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर ध्यान देना फायदेमंद साबित हो सकता है।

Asset allocation: मौजूदा महंगाई के दौर में निवेशकों को अपने निवेश के लिए सही विकल्प चुनना कुछ मुश्किल लग सकता है। हाल में सेंट्रल बैंकों ने अपनी मॉनेटरी पॉलिसी को सख्त किया है जिसके कारण दुनिया भर में कीमतें बढ़ने का सिलसिला चल पड़ा है। महामारी के दौरान सभी जगह मॉनिटरी पॉलिसी में नरमी बरती गई थी, लेकिन अब संशोधन किया जा रहा है जिसके चलते अमेरिका जैसे देश में भी बाजार तेजी से लुढ़के हैं। इस मामले में भारत में स्थिति इतनी गंभीर नहीं है और भारतीय बाजारों में गिरावट उस अनुपात में कम है।
महामारी के चलते महंगाई कई दशकों के अपने सबसे ऊँचे स्तर पर चल रही है जिसके कारण ब्याज दरों में बढ़त भी हुई है और बाजार में इक्विटी संशोधन (करेक्शन) हुआ है। ऐसे में डॉलर की तुलना में घरेलू मुद्रा में गिरावट देखी गई है। इन परिस्थितियों में निवेशकों को कैसी रणनीति अपनानी चाहिए इसके बारे में जानकारी दे रहे हैं।
परिसंपत्ति वितरण (एसेट एलोकेशन)
अपने एसेट के एलोकेशन के लिए भारत में अभी मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में बहुत अच्छी संभावनाएँ हैं। ब्रोकरेज हाउस एमके ग्लोबल ने इस समय डाइवर्सिफाइड ऐसेट अलोकेशन पर ज़ोर दिया है। उनके अनुसार लंबी अवधि में यह संपत्ति में वृद्धि करने के लिए सहायक होगा। उनका मानना है कि अभी भारत में मैन्युफैक्चरिंग थीम पर ध्यान केंद्रित करना फायदेमंद साबित हो सकता है क्योंकि चीन+1 स्ट्रैटेजी का फायदा भारत को होने की खासी संभावना है।
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घरेलू अर्थव्यवस्था पर ज्यादा खतरा नहीं
एमके ग्लोबल का मानना है कि पिछले दो सालों के मुकाबले इस साल बाजार में फंड फ्लो अलग होगा। उनके अनुसार फिलहाल वैश्विक बाजार में गिरावट के बाद भी कच्चा तेल महंगा बना हुआ है और विकसित देशों के बाजार में मंदी छाई है। साथ ही जियो पॉलिटिकल संबंध डगमगाने के कारण बाजार में बहुत अधिक जोखिम दिख रहा है। बावजूद इसके घरेलू अर्थव्यवस्था पर कोई बड़ा खतरा नहीं दिखता, हाँ निर्यात में गिरावट और रुपए के अवमूल्यन के कारण चिंता जरूर बनी हुई है।
एमके वेल्थ मैनेजमेंट के रिसर्च हेड डॉक्टर जोसेफ के थॉमस का कहना है कि ज़्यादातर अर्थव्यवस्थाओं के लिए महंगाई चिंता का बहुत बड़ा कारण बनी हुई है जिससे निपटने के लिए केंद्रीय बैंक ने आक्रमक रणनीति भी अपनाई है। रेट हाइक का सहारा लेने से हो सकता है कि महंगाई का दबाव और बढ़े। अमूमन यह स्थिति शॉर्ट टर्म निवेश के लिए फायदेमंद नहीं होती। अगली कुछ तिमाही तक डॉलर के सूचकांक और कच्चे तेल (क्रूड ऑइल) के इंडेक्स पर नजर रखना जरूरी होगा।
फिक्स्ड इनकम और डेट
एमके वेल्थ मैनेजमेंट के फिक्स्ड इनकम के प्रमुख विशाल अमरनानी मानते हैं कि बढ़ती हुई ब्याज दरों के कारण निवेश या कैश फ्लो फिक्स्ड इनकम और डेट की तरफ बढ़ जाएगा। उनके अनुसार ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड को शामिल करने में जो देर हुई है उसके कारण गवर्नमेंट सेक्योरिटीज की उत्पत्ति (यील्ड) में इजाफा हुआ है। वही सिस्टम के तरलता में खासी कमी है जो ₹21,800 करोड़ से भी अधिक है। फिलहाल बाजार में, जैसे कि अपेक्षा की जा रही थी, बेंचमार्क यील्ड अब पुनः 7.40 से 7.50 के स्तर पर आ गई है। लोगों का रुझान लॉंग फिक्स्ड इनकम इन्स्ट्रूमेंट्स की तरफ बढ़ा है जिसके कारण इनकी यील्ड बढ़ गई है।
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