Country specific Risks you should know about

कई निवेशक जब अमेरिका और यूरोपीय शेयर बाजारों में निवेश करके पैसे कमाने के बारे में सुनते हैं तो चौंक जाते हैं। ऐसा आरबीआई की एलआरएस योजना के जरिये संभव है। अगर आप इसका फायदा उठाना चाहते हैं तो इसके जोखिमों के बारे में पहले जान लें।

विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश-विशिष्ट जोखिमों से कैसे बचें

परिसंपत्ति आवंटन, जिससे निवेशक अपने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता ला सकते हैं, किसी भी वित्तीय नियोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इक्विटी, ऋण, सोना, अचल संपत्ति, आदि जैसे विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों के भीतर सही परिसंपत्ति आवंटन करके आप अपन निवेश पोर्टफोलियो में विविधता ला सकते हैं।  यदि आप ये सभी निवेश एक विशिष्ट देश (जैसे, भारत) में कर रहे हैं, तो भी आपको देश-विशिष्ट जोखिमों के लिए तैयार रहना होगा।

उपरोक्त परिदृश्य में, यदि भारत मंदी के दौर से गुजरता है, तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि भारत में सभी परिसंपत्ति वर्ग प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे। इसलिए इस देश के लिए विशिष्ट जोखिमों से खुद को बचाने के लिए भारत के बाहर अपने पोर्टफोलियो के कुछ हिस्से में विविधता लाना महत्वपूर्ण है। ऐसा आप विदेशी निवेश के जरिए कर सकते हैं।

विदेशी निवेश क्या है?

विदेशी निवेश में किसी देश में संपत्ति खरीदने के लिए एक देश से उस देश में धन की आवाजाही शामिल है। यह व्यक्तियों, कंपनियों या सरकारों द्वारा भी किया जा सकता है। यह लेख व्यक्तिगत निवेशकों द्वारा विदेशी निवेश पर ध्यान केंद्रित है जो अपने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाना चाहते हैं।

एलआरएस के तहत विदेशी निवेश

भारतीय रिजर्व बैंक की उदारीकृत प्रेषण योजना (एलआरएस) के तहत, भारतीयों को किसी भी देश में निवेश करने की अनुमति मिली हुई है। उदाहरण के लिए, आप यूएस (जैसे, यूएस स्टॉक या रियल एस्टेट) में संपत्ति खरीद सकते हैं। यह योजना एक भारतीय निवासी व्यक्ति को प्रति वित्तीय वर्ष 2,50,000 अमेरिकी डॉलर तक विदेशी निवेश करने की अनुमति देती है।

देश-विशिष्ट जोखिम

एक निवेशक के रूप में आपको देश-विशिष्ट जोखिमों को कम करने के लिए भारत के बाहर भी अपने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने की जरूरत है। हालांकि, आपको उन देशों के जोखिम से सावधान भी रहना चाहिए जहां आप निवेश कर रहे हैं। यहां कुछ देश-विशिष्ट जोखिम बताए जा रहे हैं जिनके बारे में आपको विदेश में निवेश करते समय जरूर विचार करना चाहिए:

1) ब्याज दर जोखिम-केंद्रीय बैंक की कार्रवाई-यूएस सबप्राइम संकट 

किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दर नीति का अर्थव्यवस्था पर समग्र प्रभाव पड़ सकता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 2000 में डॉट-कॉम के धराशायी होने और 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमले के दोहरे झटके से निपटना पड़ा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालने के लिए, यूएस फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में कटौती शुरू की। ब्याज दर को 2000 के 6% से ऊपर से घटाकर 2003 में 1% से नीचे तक लाया गया। फेडरल रिजर्व द्वारा अपनाई गई नरम मौद्रिक नीति से अमेरिकी रियल एस्टेट सेक्टर और शेयर बाजारों में आर्थिक उछाल देखने को मिला। 

अमेरिकी अचल संपत्ति और शेयर बाजारों का पतन

2004 से फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में वृद्धि शुरू कर दी थी। दर सख्त करने का सिलसिला 2007 तक जारी रहा। इस अवधि के दौरान, ब्याज दरों को कम से कम 1% के नीचे से बढ़ाकर 5% से अधिक कर दिया गया। उच्च ब्याज दरों ने कई अमेरिकी नागरिकों के लिए गिरवी रखकर लिए गए कर्ज, छात्र ऋण और अन्य ऋणों की मासिक किश्त चुकाना मुश्किल कर दिया। इस वजह से कई लोग ऋण पर चूक करने लगे। सबप्राइम संकट अमेरिकी अचल संपत्ति और शेयर बाजारों की तबाही का कारण बन गया।

चार्ट: यूएस ब्याज दर 2000–2008

यूएस ब्याज दर 2000–2008

(स्रोत: https://tradingeconomics.com/united-states/interest-rate)

कम ब्याज दर व्यवस्था (2000-2003) ने निवेश-आधारित उछाल को बढ़ावा दिया। उच्च-ब्याज दर व्यवस्था (2004-2007) के कारण हुई तबाही से निवेश बाहर निकलता गया।

निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण सीख: सबप्राइम संकट की शुरुआत ऋण चूक के साथ हुई, जिसने एक परिसंपत्ति वर्ग के रूप में अमेरिकी अचल संपत्ति को प्रभावित किया। इसके बाद यह अमेरिकी शेयर बाजारों जैसे अन्य परिसंपत्ति वर्गों में फैल गया, जिससे तबाही आई। इसलिए, एक निवेशक के रूप में, आपको उस देश के ब्याज दर जोखिम से सावधान रहना चाहिए जहां आप निवेश करने जा रहे हैं।

2) राजकोषीय घाटा - सरकारी ऋण/उधार - यूरोपीय संप्रभु ऋण संकट

किसी भी सरकार की राजकोषीय स्थिति उस देश के वित्तीय बाजारों को प्रभावित कर सकती है। यदि सरकार के पास पैसों की कमी है और वह अधिक उधार नहीं ले सकती है, तो यह आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है। यूरोपीय संप्रभु ऋण संकट 2010 में ग्रीस के साथ शुरू हुआ, और बाद में पुर्तगाल, स्पेन, इटली और कुछ अन्य यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं में फैल गया। अधिकांश यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के वित्तीय बाजारों को इसकी वजह से नुकसान उठाना पड़ा और इससे इन अर्थव्यवस्थाओं से विदेशी निवेश का पलायन हुआ।

चार्ट: विभिन्न यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए 10-साल का गवर्नमेंट बॉन्ड यील्ड 

विभिन्न यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए 10-साल का गवर्नमेंट बॉन्ड यील्ड

निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण सीख: बहुत सारे निवेशक मानते हैं कि सरकारी प्रतिभूतियां जोखिम मुक्त होती हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। यूरोपीय संघ (ईयू) को ग्रीस, पुर्तगाल, आयरलैंड और अन्य सरकारों को मुश्किल से बाहर निकालने के लिए आगे आना पड़ा। ऐसा नहीं करने पर ये सरकारें अपने ऋण दायित्वों में चूक करतीं। संकट ऋण परिसंपत्ति वर्ग से शुरू हुआ और यूरोपीय शेयर बाजारों और यूरो मुद्रा जैसे अन्य परिसंपत्ति वर्गों में फैल गया, जिससे इन सभी परिसंपत्ति वर्गों में गिरावट आई। एक निवेशक के रूप में, आपको उस विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश करने से पहले सरकार की वित्तीय स्थिति पर विचार जरूर  करना चाहिए।

3) मुद्रा जोखिम - एशियाई वित्तीय संकट 

किसी भी देश की मुद्रा की स्थिरता उसके वित्तीय बाजारों के अच्छे प्रदर्शन के लिए महत्वपूर्ण है। यदि मुद्रा का तेज मूल्यह्रास होता है, तो यह अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय संकट का कारण बन सकता है। 1997 के एशियाई वित्तीय संकट के दौरान कुछ एशियाई देशों की मुद्राओं का मूल्य 30% -80% तक तेजी से गिर गया। इसकी वजह से इन देशों के वित्तीय बाजारों में भारी गिरावट आई। इसका नतीजे ये हुआ कि इन देशों से विदेशी निवेशक भागने लगे। एक निवेशक के रूप में आपको किसी विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश करने का निर्णय लेने से पहले स्थानीय मुद्रा की स्थिरता पर विचार करना चाहिए।

चार्ट: एशियाई मुद्राओं में 1997–1998 के दौरान गिरावट

एशियाई मुद्राओं में 1997–1998 के दौरान गिरावट

(स्रोत: https://www.economicshelp.org/blog/glossary/financial-crisis-asia-1997/)

निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण सीख: एशियाई वित्तीय संकट एक परिसंपत्ति वर्ग के रूप में मुद्राओं में गिरावट के साथ शुरू हुआ। इसके बाद यह एशियाई इक्विटी बाजारों और रियल एस्टेट जैसे अन्य परिसंपत्ति वर्गों में फैल गया, जिससे इन सभी परिसंपत्ति वर्गों में गिरावट आई।

4) सरकारी नीति में बदलाव – पी-नोट्स पर प्रतिबंध 

सरकारी नीति में बदलाव से वित्तीय बाजारों में बड़ी गिरावट आ सकती है। उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2007 में, भारतीय पूंजी बाजार नियामक सेबी ने सहभागी नोटों (पी-नोट्स) पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। उस समय अधिकांश विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) अपना अधिकांश पैसा पी-नोट्स के जरिये भारत में निवेश कर रहे थे। प्रतिबंध की घोषणा से बाजार में प्रतिक्रिया हुई। सेंसेक्स और निफ्टी में लोअर सर्किट लगा और इंट्राडे में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई। 

उसी तरह, सरकारी नीति में बदलाव से अक्सर वित्तीय बाजारों में बड़ी वृद्धि हो सकती है। उदाहरण के लिए, फरवरी 2021 में, बहुत से लोग भारतीय वित्त मंत्री से केंद्रीय बजट में उच्च राजकोषीय घाटे की घोषणा करने की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन, बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे और उम्मीद से कम उधारी की घोषणा की। सरकार ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए पूंजीगत व्यय की भी घोषणा की। सरकारी नीति में इस बदलाव के कारण अगले कुछ दिनों में भारतीय शेयर बाजारों में रौनक रही। 

निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण सीख: एक निवेशक के तौर पर आपको सरकारी नीति में ऐसे बदलावों के बारे में पता होना चाहिए। हालांकि आप ऐसे नीतिगत परिवर्तनों की घोषणा के समय का अंदाज नहीं लगा सकते हैं। बावजूद इसके आपको परिसंपत्ति आवंटन करने और अपने जोखिमों में विविधता लाने की जरूरत है। 

5) रेटिंग एजेंसियों द्वारा सॉवरेन रेटिंग डाउनग्रेड करना

यूरोपीय ऋण संकट के दौरान, जिसकी हमने पहले चर्चा की थी, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने ग्रीस और कुछ अन्य यूरोपीय देशों की संप्रभु रेटिंग को डाउनग्रेड कर दिया था। इसने समस्या को और बढ़ा दिया। इससे यूरोपीय शेयर बाजारों और यूरो मुद्रा जैसे परिसंपत्ति वर्गों में गिरावट आई।

निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण सीख: कुछ वित्तीय संस्थान कुछ देशों और सरकारी ऋण में तभी निवेश करते हैं, जब उनके पास एक निश्चित स्तर की क्रेडिट रेटिंग (उदाहरण के लिए, बीबीबी या उससे ऊपर) होती है। यदि क्रेडिट रेटिंग इस स्तर से नीचे आती है, तो वे अपने सभी निवेशों को बेच देते हैं और देश से पूरी तरह बाहर निकल जाते हैं। इसलिए एक निवेशक के रूप में, आपको उस देश की क्रेडिट रेटिंग के बारे में पता होना चाहिए जहां आप निवेश करने की योजना बना रहे हैं। इस बात पर नजर रखें कि क्या देश की क्रेडिट रेटिंग क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा जल्द ही किसी भी समय डाउनग्रेड के लिए निगरानी में है।

6) कराधान नीति में बदलाव - अमेरिकी कॉर्पोरेट कर की दर में कटौती 

सरकार द्वारा कराधान नीति में बदलाव से वित्तीय बाजारों में बड़ी वृद्धि/गिरावट हो सकती है। 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिकी कॉर्पोरेट कर की दर को 35% से घटाकर 21% कर दिया। इस कदम से अमेरिकी शेयर बाजारों में बड़ी तेजी आई।

निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण सीख: एक निवेशक के रूप में आपको उन देशों में निवेश के लिए विचार करना चाहिए जिनकी कर नीति निवेश के अनुकूल है।  उचित निवेश निर्णय लेने के लिए कर व्यवस्था स्थिर और अनुमानित भी होनी चाहिए।

7) चुनाव परिणाम - सरकार में बदलाव 

चुनावी नतीजों का वित्तीय बाजारों पर बड़ा असर पड़ता है। सरकार में बदलाव से शेयर बाजारों में बड़ी वृद्धि या गिरावट संभव है। बाजार के जानकारों के मुताबिक यह इस बात पर निर्भर करता है कि नई सरकार बाजार के अनुकूल है या नहीं।

2004 के चुनाव परिणामों के कारण भारतीय बाजार में गिरावट

2004 में बाजार को वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को सत्ता में लौटने की उम्मीद थी। लेकिन जब कांग्रेस जीती तो अगले 2-3 दिनों में बाजार में करीब 16 फीसदी की भारी गिरावट आई।

चार्ट: 2004 में सेंसेक्स में गिरावट

 2004 में सेंसेक्स में गिरावट

(स्रोत: https://www.indian-share-tips.com/)

2009 के चुनाव परिणामों के कारण भारतीय बाजार में लगा ऊपरी सर्किट

इसी तरह, 2009 में बाजार को अनुमान था कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में नहीं लौटेगी और अस्थिरता रहेगी। लेकिन जब कांग्रेस ने सत्ता बरकरार रखी, तो चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद बाजार में ऊपरी सर्किट लगा। 

18 मई 2009 को बाजार बढ़त के साथ 13,479 पर खुला, जो पिछले सत्र के 12,173 के बंद के मुकाबले 1300 अंक से अधिक ऊपर था। बाजार में और तेजी आई और 14,284 के ऊपरी सर्किट पर पहुंच गया और उसी स्तर पर बंद भी हुआ। कह सकते हैं कि सेंसेक्स एक ही दिन में 2111 अंकों (17%)  के उछाल के साथ बंद हुआ।

चार्ट: 2009 में सेंसेक्स का उछाल 

2009 में सेंसेक्स का उछाल 

(स्रोत: https://www.indian-share-tips.com)

निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण सीख: एक निवेशक के रूप में, आपको पता होना चाहिए कि चुनाव परिणाम किसी देश के प्रति विदेशी निवेशकों के दृष्टिकोण को बदल सकते हैं। 2004 में बाजार के अनुकूल एनडीए सरकार के चुनावी नुकसान के कारण भारत से कुछ विदेशी निवेश वापस ले गए होंगे। वहीं, 2009 में कांग्रेस की जीत और केंद्र में स्थिर सरकार कुछ विदेशी निवेश भारत में आया होगा। 

सबक? चुनाव परिणाम के बाद देश में विदेशी निवेश आएगा या देश से विदेशी निवेशक भागेंगे, इस पर निर्भर करता है कि बाजार नई सरकार (चाहे वह बाजार के अनुकूल हो या नहीं) को कैसे देखता है। 

 देश-विशिष्ट जोखिम को कम करने के उपाय 

एक निवेशक के रूप में आपको अपने निवेश पोर्टफोलियो का कुछ आवंटन विदेशी निवेश में करना चाहिए। ऐसा करते समय आपको विभिन्न देश-विशिष्ट जोखिमों के बारे में पता होना चाहिए। इनमें से कुछ में ब्याज दर जोखिम, सरकारी ऋण चूक जोखिम, मुद्रा जोखिम, सरकारी नीति में परिवर्तन जोखिम, सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग डाउनग्रेड जोखिम, कराधान नीति में परिवर्तन जोखिम, प्रतिकूल चुनाव परिणाम जोखिम आदि शामिल हैं।  

अपने घरेलू निवेश की ही तरह विदेशी निवेश करते समय आप अपने निवेश को विभिन्न देशों और विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों में निम्नलिखित तरीके से विविधता प्रदान कर सकते हैं:

 

a) वैश्विक इक्विटी म्युचुअल फंड में निवेश करें: ये फंड वास्तव में वैश्विक प्रकृति के होते हैं क्योंकि वे किसी विशिष्ट देश की इक्विटी प्रतिभूतियों में अपने निवेश के लिए सीमित नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, डीएसपी ग्लोबल एलोकेशन फंड एफओएफ, पीजीआईएम इंडिया ग्लोबल इक्विटी ऑपर्च्युनिटीज फंड एफओएफ आदि विभिन्न देशों की इक्विटी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। इसलिए इन वैश्विक फंडों में निवेश करके आप देश विशेष के जोखिम को कम कर सकते हैं।

b) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों में विविधता लाना: आपको अपने निवेश पोर्टफोलियो को अलग-अलग परिसंपत्ति वर्गों के बीच विविधतापूर्ण बनाना चाहिए जैसे आप घरेलू स्तर पर करते हैं। आपको अंतरराष्ट्रीय फंडों में निवेश करना चाहिए। यह आपको विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों जैसे इक्विटी, डेट, कमोडिटीज, रियल एस्टेट, आदि में निवेश करने का मौका देता है। सबसे अच्छे अंतर्राष्ट्रीय म्युचुअल फंड्स  

उपरोक्त खंड में दो इक्विटी फंड (डीएसपी ग्लोबल एलोकेशन फंड एफओएफ, पीजीआईएम इंडिया ग्लोबल इक्विटी ऑपर्चुनिटीज फंड एफओएफ) का उदाहरण दिया गया है। ये दोनों आपको विभिन्न देशों के इक्विटी में एक्सपोजर दे सकते हैं। इसी तरह, आप अंतरराष्ट्रीय रियल एस्टेट फंड जैसे आदित्य बिड़ला सन लाइफ ग्लोबल रियल एस्टेट फंड एफओएफ में निवेश कर सकते हैं। कमोडिटीज में निवेश करने के लिए, आप डीएसपी वर्ल्ड एग्रीकल्चर फंड एफओएफ, डीएसपी वर्ल्ड एनर्जी फंड आदि जैसे अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी फंडों पर विचार कर सकते हैं। यदि आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता प्रवृत्तियों जैसे किसी विशिष्ट विषय के लिए एक्सपोजर लेना चाहते हैं, तो आप इनवेस्को इंडिया-इनवेस्को ग्लोबल कंज्यूमर ट्रेंड्स एफओएफ पर विचार कर सकते हैं। इस तरह आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एसेट एलोकेशन कर सकते हैं।

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