- Date : 16/12/2021
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आइए विदेशी मुद्रा भंडार के बारे में जानें, यह महामारी के समय क्यों बढ़ा, और इसका महत्व।

जून 2021 में, पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $600 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पार पहुँच गया था।हाल ही में, भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा वाला भंडार भी बन गया।इन दोनों घटनाओं ने मीडिया का ध्यान अधिक आकर्षित किया।इस लेख में, हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी क्यों हुई।हम विदेशी मुद्रा भंडार के स्रोतों की भी खोज करेंगे, यह भी कि इसका संचालन कैसे किया जाता है, और उसका महत्व।
विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?
फॉरेक्स रिज़र्व्स या विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा विदेशी मुद्रा में रखी गयी परिसंपत्ति है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित किया जाता है और इसके चार भाग हैं:
a. फॉरेन करेंट एसेट्स ( FCA)
b. सोना
c. विशेष आहरण अधिकार (SDRs), और
d. IMF में रिज़र्व पोज़िशन
उपरोक्त चारों में से, FCA अधिक आवश्यक है क्योंकि सोने के बाद, यह पूरे विदेशी मुद्रा भंडार में एक महत्वपूर्ण भाग जोड़ता है।FCA का अर्थ है अन्य देशों में आरबीआई द्वारा किया हुआ विदेशी मुद्राओं में निवेश।इनमें से अधिकांश यूएस डॉलर में होती हैं क्योंकि यह एक वैश्विक मुद्रा है, इसके बाद अन्य मुद्राओं में किया गया निवेश आता है।
तालिका: 20 अगस्त 2021 तक भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार
2. विदेशी मुद्रा भंडार
आइटम |
20 अगस्त 2021 तक |
उतार-चढ़ाव |
||||||
सप्ताह |
समाप्ति-मार्च 2021 |
वर्ष |
||||||
₹Cr. |
USS Mn. |
₹Cr. |
USS Mn. |
₹Cr. |
USS Mn. |
₹Cr. |
USS Mn. |
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1 |
2 |
3 |
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5 |
6 |
7 |
8 |
|
1. कुल रिज़र्व 1.1 फॉरेन करेंसी एसेट्स 1.2 सोना 1.3 SDRs
|
4588475 4261979 277056 11461
|
616895 573009 37249 1541
|
-10917 -18415 7225 -3
|
-2470 -3365 913 -3
|
369522 337811 29333 598
|
39911 39316 3369 55
|
565115 563311 -1851 376
|
79348 78841 -15 60
|
* विभिन्नता, यदि हो, तो संख्याओं के निकटन के कारण हो सकता है
जैसा उपरोक्त तालिका में दिखाया गया है
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 20 अगस्त 2021 को 616 बिलियन डॉलर हो गया।
कुल 616 बिलियन डॉलर में से, FCAs ने 573 बिलियन डॉलर का योगदान दिया, और सोने का मूल्य 37 बिलियन डॉलर है।
हाल ही में भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा वाला भंडार बन गया।
तालिका: अधिकतम विदेशी मुद्रा भंडार वाले देश
देश विदेशी मुद्रा भंडार
चीन $3349 बिलियन
जापान $1376 बिलियन
स्विट्ज़रलैंड $1074 बिलियन
भारत $612 बिलियन
रूस $597 बिलियन
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी
पिछले एक साल में, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार निरंतर बढ़ रहा है।
चार्ट: भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गतिविधि (सितंबर 2020 - मार्च 2021)
जैसा कि उपरोक्त चार्ट में दिखाया गया है, विदेशी मुद्रा भंडार 540 बिलियन डॉलर के लगभग था। मार्च 2021 तक, वह 590 बिलियन डॉलर पहुँच गया। अगस्त 2021 तक, वह 600 बिलियन डॉलर के पार हो गया।
महामारी के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी क्यों हुई?
पिछले डेढ़ सालों से, भारत और पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी से प्रभावित है। वैश्विक व्यापार को बड़ा झटका लगा है, फिर भी आश्चर्यजनक रूप से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार बढ़ोतरी हुई है और यह अभी तक सबसे अधिक रहा है। आइए, विदेशी मुद्रा भंडार की इस बढ़ोतरी के कारणों का पता लगाएं।
1) विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI)
पिछले कुछ महीनों से स्टॉक मार्केट निरंतर बढ़ रहा है।इसका कारण है घरेलू निवेशकों के साथ ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के निवेशों में बढ़ोतरी।अभी भी अर्थव्यवस्था इस महामारी के दुष्प्रभावों से निरंतर उभर रही है, और कम्पनियां अच्छे वित्तीय परिणाम दे रही हैं।परिणामस्वरूप, भारत में विदेशी निवेशकों का तेज रुख है और उन्होंने भारतीय इक्विटी में बड़ा निवेश किया है।
सरकार की महत्वपूर्ण घोषणाओं जैसे कॉरपोरेट कर दर में कटौती और यूनियन बजट में बुनियादी ढांचे में बढ़ोतरी ने विदेशी निवेशकों का भारत की तरफ सकारात्मक रुझान करने में बड़ी भूमिका निभाई है।आरबीआई के अनुसार, अप्रैल और दिसंबर 2019 के बीच FPI निवेश 15 बिलियन डॉलर था।
2) फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI)
भारत की स्टार्ट-अप कंपनियों ने निजी इक्विटी (PE) निवेशकों और वेंचर कैपिटलिस्ट्स से बहुत पैसे कमाए।इसने भारत को अधिक फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) प्राप्त करने में भूमिका निभाई।रिलायंस इंडस्ट्रीज़ जैसी कंपनियों ने जिओ और रिलायंस रिटेल में हिस्सेदारी बेचकर $15 बिलियन से अधिक पैसे कमाए, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई। वर्ष 2019-20 विदेशी निवेश (FDI) के प्रवाह के लिए सबसे अच्छा साल था, जिससे 56 बिलियन डॉलर FDI के रूप में आए।
3) निर्यात में वृद्धि
महामारी के दौरान, भारत के निर्यात में अच्छी वृद्धि हुई।जुलाई 2021 में, देश का व्यापारिक निर्यात 35.2 बिलियन डॉलर रहा, जो एक महीने में अब तक का सबसे अधिक है।निर्यात में सबसे बड़ा योगदान पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न और आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, और सूती धागे/कपड़े थे।
आईटी सेवाओं की मांग विश्व स्तर पर बढ़ी है। भारतीय आईटी कंपनियों ने रिकॉर्ड ऑर्डर जीत और एक बड़ी पाइपलाइन की घोषणा की है।उन्हें यूएस डॉलर में भुगतान मिलता है, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है। 2020-21 में, आईटी कंपनियों ने 90 अरब डॉलर की कुल निर्यात आय अर्जित की।इसके अलावा, भारत को एनआरआई और अन्य भारतीय प्रवासियों से भी भेजा हुआ प्राप्त होता है।
उपरोक्त सभी कारकों - व्यापारिक निर्यात, आईटी सेवाओं, एनआरआई द्वारा भेजा, आदि - ने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की वृद्धि में योगदान दिया है।
4) आयात में कमी
कोविड-19 के कारण, विश्व स्तर पर यात्रा में बहुत अधिक प्रतिबंध लगा है। इस कारण, कच्चे तेल की मांग प्रभावित हुई है, और 2020-21 में कीमतों में गिरावट आई है। 2020-21 के अधिकांश समय के लिए, कच्चे तेल की कीमतें 45-65 डॉलर के दायरे में रही हैं।भारत, कच्चे तेल का एक प्रमुख आयातक होने के बावजूद, यात्रा प्रतिबंधों के कारण सामान्य से कम कच्चे तेल का आयात करता है।आर्थिक गतिविधियों में कमी के कारण, कच्चे तेल के साथ-साथ गैर-तेल आयात पर भी बड़ा असर पड़ा।
पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने 'मेक इन इंडिया' और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा दिया है।इसने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) जैसी कई योजनाओं की घोषणा की है।ये प्रयास सफल होना शुरू हो गए हैं, और कुछ उत्पाद जिनका भारत पहले आयात करता था, अब देश में उत्पादित किए जा रहे हैं।
कच्चे तेल और गैर-तेल आयात में कुल कमी ने कीमती विदेशी मुद्रा भंडार को बचाया है।
5) रुपये की मजबूती को रोकने के लिए आरबीआई की डॉलर की खरीद
जैसा कि हमने देखा, भारी एफपीआई(FPI) और एफडीआई(FDI) निवेशों के कारण यूएस डॉलर का एक बड़ा इनफ़्लो(अंतर्वाह) हुआ है। इस इनफ़्लो(अंतर्वाह) से भारतीय मुद्रा में वृद्धि होती है, जो अन्य देशों की तुलना में हमारे निर्यात को कम प्रतिस्पर्धात्मक बनाती है। ऐसे समय के दौरान, आरबीआई(RBI) विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करता है और भारतीय रुपये को तेजी से बढ़ने से रोकने के लिए अमेरिकी डॉलर खरीदता है। इस तरह की यूएस डॉलर खरीद ने हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा किया है।
विदेशी मुद्रा भंडार का महत्व
आरबीआई(RBI) कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करता है। इनमें से कुछ हैं:
- भारत के आयात के लिए भुगतान
- विदेशी कर्ज का प्रबंधन
- भारतीय मुद्रा की स्थिरता (INR)
- विदेशी पूंजी प्रवाह का प्रबंधन
- किसी बाहरी आक्रमण या संकट का प्रबंधन
अंतिम शब्द
जब विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन की बात आती है तो आरबीआई को सूक्ष्म संतुलन बनाए रखना पड़ता है।यदि भंडार आवश्यकता से कम है, तो भारत को आयात भुगतान करने में कठिनाई होगी।यदि भंडार आवश्यकता से अधिक है, तो उन्हें प्रबंधित करने की लागत होती है।
विदेशी मुद्रा भंडार की मात्रा भी भारतीय मुद्रा को प्रभावित करती है। यदि पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार हैं, तो INR मूल्य स्थिर रहेगा।यदि भंडार पर्याप्त से कम है, तो यह भारतीय रुपये पर दबाव डाल सकता है, जिससे इसके मूल्य में कमी हो सकती है।इसलिए, पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करते हुए आरबीआई को संतुलन तलाशना होगा।
जून 2021 में, पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $600 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पार पहुँच गया था।हाल ही में, भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा वाला भंडार भी बन गया।इन दोनों घटनाओं ने मीडिया का ध्यान अधिक आकर्षित किया।इस लेख में, हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी क्यों हुई।हम विदेशी मुद्रा भंडार के स्रोतों की भी खोज करेंगे, यह भी कि इसका संचालन कैसे किया जाता है, और उसका महत्व।
विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?
फॉरेक्स रिज़र्व्स या विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा विदेशी मुद्रा में रखी गयी परिसंपत्ति है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित किया जाता है और इसके चार भाग हैं:
a. फॉरेन करेंट एसेट्स ( FCA)
b. सोना
c. विशेष आहरण अधिकार (SDRs), और
d. IMF में रिज़र्व पोज़िशन
उपरोक्त चारों में से, FCA अधिक आवश्यक है क्योंकि सोने के बाद, यह पूरे विदेशी मुद्रा भंडार में एक महत्वपूर्ण भाग जोड़ता है।FCA का अर्थ है अन्य देशों में आरबीआई द्वारा किया हुआ विदेशी मुद्राओं में निवेश।इनमें से अधिकांश यूएस डॉलर में होती हैं क्योंकि यह एक वैश्विक मुद्रा है, इसके बाद अन्य मुद्राओं में किया गया निवेश आता है।
तालिका: 20 अगस्त 2021 तक भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार
2. विदेशी मुद्रा भंडार
आइटम |
20 अगस्त 2021 तक |
उतार-चढ़ाव |
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सप्ताह |
समाप्ति-मार्च 2021 |
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1. कुल रिज़र्व 1.1 फॉरेन करेंसी एसेट्स 1.2 सोना 1.3 SDRs
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4588475 4261979 277056 11461
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616895 573009 37249 1541
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-10917 -18415 7225 -3
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-2470 -3365 913 -3
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369522 337811 29333 598
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39911 39316 3369 55
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565115 563311 -1851 376
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79348 78841 -15 60
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* विभिन्नता, यदि हो, तो संख्याओं के निकटन के कारण हो सकता है
जैसा उपरोक्त तालिका में दिखाया गया है
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 20 अगस्त 2021 को 616 बिलियन डॉलर हो गया।
कुल 616 बिलियन डॉलर में से, FCAs ने 573 बिलियन डॉलर का योगदान दिया, और सोने का मूल्य 37 बिलियन डॉलर है।
हाल ही में भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा वाला भंडार बन गया।
तालिका: अधिकतम विदेशी मुद्रा भंडार वाले देश
देश विदेशी मुद्रा भंडार
चीन $3349 बिलियन
जापान $1376 बिलियन
स्विट्ज़रलैंड $1074 बिलियन
भारत $612 बिलियन
रूस $597 बिलियन
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी
पिछले एक साल में, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार निरंतर बढ़ रहा है।
चार्ट: भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गतिविधि (सितंबर 2020 - मार्च 2021)
जैसा कि उपरोक्त चार्ट में दिखाया गया है, विदेशी मुद्रा भंडार 540 बिलियन डॉलर के लगभग था। मार्च 2021 तक, वह 590 बिलियन डॉलर पहुँच गया। अगस्त 2021 तक, वह 600 बिलियन डॉलर के पार हो गया।
महामारी के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी क्यों हुई?
पिछले डेढ़ सालों से, भारत और पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी से प्रभावित है। वैश्विक व्यापार को बड़ा झटका लगा है, फिर भी आश्चर्यजनक रूप से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार बढ़ोतरी हुई है और यह अभी तक सबसे अधिक रहा है। आइए, विदेशी मुद्रा भंडार की इस बढ़ोतरी के कारणों का पता लगाएं।
1) विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI)
पिछले कुछ महीनों से स्टॉक मार्केट निरंतर बढ़ रहा है।इसका कारण है घरेलू निवेशकों के साथ ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के निवेशों में बढ़ोतरी।अभी भी अर्थव्यवस्था इस महामारी के दुष्प्रभावों से निरंतर उभर रही है, और कम्पनियां अच्छे वित्तीय परिणाम दे रही हैं।परिणामस्वरूप, भारत में विदेशी निवेशकों का तेज रुख है और उन्होंने भारतीय इक्विटी में बड़ा निवेश किया है।
सरकार की महत्वपूर्ण घोषणाओं जैसे कॉरपोरेट कर दर में कटौती और यूनियन बजट में बुनियादी ढांचे में बढ़ोतरी ने विदेशी निवेशकों का भारत की तरफ सकारात्मक रुझान करने में बड़ी भूमिका निभाई है।आरबीआई के अनुसार, अप्रैल और दिसंबर 2019 के बीच FPI निवेश 15 बिलियन डॉलर था।
2) फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI)
भारत की स्टार्ट-अप कंपनियों ने निजी इक्विटी (PE) निवेशकों और वेंचर कैपिटलिस्ट्स से बहुत पैसे कमाए।इसने भारत को अधिक फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) प्राप्त करने में भूमिका निभाई।रिलायंस इंडस्ट्रीज़ जैसी कंपनियों ने जिओ और रिलायंस रिटेल में हिस्सेदारी बेचकर $15 बिलियन से अधिक पैसे कमाए, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई। वर्ष 2019-20 विदेशी निवेश (FDI) के प्रवाह के लिए सबसे अच्छा साल था, जिससे 56 बिलियन डॉलर FDI के रूप में आए।
3) निर्यात में वृद्धि
महामारी के दौरान, भारत के निर्यात में अच्छी वृद्धि हुई।जुलाई 2021 में, देश का व्यापारिक निर्यात 35.2 बिलियन डॉलर रहा, जो एक महीने में अब तक का सबसे अधिक है।निर्यात में सबसे बड़ा योगदान पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न और आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, और सूती धागे/कपड़े थे।
आईटी सेवाओं की मांग विश्व स्तर पर बढ़ी है। भारतीय आईटी कंपनियों ने रिकॉर्ड ऑर्डर जीत और एक बड़ी पाइपलाइन की घोषणा की है।उन्हें यूएस डॉलर में भुगतान मिलता है, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है। 2020-21 में, आईटी कंपनियों ने 90 अरब डॉलर की कुल निर्यात आय अर्जित की।इसके अलावा, भारत को एनआरआई और अन्य भारतीय प्रवासियों से भी भेजा हुआ प्राप्त होता है।
उपरोक्त सभी कारकों - व्यापारिक निर्यात, आईटी सेवाओं, एनआरआई द्वारा भेजा, आदि - ने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की वृद्धि में योगदान दिया है।
4) आयात में कमी
कोविड-19 के कारण, विश्व स्तर पर यात्रा में बहुत अधिक प्रतिबंध लगा है। इस कारण, कच्चे तेल की मांग प्रभावित हुई है, और 2020-21 में कीमतों में गिरावट आई है। 2020-21 के अधिकांश समय के लिए, कच्चे तेल की कीमतें 45-65 डॉलर के दायरे में रही हैं।भारत, कच्चे तेल का एक प्रमुख आयातक होने के बावजूद, यात्रा प्रतिबंधों के कारण सामान्य से कम कच्चे तेल का आयात करता है।आर्थिक गतिविधियों में कमी के कारण, कच्चे तेल के साथ-साथ गैर-तेल आयात पर भी बड़ा असर पड़ा।
पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने 'मेक इन इंडिया' और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा दिया है।इसने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) जैसी कई योजनाओं की घोषणा की है।ये प्रयास सफल होना शुरू हो गए हैं, और कुछ उत्पाद जिनका भारत पहले आयात करता था, अब देश में उत्पादित किए जा रहे हैं।
कच्चे तेल और गैर-तेल आयात में कुल कमी ने कीमती विदेशी मुद्रा भंडार को बचाया है।
5) रुपये की मजबूती को रोकने के लिए आरबीआई की डॉलर की खरीद
जैसा कि हमने देखा, भारी एफपीआई(FPI) और एफडीआई(FDI) निवेशों के कारण यूएस डॉलर का एक बड़ा इनफ़्लो(अंतर्वाह) हुआ है। इस इनफ़्लो(अंतर्वाह) से भारतीय मुद्रा में वृद्धि होती है, जो अन्य देशों की तुलना में हमारे निर्यात को कम प्रतिस्पर्धात्मक बनाती है। ऐसे समय के दौरान, आरबीआई(RBI) विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करता है और भारतीय रुपये को तेजी से बढ़ने से रोकने के लिए अमेरिकी डॉलर खरीदता है। इस तरह की यूएस डॉलर खरीद ने हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा किया है।
विदेशी मुद्रा भंडार का महत्व
आरबीआई(RBI) कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करता है। इनमें से कुछ हैं:
- भारत के आयात के लिए भुगतान
- विदेशी कर्ज का प्रबंधन
- भारतीय मुद्रा की स्थिरता (INR)
- विदेशी पूंजी प्रवाह का प्रबंधन
- किसी बाहरी आक्रमण या संकट का प्रबंधन
अंतिम शब्द
जब विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन की बात आती है तो आरबीआई को सूक्ष्म संतुलन बनाए रखना पड़ता है।यदि भंडार आवश्यकता से कम है, तो भारत को आयात भुगतान करने में कठिनाई होगी।यदि भंडार आवश्यकता से अधिक है, तो उन्हें प्रबंधित करने की लागत होती है।
विदेशी मुद्रा भंडार की मात्रा भी भारतीय मुद्रा को प्रभावित करती है। यदि पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार हैं, तो INR मूल्य स्थिर रहेगा।यदि भंडार पर्याप्त से कम है, तो यह भारतीय रुपये पर दबाव डाल सकता है, जिससे इसके मूल्य में कमी हो सकती है।इसलिए, पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करते हुए आरबीआई को संतुलन तलाशना होगा।