Higher returns on FDs

रिज़र्व बैंक द्वारा वह बहुप्रतिक्षित फैसला आ गया जिससे आपके फिक्स्ड डिपॉजिट पर मिलनेवाले ब्याज की रकम बढ़ सकती है। जानिए कैसे?

Higher returns on FDs

Floating interest rates on Fixed Deposits: जैसा कि लंबे समय से उम्मीद की जा रही थी, रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाने का निर्णय ले लिया है। लेकिन यदि आपने अपनी पुरानी एफडी जिसकी ब्याज दर कम है, उसे तोड़ कर आप नई एफडी कराई तो आपको उस पर हर्जाने की रकम देनी होगी। ऐसे में निवेशक का नुकसान तय है। लेकिन यदि आप बिना नुकसान कराए इस बढ़े हुए ब्याज की दर का फायदा लेना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए ही है।

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एफडी खाता खोलते समय फ्लोटिंग रेट का ध्यान रखें 

सबसे पहले तो ग्राहक बाजार और बैंक की नीतियों पर ध्यान रखें ताकि जब ब्याज की दरें बढ़ रही हों तो बहुत लंबे समय के लिए निवेश या फिक्स्ड डिपॉजिट न करे। निवेश की कुल रकम को कई हिस्सों में बाँट दिया जाए और उनका अलग-अलग समय के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट किया जाए। ऐसा करने से ब्याज की दरों में होनेवाले बदलाव से लाभ लिया जा सकता है। इसके अलावा एक सरल उपाय है फिक्स्ड डिपॉजिट करते समय यदि फ्लोटिंग रेट डिपॉजिट उपलब्ध हो तो ग्राहक को उसका चुनाव करना चाहिए। फ्लोटिंग ब्याज की दर रिज़र्व बैंक के रेपो रेट के अनुसार निश्चित होती है। जब रेपो रेट बढ़ता है तब ग्राहक को मिलनेवाला फ्लोटिंग ब्याज भी बढ़ता है।

मौजूदा समय में यस बैंक ने फिक्स्ड डिपॉजिट ग्राहकों के लिए फ्लोटिंग रेट की पेशकश की है। इसमें ब्याज की दर रेपो रेट के साथ बदलती रहेगी। 12 से 18 महीने के लिए डिपॉजिट करने पर रेपो रेट से 1.1 प्रतिशत ज्यादा ब्याज दर देना तय हुआ है। शुक्रवार से पहले तक रेपो रेट 4.9% था, तब एफडी पर रिटर्न 6% मिल रहा था। अब जबकि रेपो रेट 0.5% से बढ़ा है तो रिटर्न भी उसके साथ बढ़ेगा।  

ग्राहक इस बात का जरूर ध्यान रखें कि फ्लोटिंग रेट फिक्स्ड डिपॉजिट का लाभ तभी तक होता है जब ब्याज की दरों में वृद्धि हो रही हो। इसलिए जब रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट कम किया जाएगा तब ब्याज की दरें अपने आप कम हो जाएँगी। अभी तक रिज़र्व बैंक द्वारा तीन बार रेपो रेट में वृद्धि की गई है और कुल वृद्धि 1.4% की हो चुकी है। इसके पीछे महंगाई पर नियंत्रण बनाने की सोच हो सकती है।

भारत सरकार की स्कीम पर भी फ्लोटिंग रेट उपलब्ध है 

भारत सरकार रिज़र्व बैंक के माध्यम से फ्लोटिंग रेट सेविंग बॉन्ड उपलब्ध कराती है। इन बॉन्ड पर डाक विभाग से मिलनेवाले नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट ब्याज से 0.35% ज्यादा ब्याज मिलता है। रिज़र्व बैंक के बॉन्ड पर अभी 7.15% और नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट पर 6.8% का ब्याज दिया जा रहा है। 

रेपो रेट का असर नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट पर नहीं 

नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट और पीपीएफ की तरह अन्य स्मॉल सेविंग स्कीम पर ब्याज की दर एक तय समय, हर तीन महीने में निर्धारित की जाती है। इनका रेपो रेट से सीधा संबंध नहीं होता बल्कि इन पर सरकारी बॉन्ड के प्रतिफल का असर पड़ता है। स्मॉल सेविंग स्कीम पर सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल बढ़ने से भी ब्याज दर नहीं बढ़ाया गया है। हो सकता है, बैंको द्वारा फिक्स्ड डिपॉजिट की ब्याज दर को बढ़ाया गया है तो सरकार भी उसकी बराबरी में स्मॉल स्कीम की भी ब्याज दर बढ़ाने पर बाध्य होगी। 

फ्लोटिंग रेट का प्रभाव म्यूचुअल फंड पर भी पड़ता है। फ्लोटिंग ब्याज दर वाली डेट सिक्योरिटी, डेट  म्यूचुअल फंड का 65% हिस्सा है। देखा गया है कि जब ब्याज दर बढ़ती है तो रिटर्न बढ़ता है। लेकिन ध्यान रहे कि फ्लोटिंग रेट फंड स्कीम, बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होती है और इसमें वित्तीय जोखिम होता है। 

रेपो रेट का ब्याज दर से क्या संबंध है?

आपकी जानकारी के लिए बताना चाहेंगे कि रिज़र्व बैंक जब रेपो रेट बढ़ाती है तब बैंक अपने लोन महंगे करते हैं। रेपो रेट के आधार पर रिज़र्व बैंक द्वारा अन्य बैंको को कम अवधि के लिए कर्ज दिया जाता है। पिछले तीन महीनों में रेपो रेट 1.4% बढ़ चुका है। बैंको ने कर्ज तो महंगा किया लेकिन ब्याज के दर में बढ़ोतरी उस मुकाबले कम की गई है। फिक्स्ड डिपॉजिट में ब्याज तय करने के लिए पारदर्शिता की आवश्यकता है।


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