रुपये के मूल्यह्रास का असर: क्याअमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर होता भारतीय रुपया आपके वित्त को प्रभावित करेगा?

रुपये के मूल्यह्रास से नफा और नुकसान दोनों हो सकता है।

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर होता भारतीय रुपया आपके वित्त को कैसे प्रभावित करेगा?

16 दिसंबर 2021 को एक अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर 76.25 भारतीय रुपया थी, जो जून 2020 के बाद पहली बार 76-अंक से नीचे फिसली थी। हालांकि यह अगले कुछ महीने के दौरान 17 जनवरी 2022 को 74.24 पर बंद होने तक कुछ हद तक बढ़ी भी थी। लेकिन कुल मिलाकर, पिछले तीन महीनों में, रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5% के करीब कमजोर हुआ है। 

सवाल यह है कि क्या गिरते रुपये का कोई महत्व हो सकता है? और इसमें उतार-चढ़ाव क्यों होता है? इसका उत्तर है: हां, यह वास्तव में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारे व्यक्तिगत वित्त सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर सकता है। इसमें उतार-चढ़ाव क्यों होता है, आइए खास खास बातों की पड़ताल करते हैं। 

संबंधित: यहां जानिए भारतीय रुपये में उतार-चढ़ाव के कारण

मुद्राओं में उतार-चढ़ाव क्यों होता है?

कई विश्व मुद्राओं जैसे कि सऊदी या कतरी रियाल के विपरीत भारतीय रुपया डॉलर से नहीं जुड़ा है। इसके बजाय, हम एक लचीली अस्थायी विनिमय दर प्रणाली का पालन करते हैं।

इसका मतलब है कि हमारी मुद्रा विदेशी मुद्रा बाजार में मांग और आपूर्ति के मुक्त बाजार कारकों पर निर्भर करती है और इसी से विदेशी मुद्राओं के खिलाफ इसकी विनिमय दर तय होती है। स्वाभाविक रूप से इससे डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में भी बदलाव होता है।

कई कारक रुपये की विनिमय दर (यानी उतार-चढ़ाव) को प्रभावित करते हैं, जैसे:

  • भारत की सार्वजनिक ऋण राशि;
  • मुद्रास्फीति दर;
  • ब्याज दर;
  • रोजगार संख्या;
  • आर्थिक विकास;
  • इक्विटी बाजार, और,
  • व्यापार घाटा/अधिशेष (अन्य के बीच)।

मार्च 2020 में रुपये के 76-अंक से नीचे गिरने का मुख्य कारण कोविड-19 का अप्रत्याशित प्रकोप था। लेकिन इस बार, बढ़ता व्यापार घाटा और विदेशी निवेशकों द्वारा इक्विटी बाजारों से बाहर निकलना कमजोर होते रुपये के लिए जिम्मेदार हैं।

यह भी पढ़ें:  भारतीय मुद्रा के बारे में 8 तथ्य, जो आपको हैरान कर देंगे 

रुपये की गिरावट का असर 

रुपया गिरता है तो क्या होता है? जैसा कि पहले कहा गया है, इसका हमारे जीवन और हमारे वित्त पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन ध्यान रखें कि रुपये के मूल्यह्रास का प्रभाव जरूरी नहीं कि प्रतिकूल हो; इसमें नुकसान उठाने वाले और फायदा उठाने वाले दोनों हो सकते हैं। 

  • नुकसान उठाने वाले

इसका तुरंत असर वैसे कारोबार पर होगा, जो आयात पर निर्भर रहते हैं। आयातित सामानों के ग्राहकों पर भी इसका तुरंत असर होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया के कमजोर होने पर किसी भी विदेशी उत्पाद के लिए प्रत्येक डॉलर के लिए अधिक रुपये का भुगतान करना होता है। 

2019 में भारत के कुल फार्मास्युटिकल कच्चे माल के आयात का 67% चीन से आया। एंटीबायोटिक्स या पेनिसिलिन जैसी कुछ दवाओं के लिए, कच्चा माल घटक 90% है। इसलिए रुपये में गिरावट से दवाएं महंगी हो जाएंगी, क्योंकि आयात की लागत बढ़ जाएगी।

इसी तरह, अन्य अंतिम उत्पाद अधिक महंगे हो जाएंगे, जब पूंजीगत वस्तुओं और आवश्यक वस्तुओं (जैसे लोहा और इस्पात, कोयला, उर्वरक) की आयात लागत बढ़ जाएगी। यात्रा लागत भी बढ़ेगी, क्योंकि हम डॉलर भुगतान करके कच्चा तेल खरीदते हैं।

इसका मतलब है कि घरेलू ईंधन की कीमतें भी बढ़ेंगी, जिससे अन्य आवश्यक वस्तुओं की लागत बढ़ जाएगी। यह आपके व्यक्तिगत वित्त पर दबाव डालेगा।

विदेश में शिक्षा, व्यापार, अवकाश, निवेश, या चिकित्सा के लिए विदेश जाने वाले लोगों को रुपये के लिहाज से डॉलर अधिक महंगा मिलेगा। 

यह भी पढ़ें: भारतीय मुद्रा का इतिहास

  • फायदा उठाने वाले 

दूसरी ओर, निर्यातकों को कमजोर रुपया से लाभ होगा, क्योंकि उनकी डॉलर की कमाई का मतलब रुपये का अधिक मूल्य होगा। डॉलर में पैसा भेजने वालों को भी लाभ होगा, जैसा कि भारत आने वाले पर्यटकों को होगा, क्योंकि वे अपने साथ लाए डॉलर से अधिक रुपये खरीद सकेंगे। 

इसी कारण से, भारत में निवेश करने वाले अनिवासी भारतीयों को भी रुपये में गिरावट से फायदा होता है। 

16 दिसंबर 2021 को एक अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर 76.25 भारतीय रुपया थी, जो जून 2020 के बाद पहली बार 76-अंक से नीचे फिसली थी। हालांकि यह अगले कुछ महीने के दौरान 17 जनवरी 2022 को 74.24 पर बंद होने तक कुछ हद तक बढ़ी भी थी। लेकिन कुल मिलाकर, पिछले तीन महीनों में, रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5% के करीब कमजोर हुआ है। 

सवाल यह है कि क्या गिरते रुपये का कोई महत्व हो सकता है? और इसमें उतार-चढ़ाव क्यों होता है? इसका उत्तर है: हां, यह वास्तव में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारे व्यक्तिगत वित्त सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर सकता है। इसमें उतार-चढ़ाव क्यों होता है, आइए खास खास बातों की पड़ताल करते हैं। 

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मुद्राओं में उतार-चढ़ाव क्यों होता है?

कई विश्व मुद्राओं जैसे कि सऊदी या कतरी रियाल के विपरीत भारतीय रुपया डॉलर से नहीं जुड़ा है। इसके बजाय, हम एक लचीली अस्थायी विनिमय दर प्रणाली का पालन करते हैं।

इसका मतलब है कि हमारी मुद्रा विदेशी मुद्रा बाजार में मांग और आपूर्ति के मुक्त बाजार कारकों पर निर्भर करती है और इसी से विदेशी मुद्राओं के खिलाफ इसकी विनिमय दर तय होती है। स्वाभाविक रूप से इससे डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में भी बदलाव होता है।

कई कारक रुपये की विनिमय दर (यानी उतार-चढ़ाव) को प्रभावित करते हैं, जैसे:

  • भारत की सार्वजनिक ऋण राशि;
  • मुद्रास्फीति दर;
  • ब्याज दर;
  • रोजगार संख्या;
  • आर्थिक विकास;
  • इक्विटी बाजार, और,
  • व्यापार घाटा/अधिशेष (अन्य के बीच)।

मार्च 2020 में रुपये के 76-अंक से नीचे गिरने का मुख्य कारण कोविड-19 का अप्रत्याशित प्रकोप था। लेकिन इस बार, बढ़ता व्यापार घाटा और विदेशी निवेशकों द्वारा इक्विटी बाजारों से बाहर निकलना कमजोर होते रुपये के लिए जिम्मेदार हैं।

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रुपये की गिरावट का असर 

रुपया गिरता है तो क्या होता है? जैसा कि पहले कहा गया है, इसका हमारे जीवन और हमारे वित्त पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन ध्यान रखें कि रुपये के मूल्यह्रास का प्रभाव जरूरी नहीं कि प्रतिकूल हो; इसमें नुकसान उठाने वाले और फायदा उठाने वाले दोनों हो सकते हैं। 

  • नुकसान उठाने वाले

इसका तुरंत असर वैसे कारोबार पर होगा, जो आयात पर निर्भर रहते हैं। आयातित सामानों के ग्राहकों पर भी इसका तुरंत असर होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया के कमजोर होने पर किसी भी विदेशी उत्पाद के लिए प्रत्येक डॉलर के लिए अधिक रुपये का भुगतान करना होता है। 

2019 में भारत के कुल फार्मास्युटिकल कच्चे माल के आयात का 67% चीन से आया। एंटीबायोटिक्स या पेनिसिलिन जैसी कुछ दवाओं के लिए, कच्चा माल घटक 90% है। इसलिए रुपये में गिरावट से दवाएं महंगी हो जाएंगी, क्योंकि आयात की लागत बढ़ जाएगी।

इसी तरह, अन्य अंतिम उत्पाद अधिक महंगे हो जाएंगे, जब पूंजीगत वस्तुओं और आवश्यक वस्तुओं (जैसे लोहा और इस्पात, कोयला, उर्वरक) की आयात लागत बढ़ जाएगी। यात्रा लागत भी बढ़ेगी, क्योंकि हम डॉलर भुगतान करके कच्चा तेल खरीदते हैं।

इसका मतलब है कि घरेलू ईंधन की कीमतें भी बढ़ेंगी, जिससे अन्य आवश्यक वस्तुओं की लागत बढ़ जाएगी। यह आपके व्यक्तिगत वित्त पर दबाव डालेगा।

विदेश में शिक्षा, व्यापार, अवकाश, निवेश, या चिकित्सा के लिए विदेश जाने वाले लोगों को रुपये के लिहाज से डॉलर अधिक महंगा मिलेगा। 

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  • फायदा उठाने वाले 

दूसरी ओर, निर्यातकों को कमजोर रुपया से लाभ होगा, क्योंकि उनकी डॉलर की कमाई का मतलब रुपये का अधिक मूल्य होगा। डॉलर में पैसा भेजने वालों को भी लाभ होगा, जैसा कि भारत आने वाले पर्यटकों को होगा, क्योंकि वे अपने साथ लाए डॉलर से अधिक रुपये खरीद सकेंगे। 

इसी कारण से, भारत में निवेश करने वाले अनिवासी भारतीयों को भी रुपये में गिरावट से फायदा होता है। 

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