मार्जिन मनी क्या है और एक सक्रिय स्टॉक निवेशक के रूप में मार्जिन ट्रेडिंग से लाभ कैसे उठाएँ? | Margin money and margin trading: Benefits of margin trading, risks in margin trading, how margin trading works

मार्जिन ट्रेडिंग आपकी क्रय शक्ति को बढ़ाती है, लेकिन अगर चीजें आपके अनुसार नहीं होती हैं, तो इससे बड़ा नुकसान हो सकता है।

मार्जिन मनी क्या है और एक सक्रिय स्टॉक निवेशक के रूप में मार्जिन ट्रेडिंग से लाभ कैसे उठाएँ?

निम्नलिखित परिस्थिति पर विचार करें: आप रेसकोर्स में हैं और आपने उस घोड़े पर ₹2,000 का दाँव लगाया है जो आपको लगता है कि विजेता होगा, लेकिन आपके पास नकदी कम है। तो आप बाकी पैसे को कुछ गिरवी रख कर उधार लेने का फैसला करते हैं, जैसे आपकी कीमती घड़ी।

अगर ऐसा परिस्थिति शेयर बाजार में हो, तो आप जिस ब्रोकरेज फर्म के साथ काम करते हैं, वह आपको अधिक दाँव लगाने के लिए पैसे उधार देता है, जबकि ब्रोकरेज फर्म के साथ आपके डीमैट खाते में उपलब्‍ध धन आपके द्वारा उधार ली गई राशि के खिलाफ संपार्श्विक के रूप में काम करेगा।

इस संपार्श्विक को मार्जिन या मार्जिन मनी कहा जाता है, और जो दांव लगाया जाता है उसे मार्जिन ट्रेडिंग कहा जाता है।

मार्जिन ट्रेडिंग क्या है?

तकनीकी रूप से, ट्रेडिंग की उस प्रक्रिया को मार्जिन ट्रेडिंग कहा जाता है, जहाँ कोई व्यक्ति अधिक शेयर खरीदने के लिए ब्रोकर से उधार लेकर अपनी वहन क्षमता की सीमा से अधिक निवेश करता है।

न्यूनतम (मार्जनल) राशि जो व्यक्ति को ब्रोकर के पास संपार्श्विक के रूप में रखनी चाहिए वह नकद या प्रतिभूतियों(सिक्‍योरिटीज़) में हो सकती है। यह कुल ट्रेड वॉल्यूम का केवल कुछ प्रतिशत होती है, और राशि को ब्रोकरेज के साथ देना होगा और सौदा पूरा होने से पहले भुगतान करना होगा।

इसके अलावा, अगर निवेशक मार्जिन का लाभ नहीं उठाना चाहते हैं, तो वे किसी भी समय संपार्श्विक स्टॉक वापस ले सकता है।

मार्जिन पर खरीदारी करने का यह व्‍यवहार निवेशकों को उनके खाते में उपलब्ध धन से स्टॉक खरीद पाने की क्षमता की तुलना में अधिक स्टॉक खरीदने में सक्षम बनाती है; दूसरे शब्दों में, उनकी खरीदने की क्षमता बढ़ जाती है।

मार्जिन ट्रेडिंग का एक उदाहरण

मान लीजिए कि आपके पास ₹10,000 का निवेश योग्य फंड है। सामान्य ट्रेडिंग में, शेयर खरीदने के लिए आप केवल इस राशि का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन, मार्जिन ट्रेडिंग की मदद से, आप अधिक फंड तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं - जैसे कि ₹1,50,000, आपकी ब्रोकरेज द्वारा उधार दी जा रही अतिरिक्त राशि। इसका मतलब है कि आप अधिक शेयर खरीद सकते हैं।

इसके अलावा, निवेशकों को अपनी मूल राशि भी खर्च नहीं करनी पड़ती है; वे अपने स्वयं के नकद का ₹5,000 निवेश कर सकते हैं, बाकी उधार के रूप में आ जाता है। किसी निवेशक के लिए सामान्य ट्रेडिंग की तुलना में मार्जिन ट्रेडिंग से अधिक लाभ कमाना संभव है।

ऋण को ब्रोकर द्वारा लगाए गए ब्याज के साथ चुकाया जाना चाहिए। इसका मतलब यह भी है कि निवेशकों द्वारा लाभ कमाने के लिए रिटर्न ब्याज में भुगतान की गई राशि से अधिक होना चाहिए। (नीचे 'कितना ब्याज लिया जाता है?' देखें)

हालाँकि, मार्जिन ट्रेडिंग में एक शर्त होती है: शेयर को उसी दिन बेचा/खरीदा जाना चाहिए, जिस दिन इन्हें खरीदा/बेचा गया है। इसे 'स्क्वायरिंग ऑफ' कहा जाता है, और इसे ट्रेडिंग का समय समाप्त होने से पहले करना होता है।

इसका मतलब यह भी है कि यदि ट्रेड बंद होने से पहले स्टॉक मूल्य खरीद मूल्य से नीचे गिर जाता है, तो निवेशक को बेचने पर नुकसान होता है, और अगर वे खरीद रहे हैं, तो मुनाफा कमाते हैं।

मार्जिन की गणना कैसे की जाती है?

जब शेयर को संपार्श्विक के रूप में उपयोग किया जाता है, तो गिरवी रखी गई स्क्रिप का बाजार मूल्य गिरने पर आमतौर पर ब्रोकर को सुरक्षा बचाव प्रदान करने के लिए उनका अवमूल्यन किया जाता है।

मार्कडाउन के परिमाण को 'हेयरकट' कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आप ₹1 लाख के स्टॉक को संपार्श्विक के रूप में रखना चाहते हैं, तो ब्रोकर गिरवी रखे गए पोर्टफोलियो को केवल ₹50,000 के मूल्य का मान सकता है; यह संपत्ति के मूल्य में 50% की कमी है।

इस 50% की कमी को शेयर बाजार की भाषा में 'हेयरकट' कहा जाता है। यह प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है और यदि संपार्श्विक शेयर की कीमत में उतार-चढ़ाव शुरू होता है तो ब्रोकर के जोखिम को कवर करता है। स्टॉक एक्सचेंज विभिन्न शेयर के लिए मानकीकृत हेयरकट निर्धारित करते हैं; ये किसी भी स्क्रिप के लिए सभी ब्रोकरों के लिए समान रहता है।

आप जिस इक्विटी शेयर को गिरवी रखना चाहते हैं, उसके हेयरकट के आधार पर मार्जिन राशि की गणना की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि आपका संपार्श्विक रिलायंस इंडस्ट्री का शेयर है, जिसमें 20% का हेयरकट है, तो इसका मतलब यह होगा कि आप अपने रिलायंस शेयर के 80% तक के ऋण के हकदार होंगे।

मार्जिन ट्रेडिंग कैसे काम करती है?

यदि आप मार्जिन पर स्टॉक खरीदना चाहते हैं, तो आपके पास भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा अधिकृत ब्रोकरेज फर्म के माध्यम से विशेष मार्जिन ट्रेड अकाउंट, या शेयर खाते के खिलाफ मार्जिन, या केवल मार्जिन खाता होना चाहिए।

यह एक विशेष प्रकार का मानक ब्रोकरेज अकाउंट है, जहाँ ब्रोकर आपको आपके अकाउंट में वास्तव में जमा गई राशि की तुलना में अधिक प्रतिभूतियां(सिक्‍योरिटीज़) खरीदने के लिए पैसे उधार देता है।

मार्जिन खाता आपके डीमैट खाते से अलग होता है। यह इस तरह काम करता है: आप अपने शेयर को अपने व्यक्तिगत खाते से अपने ब्रोकर के लाभार्थी खाते में हस्तांतरित करते हैं, जो उन शेयर को आपके क्‍लाइंट के मार्जिन खाते में ले जाता है।

ऋण लेने के बाद, आप इसे जब तक चाहें तब तक रख सकते हैं, लेकिन आपको इस पर ब्याज देना होगा (इस पर बाद में चर्चा की जाएगी)। अन्य दायित्व भी पूरे करने पड़ सकते हैं - उदाहरण के लिए, किसी ट्रेड पर भुगतान किया जाने वाला कमीशन - लेकिन यह ब्रोकर पर निर्भर करता है।

इसके अलावा, अगर आप कोई स्टॉक बेचते हैं, तो ब्रोकर किसी भी लंबित ऋण की वसूली के लिए आय पर दावा कर सकता है। इसके अलावा, ब्रोकर की आवश्यकता के अनुसार आपके मार्जिन अकाउंट में न्यूनतम अकाउंट बैलेंस होना चाहिए।

यह न्यूनतम बैलेंस (जिसे मेन्‍टेनेंस मार्जिन कहा जाता है) हर समय बनाए रखा जाना चाहिए। यदि आप न्यूनतम शेष राशि(बैलेंस) को मेन्‍टेन नहीं रख सकते हैं तो ब्रोकर आपके मार्जिन अकाउंट से एसेट बेचने के लिए स्वतंत्र है।

कृपया ध्यान दें कि SEBI और संबंधित स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा पूर्वनिर्धारित प्रतिभूतियों(सिक्‍योरिटीज़) के मामले में ही मार्जिन ट्रेड की अनुमति है। नियामक और एक्सचेंज सभी लेनदेन की निगरानी करते हैं।

साथ ही, मार्जिन ट्रेडिंग के माध्यम से म्युचुअल फंड यूनिट को नहीं खरीदा जा सकता है, क्योंकि उन्हें स्टॉक की तरह नहीं बेचा जाता है, बल्कि उन्हें म्यूचुअल फंड हाउस के माध्यम से खरीदा और भुनाया(रिडीम किया) जाता है, जिसमें फंड की कीमतें कार्य दिवस पर बाजार बंद होने के बाद ही निर्धारित होती हैं।

मार्जिन ट्रेडिंग पर कितना ब्याज लगता है?

भारत में, शेयर पर ऋण के लिए ब्याज दरें अलग-अलग शेयर में भिन्न होती हैं और 15% और 18% के बीच होती हैं, हालांकि ब्रोकर लगभग 0.05% तक की दैनिक दर भी चार्ज कर सकते हैं। हालांकि, यह सलाह दी जाती है कि शुरुआत में ही अपने ब्रोकर से पूछ लें।

क्वोट की गई दर मुख्य रूप से उस स्टॉक की गुणवत्ता पर निर्भर करती है जिसमें आप निवेश करना चाहते हैं। कभी-कभी, ब्रोकरेज फर्म के साथ ग्राहक के संबंध भी काम करते हैं। उदाहरण के लिए, सक्रिय ट्रेडर को सस्ती दरों से लुभाया जा सकता है।

जब डिफ़ॉल्ट होने का अधिक जोखिम होता है, तो ब्रोकर अचानक ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं, ऐसे मामले में बाजार की स्थिति भी एक निर्णायक कारक बन सकती है।

ब्याज के भुगतान के अलावा, ब्रोकरेज फर्म उन ट्रेड पर थोड़े कमीशन का भी दावा कर सकती हैं, जहाँ मार्जिन फंडिंग का इस्तेमाल किया गया है। ये शुल्क ट्रेड की मात्रा पर निर्भर करते हैं।

मार्जिन ट्रेडिंग के लाभ और जोखिम

आपको मार्जिन ट्रेडिंग से लाभ और नुकसान, दोनों हो सकता है। आइए इसके फायदों से शुरू करते हैं। 

पहला फायदा यह है कि यह आपको अल्पावधि में कीमतों में उतार-चढ़ाव का लाभ लेने देता है, जब आपके पास पर्याप्त नकदी नहीं होती है। इसके तहत, वे कुल राशि के एक हिस्से का भुगतान करने पर स्टॉक डिलीवरी ले सकते हैं, जबकि शेष राशि का भुगतान ब्रोकर द्वारा किया जाता है।

इसके अलावा, मार्जिन ट्रेडिंग के अन्य फायदे भी हैं, जो नीचे दिए गए हैं:

·यह आपको अपने पोर्टफोलियो या डीमैट खाते में निष्क्रिय पड़ी प्रतिभूतियों(सिक्‍योरटीज़) को सिक्योरिटी/संपार्श्विक के रूप में इस्तेमाल करने देता है;

  • यह आपकी निवेशित पूंजी पर रिटर्न की दर में सुधार लाता है, क्योंकि उधार लिया गया धन आपको अधिक पूंजी निवेश करने की अनुमति देता है, और इससे आपके अधिक लाभ कमाने की संभावना बढ़ जाती है। 
  • यह आपकी क्रय शक्ति को बढ़ाता है।

लेकिन, जैसा कि पहले बताया गया है, अगर मार्जिन ट्रेडिंग आपको सामान्य ट्रेडिंग से अधिक लाभ कमाने में मदद करती है, तो इससे बड़ा नुकसान भी हो सकता है; ऋण को बट्टे खाते में डाले जाने की अपेक्षा ना करें, क्योंकि अगर आपको नुकसान होता है, तो भी आप कानून के अनुसार उधार ली गई राशि का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं।

यदि आप समय पर अपना ऋण चुकाने में विफल होते हैं, या यदि न्यूनतम शेष राशि आवश्यक स्तर से कम हो जाती है, तो आपका ब्रोकर 'मार्जिन कॉल' ले सकता है, जिससे आपको या तो अपना कर्ज चुकाने के लिए या शेष राशि को वांछित स्तर पर लाने के लिए नए फंड जमा करने या अपने स्टॉक बेचने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

यदि आप मार्जिन कॉल का संतोषजनक जवाब देने में विफल रहते हैं, तो ब्रोकरेज फर्म कानूनी रूप से आपके शेयर को बेच सकती हैं।

मार्जिन ट्रेडिंग के लिए सही ब्रोकर चुनना

आपकी ज़रूरतों को पूरा करने वाला ब्रोकरेज हाउस चुनना मुश्किल हो सकता है क्योंकि, विभिन्न ब्रोकरेज फर्म ट्रेडर को अलग-अलग लाभ प्रदान करती हैं। कुछ अधिक कमीशन ले सकते हैं, लेकिन अधिक इंट्राडे लाभ की पेशकश करते हैं, जबकि अन्य कम चार्ज करते हैं, लेकिन ऐसे लाग के साथ उदार नहीं हैं।

आपको अपना मार्जिन खाता खोलने के लिए ब्रोकर चुनते समय पेश किए गए इंट्राडे मार्जिन और मांगे गए कमीशन के बीच संतुलन बनाना चाहिए।

अंत में

चूँकि, मार्जिन ट्रेडिंग आपके नुकसान और आपके मुनाफे, दोनों को बढ़ा सकती है, तो निवेश के इस तरीके को अपनाते समय आपको बहुत सतर्क रहना होगा। इस तरीके को तभी अपनाएँ, जब आपके पास मार्जिन कॉल (यदि कोई हो) को पूरा करने के लिए पर्याप्त नकदी हो। इसके अलावा, अपनी संपूर्ण उधार सीमा का इस्तेमाल करने, या मार्जिन के निपटान में देरी करने से बचें; ये केवल ब्याज के बोझ को बढ़ाते हैं।

निम्नलिखित परिस्थिति पर विचार करें: आप रेसकोर्स में हैं और आपने उस घोड़े पर ₹2,000 का दाँव लगाया है जो आपको लगता है कि विजेता होगा, लेकिन आपके पास नकदी कम है। तो आप बाकी पैसे को कुछ गिरवी रख कर उधार लेने का फैसला करते हैं, जैसे आपकी कीमती घड़ी।

अगर ऐसा परिस्थिति शेयर बाजार में हो, तो आप जिस ब्रोकरेज फर्म के साथ काम करते हैं, वह आपको अधिक दाँव लगाने के लिए पैसे उधार देता है, जबकि ब्रोकरेज फर्म के साथ आपके डीमैट खाते में उपलब्‍ध धन आपके द्वारा उधार ली गई राशि के खिलाफ संपार्श्विक के रूप में काम करेगा।

इस संपार्श्विक को मार्जिन या मार्जिन मनी कहा जाता है, और जो दांव लगाया जाता है उसे मार्जिन ट्रेडिंग कहा जाता है।

मार्जिन ट्रेडिंग क्या है?

तकनीकी रूप से, ट्रेडिंग की उस प्रक्रिया को मार्जिन ट्रेडिंग कहा जाता है, जहाँ कोई व्यक्ति अधिक शेयर खरीदने के लिए ब्रोकर से उधार लेकर अपनी वहन क्षमता की सीमा से अधिक निवेश करता है।

न्यूनतम (मार्जनल) राशि जो व्यक्ति को ब्रोकर के पास संपार्श्विक के रूप में रखनी चाहिए वह नकद या प्रतिभूतियों(सिक्‍योरिटीज़) में हो सकती है। यह कुल ट्रेड वॉल्यूम का केवल कुछ प्रतिशत होती है, और राशि को ब्रोकरेज के साथ देना होगा और सौदा पूरा होने से पहले भुगतान करना होगा।

इसके अलावा, अगर निवेशक मार्जिन का लाभ नहीं उठाना चाहते हैं, तो वे किसी भी समय संपार्श्विक स्टॉक वापस ले सकता है।

मार्जिन पर खरीदारी करने का यह व्‍यवहार निवेशकों को उनके खाते में उपलब्ध धन से स्टॉक खरीद पाने की क्षमता की तुलना में अधिक स्टॉक खरीदने में सक्षम बनाती है; दूसरे शब्दों में, उनकी खरीदने की क्षमता बढ़ जाती है।

मार्जिन ट्रेडिंग का एक उदाहरण

मान लीजिए कि आपके पास ₹10,000 का निवेश योग्य फंड है। सामान्य ट्रेडिंग में, शेयर खरीदने के लिए आप केवल इस राशि का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन, मार्जिन ट्रेडिंग की मदद से, आप अधिक फंड तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं - जैसे कि ₹1,50,000, आपकी ब्रोकरेज द्वारा उधार दी जा रही अतिरिक्त राशि। इसका मतलब है कि आप अधिक शेयर खरीद सकते हैं।

इसके अलावा, निवेशकों को अपनी मूल राशि भी खर्च नहीं करनी पड़ती है; वे अपने स्वयं के नकद का ₹5,000 निवेश कर सकते हैं, बाकी उधार के रूप में आ जाता है। किसी निवेशक के लिए सामान्य ट्रेडिंग की तुलना में मार्जिन ट्रेडिंग से अधिक लाभ कमाना संभव है।

ऋण को ब्रोकर द्वारा लगाए गए ब्याज के साथ चुकाया जाना चाहिए। इसका मतलब यह भी है कि निवेशकों द्वारा लाभ कमाने के लिए रिटर्न ब्याज में भुगतान की गई राशि से अधिक होना चाहिए। (नीचे 'कितना ब्याज लिया जाता है?' देखें)

हालाँकि, मार्जिन ट्रेडिंग में एक शर्त होती है: शेयर को उसी दिन बेचा/खरीदा जाना चाहिए, जिस दिन इन्हें खरीदा/बेचा गया है। इसे 'स्क्वायरिंग ऑफ' कहा जाता है, और इसे ट्रेडिंग का समय समाप्त होने से पहले करना होता है।

इसका मतलब यह भी है कि यदि ट्रेड बंद होने से पहले स्टॉक मूल्य खरीद मूल्य से नीचे गिर जाता है, तो निवेशक को बेचने पर नुकसान होता है, और अगर वे खरीद रहे हैं, तो मुनाफा कमाते हैं।

मार्जिन की गणना कैसे की जाती है?

जब शेयर को संपार्श्विक के रूप में उपयोग किया जाता है, तो गिरवी रखी गई स्क्रिप का बाजार मूल्य गिरने पर आमतौर पर ब्रोकर को सुरक्षा बचाव प्रदान करने के लिए उनका अवमूल्यन किया जाता है।

मार्कडाउन के परिमाण को 'हेयरकट' कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आप ₹1 लाख के स्टॉक को संपार्श्विक के रूप में रखना चाहते हैं, तो ब्रोकर गिरवी रखे गए पोर्टफोलियो को केवल ₹50,000 के मूल्य का मान सकता है; यह संपत्ति के मूल्य में 50% की कमी है।

इस 50% की कमी को शेयर बाजार की भाषा में 'हेयरकट' कहा जाता है। यह प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है और यदि संपार्श्विक शेयर की कीमत में उतार-चढ़ाव शुरू होता है तो ब्रोकर के जोखिम को कवर करता है। स्टॉक एक्सचेंज विभिन्न शेयर के लिए मानकीकृत हेयरकट निर्धारित करते हैं; ये किसी भी स्क्रिप के लिए सभी ब्रोकरों के लिए समान रहता है।

आप जिस इक्विटी शेयर को गिरवी रखना चाहते हैं, उसके हेयरकट के आधार पर मार्जिन राशि की गणना की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि आपका संपार्श्विक रिलायंस इंडस्ट्री का शेयर है, जिसमें 20% का हेयरकट है, तो इसका मतलब यह होगा कि आप अपने रिलायंस शेयर के 80% तक के ऋण के हकदार होंगे।

मार्जिन ट्रेडिंग कैसे काम करती है?

यदि आप मार्जिन पर स्टॉक खरीदना चाहते हैं, तो आपके पास भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा अधिकृत ब्रोकरेज फर्म के माध्यम से विशेष मार्जिन ट्रेड अकाउंट, या शेयर खाते के खिलाफ मार्जिन, या केवल मार्जिन खाता होना चाहिए।

यह एक विशेष प्रकार का मानक ब्रोकरेज अकाउंट है, जहाँ ब्रोकर आपको आपके अकाउंट में वास्तव में जमा गई राशि की तुलना में अधिक प्रतिभूतियां(सिक्‍योरिटीज़) खरीदने के लिए पैसे उधार देता है।

मार्जिन खाता आपके डीमैट खाते से अलग होता है। यह इस तरह काम करता है: आप अपने शेयर को अपने व्यक्तिगत खाते से अपने ब्रोकर के लाभार्थी खाते में हस्तांतरित करते हैं, जो उन शेयर को आपके क्‍लाइंट के मार्जिन खाते में ले जाता है।

ऋण लेने के बाद, आप इसे जब तक चाहें तब तक रख सकते हैं, लेकिन आपको इस पर ब्याज देना होगा (इस पर बाद में चर्चा की जाएगी)। अन्य दायित्व भी पूरे करने पड़ सकते हैं - उदाहरण के लिए, किसी ट्रेड पर भुगतान किया जाने वाला कमीशन - लेकिन यह ब्रोकर पर निर्भर करता है।

इसके अलावा, अगर आप कोई स्टॉक बेचते हैं, तो ब्रोकर किसी भी लंबित ऋण की वसूली के लिए आय पर दावा कर सकता है। इसके अलावा, ब्रोकर की आवश्यकता के अनुसार आपके मार्जिन अकाउंट में न्यूनतम अकाउंट बैलेंस होना चाहिए।

यह न्यूनतम बैलेंस (जिसे मेन्‍टेनेंस मार्जिन कहा जाता है) हर समय बनाए रखा जाना चाहिए। यदि आप न्यूनतम शेष राशि(बैलेंस) को मेन्‍टेन नहीं रख सकते हैं तो ब्रोकर आपके मार्जिन अकाउंट से एसेट बेचने के लिए स्वतंत्र है।

कृपया ध्यान दें कि SEBI और संबंधित स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा पूर्वनिर्धारित प्रतिभूतियों(सिक्‍योरिटीज़) के मामले में ही मार्जिन ट्रेड की अनुमति है। नियामक और एक्सचेंज सभी लेनदेन की निगरानी करते हैं।

साथ ही, मार्जिन ट्रेडिंग के माध्यम से म्युचुअल फंड यूनिट को नहीं खरीदा जा सकता है, क्योंकि उन्हें स्टॉक की तरह नहीं बेचा जाता है, बल्कि उन्हें म्यूचुअल फंड हाउस के माध्यम से खरीदा और भुनाया(रिडीम किया) जाता है, जिसमें फंड की कीमतें कार्य दिवस पर बाजार बंद होने के बाद ही निर्धारित होती हैं।

मार्जिन ट्रेडिंग पर कितना ब्याज लगता है?

भारत में, शेयर पर ऋण के लिए ब्याज दरें अलग-अलग शेयर में भिन्न होती हैं और 15% और 18% के बीच होती हैं, हालांकि ब्रोकर लगभग 0.05% तक की दैनिक दर भी चार्ज कर सकते हैं। हालांकि, यह सलाह दी जाती है कि शुरुआत में ही अपने ब्रोकर से पूछ लें।

क्वोट की गई दर मुख्य रूप से उस स्टॉक की गुणवत्ता पर निर्भर करती है जिसमें आप निवेश करना चाहते हैं। कभी-कभी, ब्रोकरेज फर्म के साथ ग्राहक के संबंध भी काम करते हैं। उदाहरण के लिए, सक्रिय ट्रेडर को सस्ती दरों से लुभाया जा सकता है।

जब डिफ़ॉल्ट होने का अधिक जोखिम होता है, तो ब्रोकर अचानक ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं, ऐसे मामले में बाजार की स्थिति भी एक निर्णायक कारक बन सकती है।

ब्याज के भुगतान के अलावा, ब्रोकरेज फर्म उन ट्रेड पर थोड़े कमीशन का भी दावा कर सकती हैं, जहाँ मार्जिन फंडिंग का इस्तेमाल किया गया है। ये शुल्क ट्रेड की मात्रा पर निर्भर करते हैं।

मार्जिन ट्रेडिंग के लाभ और जोखिम

आपको मार्जिन ट्रेडिंग से लाभ और नुकसान, दोनों हो सकता है। आइए इसके फायदों से शुरू करते हैं। 

पहला फायदा यह है कि यह आपको अल्पावधि में कीमतों में उतार-चढ़ाव का लाभ लेने देता है, जब आपके पास पर्याप्त नकदी नहीं होती है। इसके तहत, वे कुल राशि के एक हिस्से का भुगतान करने पर स्टॉक डिलीवरी ले सकते हैं, जबकि शेष राशि का भुगतान ब्रोकर द्वारा किया जाता है।

इसके अलावा, मार्जिन ट्रेडिंग के अन्य फायदे भी हैं, जो नीचे दिए गए हैं:

·यह आपको अपने पोर्टफोलियो या डीमैट खाते में निष्क्रिय पड़ी प्रतिभूतियों(सिक्‍योरटीज़) को सिक्योरिटी/संपार्श्विक के रूप में इस्तेमाल करने देता है;

  • यह आपकी निवेशित पूंजी पर रिटर्न की दर में सुधार लाता है, क्योंकि उधार लिया गया धन आपको अधिक पूंजी निवेश करने की अनुमति देता है, और इससे आपके अधिक लाभ कमाने की संभावना बढ़ जाती है। 
  • यह आपकी क्रय शक्ति को बढ़ाता है।

लेकिन, जैसा कि पहले बताया गया है, अगर मार्जिन ट्रेडिंग आपको सामान्य ट्रेडिंग से अधिक लाभ कमाने में मदद करती है, तो इससे बड़ा नुकसान भी हो सकता है; ऋण को बट्टे खाते में डाले जाने की अपेक्षा ना करें, क्योंकि अगर आपको नुकसान होता है, तो भी आप कानून के अनुसार उधार ली गई राशि का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं।

यदि आप समय पर अपना ऋण चुकाने में विफल होते हैं, या यदि न्यूनतम शेष राशि आवश्यक स्तर से कम हो जाती है, तो आपका ब्रोकर 'मार्जिन कॉल' ले सकता है, जिससे आपको या तो अपना कर्ज चुकाने के लिए या शेष राशि को वांछित स्तर पर लाने के लिए नए फंड जमा करने या अपने स्टॉक बेचने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

यदि आप मार्जिन कॉल का संतोषजनक जवाब देने में विफल रहते हैं, तो ब्रोकरेज फर्म कानूनी रूप से आपके शेयर को बेच सकती हैं।

मार्जिन ट्रेडिंग के लिए सही ब्रोकर चुनना

आपकी ज़रूरतों को पूरा करने वाला ब्रोकरेज हाउस चुनना मुश्किल हो सकता है क्योंकि, विभिन्न ब्रोकरेज फर्म ट्रेडर को अलग-अलग लाभ प्रदान करती हैं। कुछ अधिक कमीशन ले सकते हैं, लेकिन अधिक इंट्राडे लाभ की पेशकश करते हैं, जबकि अन्य कम चार्ज करते हैं, लेकिन ऐसे लाग के साथ उदार नहीं हैं।

आपको अपना मार्जिन खाता खोलने के लिए ब्रोकर चुनते समय पेश किए गए इंट्राडे मार्जिन और मांगे गए कमीशन के बीच संतुलन बनाना चाहिए।

अंत में

चूँकि, मार्जिन ट्रेडिंग आपके नुकसान और आपके मुनाफे, दोनों को बढ़ा सकती है, तो निवेश के इस तरीके को अपनाते समय आपको बहुत सतर्क रहना होगा। इस तरीके को तभी अपनाएँ, जब आपके पास मार्जिन कॉल (यदि कोई हो) को पूरा करने के लिए पर्याप्त नकदी हो। इसके अलावा, अपनी संपूर्ण उधार सीमा का इस्तेमाल करने, या मार्जिन के निपटान में देरी करने से बचें; ये केवल ब्याज के बोझ को बढ़ाते हैं।

संवादपत्र

संबंधित लेख

Union Budget