Myths regarding working moms and their kids

काम करने वाली माताओं के बारे में ये कुछ गलतफहमियां हैं जो उनकी जिंदगी को और भी मुश्किल बनाती हैं|

Myths regarding working moms and their kids
एक मां के रूप में नौकरी और बच्‍चे की परवरिश साथ-साथ करना एक बेहद कठिन काम है। आप भले ही इसे किसी भी रूप में क्‍यों न देखें। काम करने वाली माताओं के आस-पास मौजूद लोगों की गलत धारणाएं और उनकी रूढ़िवादी सोच, उनके काम को और भी कठिन बनाती हैं। इन अद्भुत महिलाओं की आलोचना मत कीजिए, बल्कि उन्‍हें वह मदद दीजिए जिसकी उन्‍हें जरूरत है।
 
यहां हम सात मिथकों के बारे में बता रहे हैं, और यह भी बता रहे हैं कि ये मिथक किसलिए हैं!
 
1) काम करने वाली मां अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं देती हैं
 
वे समय देती हैं! 24 घंटों में से, वे लगभग 8-9 घंटे काम करती हैं। शेष समय वे अपने बच्‍चों के साथ बिताती हैं। आज कल ज्‍यादातर कंपनियां, छोटे बच्‍चों की माताओं को काम करने के सुविधाजनक घंटे और घर से काम करने का विकल्‍प भी प्रदान करती हैं। जिससे वे अपने बच्‍चों की पर‍वरिश में अधिक समय दे सकें।
 
2) काम करने वाली मां विश्‍वसनीय नहीं होतीं
 
इसके ठीक विपरीत, काम-काजी माताएं निंजा जैसी होती हैं। वे न सिर्फ अपने काम में श्रेष्‍ठ होती हैं, बल्कि अपने परिवार की देखभाल भी करती हैं। वे एक 'टीम' तैयार करती हैं जो उन्हें अपने बच्चों को खूबसूरती से पालने में मदद करती है। भले ही इसके लिए उन्‍हें दादा दादी से मदद मिल रही हो या उन्‍होंने एक पूर्णकालिक सेविका रख ली हो। इसका श्रेय आज के मॉडर्न पिताओं को भी जाना चाहिए, जो अपनी पारंपरिक भूमिकाएं छोड़कर बच्‍चों की देखभाल में बराबरी से हाथ बंटा रहे हैं।
 
3) उनके बच्‍चे नज़रअंदाज़ होते हैं और उनमें व्‍यवहार संबंधी समस्‍याएं आती हैं
 
कामकाजी माताएं एक आत्मनिर्भर और सहानुभूतिपूर्ण बच्‍चे की परवरिश करती हैं। बच्चे बड़े होते हुए यह समझते हैं कि महिलाएं एवं पुरुष बराबर हैं, जो उनके मन में महिलाओं के प्रति सम्मान को बढ़ाता है। लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए उनकी कामकाजी मां एक आदर्श रोल मॉडल होती है। ये बच्चे बहुत जल्‍दी ही आत्मनिर्भर और स्वतंत्र रूप जीवन जीना सीख जाते हैं।
 
4) कामकाजी माताएं घर पर रहने वाली माताओं को कमतर आंकती हैं
 
वे निश्चित रूप से ऐसा नहीं करती हैं! और न हीं घर पर रहने वाली माताएं कामकाजी माताओं की आलोचना करती हैं। हर महिला समझती हैं कि एक बच्चे की परवरिश करना, यद्यपि एक सराहनीय लेकिन बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। दोनों में एक दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना होती है। कुछ महिलाएं अपने बच्चों के साथ चौबीसों घंटे रहने का विकल्‍प चुनती हैं, तो दूसरी ओर कुछ महिलाएं मातृत्व के साथ करियर के बीच संतुलन बनाना पसंद करती हैं। कोई भी दृष्टिकोण सही या गलत नहीं है।
 
5) घरेलू जिम्‍मेदारियों की कीमत पर होती है ऑफिस की ड्यूटी
 
ऑफिस और घर दोनों जगहों पर शीर्ष भूमिका अपनी नींद का बलिदान देकर निभाई जाती है। लेकिन काम करने वाली माताएं दोनों भूमिकाओं के प्रति न्याय करने की पूरी कोशिश करती हैं। वे अपने पति के साथ समय बिताने और अन्य पारिवारिक दायित्वों को पूरा करने की जरूरत को भी समझती हैं। और वे अपने दोनों कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने में सहायता मांगने से भी झिझकती नहीं हैं।
 
6) वे घरेलू काम से बचने के लिए नौकरी करती हैं
 
घर पर काम से बचने के लिए कोई भी नौकरी नहीं करता है! ऑफिस में नौकरी करना कोई आसान काम नहीं है। तनाव, समय सीमा, बॉस की ओर से दबाव – ये सभी उनके दैनिक जीवन का एक हिस्सा होते हैं। इसके अलावा, काम करने वाली माताएं घरेलू काम में भी उतनी योगदान देती है जितना वे दे सकती हैं।
 
7) कामकाजी महिलाएं खिन्‍न रहती हैं क्‍योंकि वे दोनों ही जगह 100% नहीं दे पातीं
 
कुछ भी हो, कामकाजी माताएं एक संतुष्टिपूर्ण जीवन जीती हैं। उनके पास नौकरी की संतुष्टि के साथ-साथ मातृत्व की खुशी भी होती है। उनके पास एक आत्‍मनिर्भर, स्‍वतंत्र और आत्‍मविश्‍वास से पूर्ण व्‍यक्तित्‍व होता है।
दो भूमिकाओं को संतुलित करना बेशक बेहद कठिन काम है। यह संघर्ष वास्‍तविक है। लेकिन महिलाएं बेहद शानदार हैं और साथ ही वे सर्वमान्‍य मल्‍टीटास्‍कर भी होती हैं। यदि कोई घर पर और ऑफिस में सबसे काम लेना जानता है, तो वह कामकाजी महिला ही है।

संवादपत्र

संबंधित लेख