Radhika's unstoppable spirit is scaling every mountain in the world.

राधिका एक ऐसी महिला की कहानी है जो अपने पर्वतारोहण के जुनून को पूरा करने के लिए किसी हद तक जा सकती है। इस शौक को पूरा करने के लिए वो ना तो अपनी नौकरी ना ही अपने परिवार को राह का रोड़ा बनने देती हैं। जीवन की तमाम संघर्षों के बावजूद वो अपने जुनून को उत्साह के साथ पूरा करती हैं।

अपने अजेय उत्साह के दम पर हर पर्वत का शिखर छू रही राधिका

कहावत है कि भरोसा पहाड़ को भी हिला सकता है। अगर आप इस तरह की इच्छाशक्ति, जुनून और उत्साह रखते हैं तो ये निश्चित रूप से आपको ऊपर जाने में मदद कर सकता है।

8 सितंबर 2017 को जी.आर. राधिका पहली महिला थी जिन्होंने माउंट एलब्रस पर फतह हासिल की। रूस और यूरोप की ये सबसे ऊंची पहाड़ी है, जिस पर चढ़ाई का रास्ता काफी दुर्गम है। हालांकि पर्वतारोहण में ऐसे मुकाम वो पहले भी हासिल कर चुकी हैं। माउंट एवेरेस्ट, माउंट किलिमंजारो, माउंट कोसियोक्सको, माउंट गोलेप कांगड़ी, माउंट मेंथोसा और माउंट कुन जैसी ऊंची चोटियों पर फतह हासिल कर चुकी हैं।

राधिका बाकी से अलग इसलिए है, क्योंकि उन्होंने ये सारी सफलता परिवार और नौकरी के साथ हासिल की है। उनकी सफलता आत्मविश्वास और जूनून को दर्शाता है।

एक साधारण लड़की

एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की राधिका फिलहाल चित्तौड़ जिले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के तौर पर काम कर रही हैं। राधिका के माता-पिता दोनों शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। राधिका कहती हैं, ''हमारे घर पर, मेरे भाई और मेरी परवरिश एकसमान हुई है। मेरे माता-पिता ने हमेशा हम दोनों जो भी करना चाहते थे उसे पूरा करने की पूरी आजादी दी। मैं सभी हासिल किए मुकाम का श्रेय अपने माता-पिता को देती हूं, उन्हीं की वजह से मैंने सबकुछ हासिल किया है।"

राधिका की पहली चढ़ाई

राधिका ने पहली बार 2012 में कैलाश पर्वत की चढ़ाई की थी, जो उनके लिए शानदार पल था। वो कहती हैं, "पहली बार मुझे पहाड़ों के लिए अलग तरह का आकर्षण महसूस हुआ। और तबसे मैंने कभी पीछे मुड़कर

नहीं देखा। इसके अलावा, मैंने हमेशा सक्रिय रूप से आउटडोर खेल, फिटनेस प्रोग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है।"


राधिका ने पर्वतारोहण के लिए बेसिक कोर्स जम्मु कश्मीर के पहलगाम में स्थित जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग से किया।

राधिका की हालांकि माउंट एवेरेस्ट की चढ़ाई उतनी महंगी नहीं थी। लेकिन, माउंट एलब्रस की चढ़ाई में 32 लाख रुपए खर्च हो गए। और सरकारी कर्मचारी होने की वजह से प्राइवेट स्पॉन्सर के पास जाने का विकल्प भी नहीं था।

इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्होंने भारतीय पर्वतारोहण संघ (IMF) से कुछ उपकरण उधार लिए थे। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि उनके सभी अभियानों के लिए सरकार से मदद मिली।

एक पत्नी और एक मां

अंग्रेजी में पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद राधिका ने सरकारी प्रोफेसर के तौर पर कुछ समय तक काम किया। उन्होंने बताया कि पति दूसरे जाति के होने की वजह से माता-पिता से शादी की इजाजत नहीं मिल रही

थी। लेकिन समय के साथ माता-पिता सबकुछ समझ गए और उन्होंने मेरे फैसले का सम्मान किया। राधिका और उनके पति के दो बेटे हैं। राधिका कहती हैं, ''बिना परिवार के सपोर्ट ये मुकाम हासिल करना आसान नहीं होता।''

रास्ते की बाधाएं

शुरुआत में राधिका को अपने सपने को पूरा करने में दिक्कतें नहीं महसूस हुई। राधिका कहती हैं, ''जब मैंने पर्वतारोहण शुरू किया, उस समय मैं पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज में थी। लेकिन जब मैं अधिकारी हो गई, तब मुझे मुश्किल से एक-दो घंटे अपने फिटनेस पर ध्यान देने के लिए मिलते थे।'' लेकिन किस्मत से उनकी सहकर्मियों ने काफी प्रोत्साहन दिया। मेरे जुनून को हासिल करने के लिए अपनी ड्यूटी करते हुए सपनों को पूरा करने में काफी मदद की।

राधिक कहती हैं, ''पर्वतारोहण में सबसे ज्यादा चुनौतिपूर्ण अनुभव तब था जब माउंट कुन का सफर तय किया था। ये मेरी पहली 7000 मीटर की ऊंची चोटी थी, और मैं 5 लोगों की टीम में अकेली महिला थी।'' इस चढ़ाई में एक के बाद एक टीम के हर सदस्य ने हार मान लिया। लेकिन जिसने आगे बढ़ने का फैसला किया उसमें राधिका और एक 6 फीट 2 इंच का मजबूत अमेरिकी नागरिक था। राधिका कहती हैं, ''मैंने सोचा अगर वो विदेशी भारत की ऊंची चोटियों पर चढ़ सकता है, तो मैं क्यों नहीं कर सकती हूं।''

''ऐसे अभियानों में बड़ी चिंता हमेशा भोजन की रहती है। और मैं पूरी तरह से शाकाहारी हूं, जिससे हमेशा मेरे लिए दिक्कतें रहती है। खासकर जब विदेशों की चोटियों पर पर जाते हैं।'' राधिका की लिस्ट में अब अगली चुनौती सातवें शिखर सम्मेलन चुनौती को पूरा करना है। लेकिन उनके मन में सिर्फ इसे ही पूरा करने

का लक्ष्य नहीं है, उन्होंने कुछ अलग भी सोच रखा है। अगले कुछ सालों में वो अनाथालय शुरू करना चाहती हैं।

जुनूनी कामकाजी महिलाओं के लिए राधिका की सलाह

राधिका का मानना है कि अगर आप किसी काम को पूरा करने का संकल्प कर लिया है और और आपकी इच्छाशक्ति मजबूत है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं। कितनी भी मुश्किल क्यों ना हो आप इसे हासिल कर सकते हैं। राधिका कहती हैं, ''उत्साह का लिंग से कोई लेने-देना नहीं है। आप महिला हैं या पुरुष, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। महिलाओं को अपने सपनों के बारे में स्पष्ट होना चाहिए और उस जूनून को पूरा करने में कोई शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए।''

राधिका इस बात की सबूत हैं कि बड़े लक्ष्य के रास्ते में काफी रुकावटें पहाड़ की तरह आती है, जो हमें कुछ असाधारण करने से रोकता है। लेकिन अगर हमें खुद पर भरोसा है और हमारी इच्छाशक्ति मजबूत है तो हम आसानी से अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।


 

संवादपत्र

संबंधित लेख