- Date : 21/08/2020
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जब पैसे को संभालने की बात आती है तो महिलाओं को पुरूषों की तुलना में कम सक्षम माना जाता है। लेकिन अब ये सब बदल रहा है।

2011 की जनगणना से पता चला कि देश की दस में से छह से ज्यादा महिलायें साक्षर हैं , इन आंकड़ों में 1991 की तुलना में लगभग दो गुना बढ़ोतरी हुई है। हालांकि आंकड़ों से साबित होता हैं कि भारतीय महिलाएं व्यावसायिक क्षेत्र में बड़ी प्रगति कर रही हैं, फिर भी महिलाओं के पैसे से निपटने के तरीके, उनकी वित्तीय भागीदारी
इत्यादि के बारे में कुछ धारणाएं बनी हुई हैं।
कुछ मिथक हैं जिन्हें देश में गलत तरीके से प्रचारित किया जाता है।
मिथक : महिलायें बहुत खर्चीली होती हैं और पैसे की बचत नहीं कर सकती
आमतौर से यही माना जाता है कि महिलाएं खरीदारी करना पसंद करती हैं और वे अक्सर अपनी सारी बचत इस पर खर्च कर देती हैं।
हालांकि, बहुत से शोधों से पता चला है कि महिलाएं बचत के महत्व को अच्छी तरह से समझती हैं। बुरे वक्त के लिए पैसा बचाने के बारे में जानती हैं। अपनी दादी मां को याद करें, जब भी आपको पैसे की जरूरत पड़ती थी तो वे कुछ पैसे निकाल कर देती थीं ? घर चलाने वाली महिलाएं हमेशा घर के खर्च से कुछ पैसा बचाती रही हैं।
उदाहरण के लिए, वरीन गधोके रे बैंगलूर की एक गृहणी हैं। उन्होंने 2003 से म्यूचूअल फंड में निवेश करना शुरू किया। अब 2017 की बात करते हैं, इस समय उन्होंने अपनी बचत से ना केवल अपने घर का डाउन पेमन्ट किया बल्कि बेटी की पढ़ाई के लिए भी पैसा बचाया।
मिथक : महिलायें वित्तीय फैसले नहीं ले सकती क्योंकि वे जोखिम नहीं उठाना चाहतीं
निवेश के मामले में महिलाओं और पुरूषों की सोच अलग-अलग होती है। कई अध्ययनों से पता चला है कि महिलायें निवेश के समय ‘सुरक्षा’ को महत्व देती हैं। जबकि पुरूष जोखिम उठाने के इच्छुक होते हैं। लेकिन जोखिम से दूर रहने की महिलाओं की प्रवृत्ति के कारण वे लंबे समय में बेहतर निवेशक साबित होती हैं। यहां तक की वॉरेन बफेट भी इस सोच की वकालत करते हैं, जैसा कि उन्होंने एक बार खुद भी कहा था, कि निवेश को लेकर उनका उनका पंसदीदा होल्डिंग पीरियड है उसे ‘हमेशा के लिए’ करना।
भारतीय महिलाओं की स्थिति
भारतीय महिलाओं से जुड़े आंकड़े -
- कुल जनसंख्या का 48.5% हैं
- 15 वर्ष से ज्यादा उम्र की 60.6% महिलायें साक्षर हैं
- नामांकित अंडरग्रेजुएट छात्रों में 46.8% हिस्सा महिलाओं का है
- नामांकित पीएचडी छात्रों में 40.7% हिस्सा महिलाओं का है
- महिलाएं शहरी कामकाजी वर्ग का 16.2% हिस्सा हैं
- पुरूषों की कमाई का 57% कमाती हैं
मिथक : महिलाओं को वित्तीय उत्पादों की समझ नहीं होती
ये एक बहुत बड़ी गलतफहमी है कि महिलाओं को वित्तीय उत्पादों की समझ नहीं होती। सच्चाई यह है कि भारत में केवल 23% महिलायें ही अपने निवेश से जुड़े फैसले लेती हैं, यह तथ्य इस मिथक को दूर करने में मदद नहीं करता ।लेकिन दूसरी तरफ पुरूषों में भी वित्तीय मामलों को लेकर जानकारी बहुत कम है। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि पुरूषों की स्थिति महिलाओं से कुछ ही बेहतर है। इससे पता चलता है कि निवेश के साधनों को लेकर जानकारी का अभाव पूरे देश की समस्या है। वित्तीय जानकारी को लेकर भारत में समझ बढ़ रही है और इसके लिए वित्तीय सेवायें देने वालों के द्वारा चलाए जा रहे विज्ञापनों और निवेश की समझ बढ़ाने के लिए चल रहे प्रयासों की बहुत बड़ी भूमिका है।
मिथक : महिलाओं को गणित की जानकारी नहीं होती
यह बहुत गलत धारणा है जो हमारे समाज में फैली हुई है। गणितीय समझदारी का लिंग से कोई संबंध नहीं है। इतिहास में ऐसे उदाहरण है जिनसे साबित हुआ है कि महिलाओं के पास ना केवल गणितीय समझ है बल्कि उन्होंने इस मिथक को तोड़ते हुए वित्तीय सेवा देने वाली कंपनियों में सबसे ऊंचे पद भी हासिल किए हैं। चाहे वे थर्मेक्स लिमिटेड की चैयरमेन और एक समय दुनिया की आठवीं सबसे अमीर महिला रहीअनु आगा हो या एक्सिस बैंक की सीईओ शिखा शर्मा हों, महिलाओं ने अपनी क्षमता बार-बार साबित की है।
बैंकों का नेतृत्व करने वाली महिलाएं
- अरूंधती भट्टाचार्य – चैयरमेन, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ( एसबीआई)
- चंदा कोचर - एमडी और सीईओ, आईसीआईसीआई बैंक
- शिखा शर्मा - एमडी और सीईओ, एक्सिस बैंक
- नैना लाल किदवई - एचएसबीसी इंडिया और फिक्की ( फेडरेशन ऑफ इंडियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ) की चैयरमेन
हालांकि अभी भी लंबी दूरी तय करनी है, लेकिन धीरे-धीरे महिलाओं ने अपने वित्तीय भविष्य के बारे में निर्णय लेना शुरू कर दिया है। अब आगे क्या होने वाला है? सीएफए इंस्टीट्यूट की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि अगले दस वर्षों में पूरी दुनिया में खुद पर होने वाले खर्च के 75% हिस्से पर महिलाओं का नियंत्रण होगा।