- Date : 26/03/2021
- Read: 4 mins
इनकम टैक्स स्लैब की हर बारीकी को आसानी से समझें, ताकि इनकम टैक्स भरने को लेकर ना हो कोई उलझन।

आयकर देने वालों को 31 मार्च से पहले अपने इनकम टैक्स स्लैब को आसानी से जरूर समझ लेना चाहिए, ताकि बाद में पछताना ना पड़े। 31 मार्च 2021 को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष यानी 1 अप्रैल 2020 से लेकर 31 मार्च 2021 (वित्त वर्ष 2020-21, असेस्मेंट ईयर 2021-22) तक की अवधि वाले वित्त वर्ष में इनकम टैक्स स्लैब में क्रांतिकारी बदलाव किए गए हैं।
पहले से चली आ रही व्यवस्था में जहां एक ही इनकम टैक्स स्लैब हुआ करता था, वहीं वित्त वर्ष 2020-21 से वैकल्पिक इनकम टैक्स स्लैब की भी व्यवस्था की गई है। दोनों में से आपको एक व्यवस्था का चुनाव करना है। यहां पर हम दोनों व्यवस्था का जिक्र करेंगे ताकि आपको समझने में आसानी हो।
>पहले वाली इनकम टैक्स स्लैब व्यवस्था:
एक तरह से कह सकते हैं कि पुरानी आयकर व्यवस्था के मुताबिक, अगर आपकी कर योग्य आय ₹5 लाख तक है, तब आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन, इसका मतलब ये नहीं समझ लेना चाहिए कि ₹5 लाख तक की आय पर आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा। 5% टैक्स स्लैब को हटाया नहीं गया है।
फर्क सिर्फ इतना है कि अगर आपकी कर योग्य आय ₹5 लाख से ज्यादा है, तो आपको रिबेट नहीं मिलेगी और आपको ₹5 लाख रुपये तक की आय पर भी टैक्स देना होगा। सरकार ने बस यह कहा है कि अगर आपकी कर योग्य आय ₹5 लाख तक है तब आपको रिबेट मिलेगी और ऐसे में कुछ भी टैक्स नहीं देना होगा।
इसको उदाहरणों से समझिये-
>पुरानी इनकम टैक्स व्यवस्था के तहत टैक्स बचाने के उपाय:
A- आयकर की धारा 80 सी के तहत टैक्स सेविंग्स निवेश साधन:
1) PF में योगदान
2) PPF
3) सुकन्या समृद्धि योजना खाता
4) जीवन बीमा प्रीमियम का भुगतान
5) पेंशन योजना जैसे एनपीएस
6) म्युचुअल फंड के इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ईएलएसएस)
7) राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) में निवेश
8) टैक्स सेविंग बैंक एफडी 9)-आवासीय ऋणों के मूलधन अदायगी के लिए भुगतान
10) किसी प्रॉपर्टी के पंजीकरण शुल्क या स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान
11) बच्चों के लिए किसी भी स्कूल या कॉलेज या विश्वविद्यालय या इसी तरह की संस्था को ट्यूशन फीस के रूप में किया गया भुगतान. 12)-SCSS 13)-5 साल का NSC VIII Issue
नोट- 80 सी के तहत हर साल डेढ़ लाख रु. तक के निवेश पर कर छूट
B- आयकर की धारा 80 सी से अलग टैक्स सेविंग्स निवेश साधन और खर्च:
1. नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस)
2. आवास ऋण (हाउसिंग लोन) पर ब्याज
3. शिक्षा ऋण (एजुकेशन लोन) पर ब्याज
4. मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम
5. दान
6. गंभीर बीमारियों के इलाज का खर्चा
7. दिव्यांगता संबंधी टैक्स छूट
8. जमा रकम पर ब्याज
इनकम टैक्स की वैकल्पिक व्यवस्था के तहत टैक्स रेट और स्लैब:
सालाना आयटैक्स दर
0 से ₹2.5 लाख तक -------- 0%
₹2.5 से ₹5 लाख तक ------------ 5 %
₹5 से ₹7.50 लाख तक ---------- 10 %
₹7.5 से ₹10 लाख तक ----------- 15 %
₹10 से ₹12.5 लाख तक ----------- 20 %
₹12.5 से ₹15 लाख तक ----------- 25 %
₹15 लाख से ज्यादा की कमाई पर ----- 30 %
एक तरह से देखा जाए तो इनकम टैक्स की नई व्यवस्था में सबसे अधिक टैक्स 30% रेट की शुरुआत ₹15,00,001 की इनकम से होती है। वहीं, पुरानी व्यवस्था में यह ₹10,00,001 शुरू हो जाती है।
एक और ध्यान देने वाली बात ये है कि इनकम टैक्स की वैकल्पिक व्यवस्था में कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ), पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) इत्यादि में निवेश के तौर पर डिडक्शन या किराये या फूड कूपन पर टैक्स एग्जेम्पशन का लाभ नहीं मिलेगा। इनकम टैक्स की नई व्यवस्था में सिर्फ एक डिडक्शन जो उपलब्ध है, वह है सेक्शन 80सीसीडी (2) के तहत संस्थान की ओर से एनपीएस टियर-1 अकाउंट में कॉन्ट्रिब्यूशन का डिडक्शन।
>नई इनकम टैक्स व्यवस्था चुनें या नहीं:
जिनकी सालाना आमदनी ₹12.5 लाख से अधिक है उनके लिए नई इनकम टैक्स व्यवस्था फायदेमंद नए स्लैब को अपनाने वालों के लिए ग्रॉस इनकम ही टैक्सेबल इनकम हो जाएगी। यह उनके लिए लाभदायक है, जो खर्च के लिए अधिक पैसा अपने पास रखना चाहते हैं। दूसरी ओर, जो लोग फ्यूचर के लिए सेविंग्स करना चाहते हैं और निवेश विकल्पों की मदद लेना चाहते हैं, उनके लिए पुराना टैक्स स्लैब ही बेहतर है।