- Date : 14/10/2021
- Read: 8 mins
टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग एक ऐसी रणनीति है जिसे निवेशक कानूनी तौर पर अपनाकर अपनी कर देनदारी को कम कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल किसी निवेश को नुकसान में बेचकर, और इस पूंजीगत नुकसान का उपयोग इक्विटी पर किए गए किसी भी कर योग्य पूंजीगत लाभ को समायोजित करने के लिए किया जा सकता है।

स्टॉक एक्सचेंज सूचकांकों में अनिवार्य उतार-चढ़ाव से हम सब वाकिफ है। इस उतार-चढ़ाव में अच्छे से अच्छे जानकार निवेशक भी नुकसान से नहीं बच पाते हैं। हालांकि, ऐसे निवेशकों को ये भी मालूम होता है कि वे शेयर बाजार में हुए इस नुकसान के बावजूद दूसरे तरीके से मुनाफा कमा सकते हैं। दरअसल, मौजूदा आयकर कानून के मुताबिक वे टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग नामक सुविधा का फायदा उठा सकते हैं।
टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग क्या है?
टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग एक ऐसी रणनीति है जिसे निवेशक नुकसान पर निवेश (सूचीबद्ध स्टॉक या फंड यूनिट) बेचने से अपनी कर देयता को कम करने और इक्विटी पर किए गए किसी भी कर योग्य पूंजीगत लाभ को समायोजित करने के लिए इस पूंजीगत हानि का उपयोग करने के लिए कानूनी रूप से अपना सकते हैं। (जब किसी निवेश को हानि पर बेचा जाता है, तो कहा जाता है कि हानि को 'बुक' कर दिया गया है)।
अमेरिका में निवेशक आमतौर पर इस रणनीति को अल्पकालिक पूंजीगत लाभ (एसटीसीजी) की कर देनदारियों को कम करने के लिए इस्तेमाल करते हैं, जो आमतौर पर दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) की तुलना में उच्च संघीय आयकर दरों को आकर्षित करते हैं। हालांकि, जरूरत पड़ने पर एलटीसीजी की भरपाई के लिए भी अक्सर रणनीति अपनाई जाती है।
इसी तरह, भारत में, निवेशक एसटीसीजी के लिए इस रणनीति का सहारा लेते हैं क्योंकि इस तरह के लाभ पर कर की दर एलटीसीजी की तुलना में अधिक है: एसटीसीजी के लिए यह 15% है। वहीं बात अगर एलटीसीजी की करें तो 1 अप्रैल, 2018 से पहले इस पर कर नहीं लगता था लेकिन उस तिथि से इक्विटी फंड या शेयरों के बेचने से होने वाले एक लाख रुपए से अधिक के लाभ पर सालाना बिना इंडेक्सेशन के लाभ के 10% कर का प्रावधान किया गया।
एलटीसीजी के लिए कर मानदंडों में यह बदलाव 2018-19 के वार्षिक बजट में प्रस्तावित संशोधन के बाद आया है। तब से इक्विटी शेयरों की बिक्री पर एलटीसीजी के लिए टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग स्ट्रैटेजी भी लोकप्रिय हो गई है।
टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग में समायोजन
टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग के उद्देश्य को दो बातों से समझा जा सकता है: घाटे को समायोजित करना (सेट ऑफ) और उन्हें आगे ले जाना (कैरी फॉरवर्ड)। भारत के मौजूदा आयकर कानून में समायोजित करने और उन्हें आगे ले जाने के तरीके को मंजूरी दी गई है ताकि करदाताओं को उनके निवेश पर हुए नुकसान का लाभ उठाने में मदद मिल सके।
समायोजित करने का मतलब है किसी विशेष वर्ष में मिले लाभ या आय के विरुद्ध हानियों को समायोजित करना। यह समायोजन एक ही परिसंपत्ति शीर्षक के अंदर या दूसरे परिसंपत्ति शीर्षक के रूप में किया जा सकता है। इसलिए, आयकर कानूनों के तहत, सट्टात्मक कारोबार में नुकसान को केवल कुछ अन्य सट्टात्मक गतिविधि के खिलाफ ही समायोजित किया जा सकता है। इसी तरह, पूंजीगत लाभ शीर्ष के तहत हानि को केवल 'पूंजीगत लाभ' शीर्ष के भीतर ही समायोजित किया जा सकता है; इसे किसी अन्य शीर्ष से आय के विरुद्ध समायोजित नहीं किया जा सकता है।
पूंजीगत लाभ के तहत समायोजन पर किसी परिसंपत्ति वर्ग पर रोक नहीं है। इसका मतलब यह है कि इक्विटी में होने वाले नुकसान को अन्य निवेश साधनों जैसे डेट फंड, सोना या यहां तक कि रियल एस्टेट में लाभ के खिलाफ समायोजित किया जा सकता है। हालांकि, इसका कुछ अपवाद भी है। जैसे अल्पकालिक पूंजीगत नुकसान को एलटीसीजी या एसटीसीजी के खिलाफ समायोजित किया जा सकता है, लेकिन लंबी अवधि के पूंजीगत नुकसान को केवल एलटीसीजी के खिलाफ समायोजित किया जा सकता है, एसटीसीजी के खिलाफ नहीं।
दूसरा मुद्दा नुकसान को आगे ले जाने से संबंधित है। इस रियायत के तहत, यदि पूरे पूंजीगत नुकसान को एक वित्तीय वर्ष में समायोजित नहीं किया जाए, तो कानून इस नुकसान के आकलन वर्ष के तुरंत बाद के आठ आकलन वर्षों के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक नुकसान दोनों को आगे ले जाने की अनुमति देता है।
संबंधित: टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग से आप टैक्स बचा सकते हैं! यहां जानें कैसे
टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग कैसे काम करता है
टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग का इस्तेमाल एसटीसीजी और एलटीसीजी दोनों के लिए किया जा सकता है। लेकिन ये दोनों कैसे काम करता है, उदाहरण के जरिये हम यहां जानेंगे।
- अल्पकालिक पूंजीगत लाभ के लिए
यदि आपकी होल्डिंग अवधि 12 महीने से कम है तो एसटीसीजी टैक्स लागू होता है। इस कर के प्रभाव को छोटी अवधि में अन्य फंडों में किसी भी नुकसान को बुक करके एक समान राशि से लाभ की भरपाई के लिए कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक वित्त वर्ष में किसी निवेशक का अल्पकालिक लाभ 40,000 रुपये है। भारत के आयकर कानूनों के तहत, इस पर एसटीसीजी कर देयता उस का 15% या 6000 रुपये बनता है।
हालांकि, अगर इस निवेशक को भी इसी अवधि में कुछ अन्य फंडों में 20,000 रुपये का अल्पकालिक नुकसान हुआ है, तो इस नुकसान को लाभ के खिलाफ समायोजित किया जा सकता है। इस मामले में कर प्रतिबद्धता 3000 रुपये {(40,000 रुपये-20,000 रुपए) का 15%} तक आ जाती है। यह कराधान नियम सभी प्रकार की सूचीबद्ध म्युचुअल फंड योजनाओं और शेयरों के लिए लागू होता है।
- लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ के लिए
एलटीसीजी मानदंड तब लागू होते हैं जब इक्विटी फंड और शेयरों के लिए होल्डिंग अवधि 12 महीने से अधिक हो। ऐसे में अगर दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ 1 लाख रुपये से अधिक हो, तो उस अतिरिक्त रकम पर 10% एलटीसीजी कर लगता होता है। यहां भी, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, टैक्स हार्वेस्टिंग प्रक्रिया का सहारा लेकर कर देयता को कम किया जा सकता है।
मान लीजिए किसी निवेशक ने 1 जनवरी 2020 को स्टॉक या इक्विटी फंड में 3 लाख रुपये निवेश किया, लेकिन निवेशित रहने के दौरान उसका मूल्य घटकर 2.70 लाख रुपये हो गया है, यानी उसे 30,000 रुपये के दीर्घकालिक पूंजीगत नुकसान हुआ। अब मान लें कि यह निवेशक 2021 में घाटे को बुक करने में नाकाम रहा, फिर भी वह 2028 तक भविष्य के किसी भी लाभ के खिलाफ बाद में टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग का सहारा ले सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि यह निवेशक दो साल बाद एक लंबी अवधि के इक्विटी फंड को बेचता है और 2 लाख रुपये का पूंजीगत लाभ कमाता है - यानी 1 लाख रुपये की सीमा से अधिक – ऐसे में उन्हें कर का भुगतान करना होगा। हालांकि, कर गणना के लिए लाभ के मुकाबले 2020 से 30,000 रुपये के लॉसबुक किए जाने से प्रभावी एलटीसीजी 2 लाख रुपये के पूंजीगत लाभ के मुकाबले घटकर 1,70,000 रुपये (2 लाख-30 हजार रुपए) हो जाएगा।
क्या टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग का फायदा उठाना चाहिए?
जैसा कि जीवन में लगभग हर चीज के साथ होता है, टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग के भी दो पहलू होते हैं। सबसे पहले, किसी के पूंजीगत लाभ कर देनदारी को कम करने का लाभ मिलता है। जाने माने निवेशक वॉरेन बफेट का मानना है कि निवेशकों को नुकसान वाले निवेश को बेचने से पहले दो बार सोचना चाहिए।
बफेट बर्कशायर हैथवे के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। उनका मानना है कि यह रणनीति तभी समाप्त हो जाती है जब निवेशक मजबूत फंडामेंटल वाले किसी अच्छे स्टॉक बेचता है, क्योंकि इसने एक साल में नुकसान किया है। 1965 में अपने शेयरधारकों को लिखे एक पत्र में उन्होंने लिखा: "निवेश की दुनिया में कोई वास्तव में क्या करने की कोशिश कर रहा है? कम से कम करों का भुगतान नहीं करता है, हालांकि यह एक ऐसा कारक हो सकता है जिसे निवेश को बेचते समय विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, साधन और अंत को लेकर भ्रमित नहीं होना चाहिए, और अंत में नतीजा सबसे बड़ा कर-पश्चात कंपाउंड दर के साथ आना है।"
लेकिन टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग के समर्थकों का कहना है कि इस रणनीति के तीन अलग-अलग फायदे हैं:
- समय मूल्य लाभ
- क्रॉस एसेट फायदा
- अल्पकालिक बनाम दीर्घावधि कर दर लाभ
सबसे पहले समय मूल्य लाभ की बात करते हैं। टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग स्ट्रैटेजी के पैरोकारों का कहना है कि ज्यादातर निवेशकों के पास अपने निवेश बेचने को लेकर कोई ठोस योजना नहीं होती है, अक्सर उनकी होल्डिंग एक दशक से अधिक होती है। इसलिए, यदि किसी कर देयता को बाद के वर्ष के लिए स्थगित कर दिया जाता है, तो निवेशक को बचत के समय मूल्य से लाभ होता है।
इन पैरोकारों के लिए, अल्पकालिक पूंजीगत लाभ के साथ क्रॉस एसेट लाभ स्पष्ट हो जाता है। अधिकांश निवेशकों के लिए अन्य परिसंपत्ति वर्गों के लिए स्लैब दरों (33% -42%) के मुकाबले इक्विटी पर एसटीसीजी कर 15% है। इसका मतलब है कि कम कर परिसंपत्ति वर्ग से होने वाले नुकसान को उच्च कर परिसंपत्ति वर्ग में लाभ के खिलाफ समायोजित किया जा सकता है।
अंत में, वे लंबी अवधि के लाभों के मुकाबले अल्पकालिक लाभों को महत्व देते हैं। इसका मतलब हुआ: यदि घाटे में चल रहे स्टॉक की कीमत बढ़ती है और अगर उसकी होल्डिंग अवधि एक वर्ष से अधिक है तो ऐसे में स्टॉक को बेचने से मिले पूंजीगत लाभ पर कर देयता केवल 10% होगी।
संबंधित: क्या दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ पर कर बचाने का उपाय तलाश रहे हैं? ये रहे कुछ उपाय
आखिरी शब्द
याद रखें टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग स्ट्रैटेजी तभी काम करती है जब वह सुसंगत हो। वित्तीय सलाहकारों के मुताबिक इसका फायदा उठाने के लिए निवेशकों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए :
पहला, अल्पकालिक पूंजीगत नुकसान कम से कम 5%, जबकि दीर्घकालिक पूंजीगत नुकसान कम से कम 10% होना चाहिए ताकि निवेश को बेचने से होने वाले नुकसान को सही ठहराया जा सके। दूसरा, हालांकि अल्पकालिक पूंजीगत नुकसान को समायोजित कर सकते हैं, लेकिन केवल उन्हें आगे ले जाने के लिए काफी अधिक दीर्घकालिक पूंजीगत नुकसान बुक करना सही नहीं है। और अंत में, किसी भी वित्त वर्ष के अप्राप्त पूंजीगत नुकसान पर केवल एक बार के बदले नियमित आधार पर नजर रखनी चाहिए।