- Date : 30/07/2021
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- Read in English: 7 Types of income tax notices issued to taxpayers
आयकर अधिनियम के तहत विभिन्न आयकर नोटिस के भिन्न उद्देश्य

आयकर अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न धाराएं होती हैं जो आयकर अधिकारियों द्वारा भेजे जाने वाले नोटिसों को परिभाषित करती है। इनमे से हर नोटिस का एक विशेष उद्देश्य होता है और इसकी धारा ,वह कारण दर्शाती है जिसके लिए वह नोटिस भेजा गया हो। एक करदाता को हर प्रकार के नोटिस के लिए घबराने की ज़रूरत नहीं हैं , चूँकि उनमे से कुछ काफी नियमित नोटिस हो सकते हैं।
१. धारा 131(1A)
आपको धारा 131(1A) के अंतर्गत एक नोटिस प्राप्त होगा यदि आयकर विभाग को लगता है कि आपने अपनी किसी आय के बारे में रिपोर्ट नहीं किया है। इस धारा के अंतर्गत, जांच विभाग के अफसर पूछताछ करते हैं और उनकी जांच-पड़ताल के हिसाब से सबूत इक्कट्ठा करते हैं। इन खोज-बिन में अधिकृत अफसर शामिल हो सकते हैं, जो धारा 131(1) में उल्लेखित अपने अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं। धारा 131(1A) के अंतर्गत नोटिस तभी जारी होता है ,जब आयकर जांच ख़त्म हो जाती है और उस अधिनियम के धारा 132 के तहत जब्ती हो जाती है।
२. धारा 142(1)
यह नोटिस, करदाता के आयकर रिटर्न फाइल करने में डिफ़ॉल्ट होने की स्थिति में जारी की जाती है। धारा 142(1) के अंतर्गत नोटिस ,आंकलन वर्ष के ख़त्म होने पर भी जारी की जा सकती है और इसको जारी करने की कोई समय सीमा नहीं होती है। धारा 139 और उसके उप-धाराओं,धारा 148 और धारा 153 के अंतर्गत आय की रिटर्न फाइल की जा सकती है। इन तीन धाराओं के अलावा,धारा 142(1) के अंतर्गत भी रिटर्न फाइल की जा सकती है यदि इसी धारा के अंतर्गत नोटिस जारी किया गया हो। यदि निर्धारिती धारा 142(1) के अंतर्गत जारी नोटिस का जवाब देने में असमर्थ होता है तो आंकलन अधिकारी द्वारा धारा 144 के अंतर्गत सबसे अच्छा निर्णय मूल्यांकन किया जाता है।
३. धारा 143(1)
यह करदाताओं द्वारा प्राप्त की जाने वाली सबसे आम नोटिस है और यह अधिकतर एक सुचना के रूप में होती है। यह सिस्टम द्वारा उत्पन्न एक सुचना है,जो हर उस करदाता को भेजी जाती है जिसने अपनी आय का रिटर्न फाइल किया है।कें द्रीय प्रसंस्करण केंद्र (सी.पी.सी.) फाइल की गई रिटर्न के गणितीय सटीकता, विसंगति की अनुपस्थिति, कर गणना, और कर भुगतान सत्यापन का आंकलन करने के पश्चात ही यह सुचना भेजता है। सिस्टम, इस रिटर्न का विभाग के रिकॉर्ड से तुलना करता है और इसे एक सुचना के रूप में पेश करता है।
४. धारा 143(2)
धारा 143(2) के अंतर्गत जारी नोटिस उन करदाताओं को जारी किये जाते हैं जिनके आय के रिटर्न में कोई त्रुटि हो। नोटिस मिलने के बाद, करदाता को अपने बचाव के सबूतों के साथ इसका जवाब देना होता है। धारा 143(2) के अंतर्गत जारी नोटिस, धारा 143(3) के अंतर्गत किये गए जांच मूल्यांकन या विस्तृत मूल्यांकन के निष्कर्षों के आधार पर जारी किये जाते हैं। धारा 143(2) के अंतर्गत नोटिस को जिस वित्तीय वर्ष में रिटर्न फाइल किया गया हो,उसके ख़त्म होने के छह महीने बाद तक ही जारी किया जा सकता है। इस धारा के अंतर्गत तीन प्रकार की नोटिसें होती हैं। सीमित जांच मामले ,रिटर्न के कंप्यूटर की सहायता से किये गए चयन पर आधारित होते है। पूर्ण जांच,कंप्यूटर की सहायता से किये गए जांच द्वारा दिए गए समर्थित सबूत और रिटर्न के आधार पर चुने जाते हैं। और तीसरा, मैन्युअल जांच के मामले,सी.बी.डी.टी. द्वारा परिभाषित मानदंड के आधार पर चुने जाते हैं।
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५. धारा 148
धारा 148 में जांचकर्ता अफसर किसी करदाता को हिरासत में लेने की अनुमति देता है यदि उस अफसर को लगता है कि उस इंसान के पास कुछ ऐसी कर योग्य आय है जो आंकलन से छिपाये गए हैं। यह नोटिस उस आंकलन वर्ष के तीन वर्ष पश्चात प्रधान मुख्य आयुक्त,प्रधान आयुक्त, मुख्य आयुक्त या आयुक्त की अनुमति के बिना जारी नहीं किया जा सकता है ,वह भी अगर पिछले वर्षों में निर्धारिती की जांच चल रही हो। सबूतों को पेश करने मे असमर्थ होने पर, इसे पुनः खोलने की समय सीमा को छह वर्ष से घटाकर तीन वर्ष कर दिया गया है,बशर्ते बची हुई राशि 1 लाख रुपये से कम हो । ५० लाख से ज्यादा के छिपाव में समय सीमा १० वर्ष ही रहेगी।
यदि आंकलन अफसर, संयुक्त आयुक्त के औदे से नीचे होता है तो यह नोटिस संयुक्त आयुक्त द्वारा जारी किया जाता है यदि वे इस मामले को लेकर संतुष्ट हो।
६. धारा 156
एक आंकलन अफसर धारा 156 के अंतर्गत किसी कर,ब्याज,अर्थदंड आदि के अंतर्गत एक मांग नोटिस जारी कर सकता है, जो आयकर अधिनियम की किसी भी अन्य धारा से उत्पन्न हुआ हो। निर्धारिती, इस मांग से सहमत हो सकता है ,या मान सकता है कि यह आधा सही है ,जवाब में बता सकता है कि मांग गलत है पर उसमे एडजस्ट करने के लिए वो सहमत है या उस मांग से पूरी तरह से असहमत हो सकता है। इसे इ-फाइलिंग पोर्टल के माध्यम से किया जा सकता है।
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७. धारा 245
धारा 245 के अंतर्गत एक नोटिस को करदाता के रिफंड या उसके किसी भाग को एडजस्ट करने हेतु दिया जाता है,जिसमे उस करदाता के समक्ष कोई मांग बकाया हो। बकाया मांग पिछले आंकलन वर्ष के लिए भी हो सकती है। धारा 245 के अंतर्गत प्राप्त नोटिस का जवाब धारा 156 के अंतर्गत प्राप्त नोटिस के सामान ही होती है। जवाब में,आपको समझाना होता है कि इस प्रकार के एडजस्टमेंट क्यों नहीं करने चाहिए। आपके जवाब की समीक्षा करने पर आंकलनकर्ता अफसर यह निर्णय लेता है कि उसे सी.पी.सी. को एडजस्टमेंट या रिफंड के निर्देश देने चाहिए या नहीं।
यह कहना सही होगा कि सभी आयकर नोटिस को आयकर आंकलन के विभिन्न स्तरों पर जारी किया जाना चाहिए। एक आयकर नोटिस प्राप्त करने मात्र से ही इसे चिंता का विषय नहीं बनाना चाहिए, जब तक कि आप इसके अंदर लिखे विशेष मांग और सुचना को नहीं जान लें। देखें कि कैसे कर-चोरों को पकड़ने के लिए सरकार डेटा एनालिटिक्स का लाभ उठा रही है।