- Date : 31/01/2022
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भारत में स्वास्थ्य बीमा अतिरिक्त खर्च की तरह माना जाता है और यही वजह है कि गैर-जीवन बीमा की पहुंच नाममात्र करीब एक प्रतिशत तक ही है। भयानक महामारी कोविड के बाद ये हालत है। अधिक से अधिक लोगों को स्वास्थ्य बीमा में निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के इरादे से बजट 2022 में धारा 80डी के तहत आयकर छूट को बढ़ाया जाना चाहिए।
महामारी ने लोगों को महसूस कराया कि जीवन कितना अनिश्चित हो सकता है। बहुत सारे लोगों ने इस दौरान स्वास्थ्य बीमा के महत्व को भी समझा है। निजी अस्पतालों में कोविड-19 का उपचार काफी महंगा है। बिना स्वास्थ्य बीमा वाले लोगों को चिकित्सा खर्चों को पूरा करने के लिए अपनी जेब से बहुत सारा पैसा खर्च करते देखा गया।
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पिछले दो वर्षों में हमने जो सबक सीखा है, वह यह है कि निवारक स्वास्थ्य जांच और उचित देखभाल के बिना एक स्वस्थ जीवन शैली का आनंद लेना बहुत मुश्किल है।
जो लोग कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करते हैं उनको उनके नियोक्ताओं द्वारा स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जाता है। लेकिन, व्यवसाय के मालिक, फ्रीलांसर और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले अक्सर इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं। अगर वे स्वास्थ्य बीमा खरीदते भी हैं तो उन्हें उस पर मिलने वाली टैक्स छूट काफी नहीं होती है, जो कि स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी को व्यापक रूप से अपनाने में बड़ी बाधा है।
सेक्शन 80डी के तहत टैक्स कटौती काफी कम है, यही वजह है कि लोग हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने को एक अतिरिक्त खर्च समझते हैं। फिलहाल यदि आपकी आयु 60 वर्ष से कम है तो आप स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के लिए ₹25,000 तक और यदि आपकी उम्र 60 वर्ष से अधिक है तो ₹50,000 तक टैक्स छूट का दावा कर सकते हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, स्वास्थ्य देखभाल के खर्च का 70 प्रतिशत व्यक्तिगत बचत से भुगतान किया जाता है। यह संख्या बहुत अधिक है और इसे कम करने का एक तरीका है व्यक्तियों को स्वास्थ्य बीमा खरीदने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन देना। इसलिए स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के लिए टैक्स छूट बढ़ाना समय की जरूरत और मांग दोनों है।
बीमा खरीद को बढ़ावा दें
भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार देश में बीमा की पहुंच महज 4.20 प्रतिशत है, जिसमें जीवन बीमा की पैठ 3.20 प्रतिशत और गैर-जीवन की 1 प्रतिशत है। स्वास्थ्य बीमा गैर-जीवन बीमा के अंतर्गत आता है, यानी इसका मतलब है स्वास्थ्य बीमा लेने वालों की संख्या और भी निराशाजनक है।
अगर इस ट्रेंड को बदलना है, तो सरकार को मौजूदा टैक्स स्लैब पर टैक्स में छूट देनी चाहिए। ओमिक्रोन वैरिएंट के लगातार बढ़ते मामलों ने स्वास्थ्य बीमा की जरूरत को और भी मजबूत किया है।
बीमा खरीद को बढ़ावा देने से सरकार के खर्च में कमी आने की संभावना है। जब अधिक लोगों के पास बीमा पॉलिसी होती हैं, तो वे सभी खर्चों के लिए बीमा पॉलिसी देने वालों पर निर्भर होते हैं और इलाज के लिए निजी चिकित्सा संस्थानों की ओर रुख करने की संभावना बढ़ जाती है। इससे सरकार वंचितों को बेहतर इलाज मुहैया कराने पर ध्यान दे सकती है।
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खर्चों पर राहत प्रदान करें
एक तरफ महामारी बेरोकटोक जारी है, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का प्रीमियम महंगा होता जा रहा है। 2021 तक प्रीमियम में औसतन 25 से 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।
छूट की सीमा में वृद्धि करके सरकार जनता को थोड़ी राहत दे सकती है। फिलहाल व्यक्तियों और आश्रितों के लिए ₹ 25,000 तक की आयकर छूट की अनुमति है, और यदि आप अपने माता-पिता के लिए भी प्रीमियम का भुगतान करते हैं तो अतिरिक्त ₹ 25,000 की कटौती के लिए दावा किया जा सकता है। प्रीमियम की लागत को ध्यान में रखते हुए ये सभी राशियां काफी कम लगती हैं।
प्रीमियम पर जीएसटी घटाए सरकार
लोगों को बीमा पॉलिसी से दूर रखने में जीएसटी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आपकी बीमा प्रीमियम राशि जो भी हो, आपको उस पर 18 प्रतिशत जीएसटी देना होता है। यह भारी टैक्स भुगतान व्यक्तिगत खरीदारों पर बोझ डालता है, जो जीएसटी का दावा नहीं कर सकते। महंगी बीमा पॉलिसी के प्रीमियम पर जीएसटी आम आदमी के खर्चों में काफी इजाफा करता है, और इसीलिए बीमा देने वाली कई कंपनियां सरकार से जीएसटी दरों को घटाने की मांग कर रही हैं।
जीएसटी दरों में कमी के साथ साथ टैक्स स्लैब और छूट की सीमा में वृद्धि घरेलू बीमा उद्योग और जनता के लिए जादू का काम करेगी।
सभी की निगाहें अब बजट 2022 पर टिकी हैं। स्वास्थ्य सबसे पहले आता है और हमें लगता है कि सरकार को इसके बारे में और अधिक याद दिलाने की जरूरत नहीं है।
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