Hospital Bills: अस्पताल इन चार तरीकों से आपको थमा देते हैं मोटा बिल, हमेशा चेक करें ये चीजें

Hospital Bills: कई बार अस्पताल आपसे मेडिकल बिल के नाम पर ज्यादा पैसे चार्ज करने लगते हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि बिल की अच्छी तरह से जांच की जाए।

Hospital Bills


Hospital Bills: क्या आपके या आपके परिवार में से कभी कोई शख्स अस्पताल में भर्ती हुआ है? अगर हां, तो क्या आपने डिस्चार्ज के समय बिल की डिटेल चेक की है कि कि अस्पताल ने किस चीज का कितना पैसा जोड़ा है? आम तौर पर लोग ऐसा नहीं करते और जितना अमाउंट अस्पताल बोलता है उसे भर देते हैं या इंशोरेंस कंपनी को क्लेम कर देते हैं। अगर बिल इंशोरेंस कंपनी को गया है तो वो निश्चित तौर पर बिल की बारीकी से जांच करती है। तभी आपको टीपीए में तीन से चार घंटे का वक्त लगता है। लेकिन बिल अगर आपको देना है तो आप भी कुछ चीजें नोट करके अपने पैसे बचा सकते हैं। 

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डुप्लिकेट बिलिंग

कई बार अस्पताल एक ही टेस्ट या ट्रीटमेंट का दो बार बिल जोड़ देता है। आपको पता ही नहीं चलेगा कि कौन सी चीज कितने की हुई है और कितनी बार हुई है। इसलिए जरूरी है कि बिल की एक बार ठीक से जांच कर लें।

अपकोडिंग

आम तौर पर अस्पतालों में बीमारियों के इलाज में कोड़ का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में कई बार वो कोड़ भी बिल में लग जाते हैं जो हुए ही नहीं हैं। इसलिए जो कोड बिल में लगे हैं उसकी जांच करें और संदेह होने पर अस्पताल प्रशासन से उसके बारे में पूछें।

डाटा एंट्री की गलती

कई बार डाटा एंट्री की गलती से भी आपको ज्यादा बिल देना पड़ सकता है। डाटा एंट्री ऑपरेटर ने कोई कोड लगा दिया या कोई डाइगनोस बढ़ा दिया तो आपको उसका भुगतान करना पड़ जाएगा इसलिए बिल की जांच करें।

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बचने का क्या है तरीका?

मेडिकल बिल ओवरचार्ज से बचने का एक ही तरीका है कि आप बिल को ध्यान से पढ़ें। आप डिस्चार्ज के समय डिटेल बिल मांगें जिसमें एक-एक एंट्री साफ सुथरी हो कि कौन सी चीज के कितने पैसे लगे हैं। अगर आप अस्पताल प्रशासन से डिटेल बिल मांगेंगे तो वो दे देंगे। उसे दस मिनट ध्यान से देखें कि कहीं कोई बड़ी एंट्री तो नहीं जिसकी वजह से बिल बहुत ज्यादा है। इसके अलावा आप अपनी इंशोरेंस ये हेल्थ केयर कंपनी से भी बिल के बारे में बात कर सकते हैं और उसने बिल में किसी एंट्री के बारे में सवाल पूछ सकते हैं।

 

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